मोरना। भोपा में गंग नहर पटरी पर 35 वर्ष पूर्व नईमा हत्याकांड को लेकर चले किसान आन्दोलन ने भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार की चूलें हिला दी थी। एक बड़े आन्दोलन के जनक नईमा हत्याकांड को आज भी याद किया जाता है। आन्दोलन के प्रतीक के रूप में बने स्व.नईमा के मजार को स्मारक का रूप देना तो दूर की बात है,आज नईमा की मज़ार उपेक्षा की शिकार है। मज़ार के आस-पास उगी झाडिय़ाँ एक भूली सी दास्तान को उजागर करने के लिये काफी है।
भोपा गाँव साढ़े तीन दशक पूर्व एक बड़े किसान आन्दोलन की रणभूमि बना था उसी आन्दोलन का प्रतीक नईमा की मजार भोपा गंग नहर पटरी पर बना हुई है। इस आन्दोलन के इतिहास को भले ही आज की युवा पीढ़ी अधिक न जानती हो लेकिन भोपा नहर पुल से चन्द कदम की दूरी पर बनी पक्की कब्र एक बड़े आंदोलन की साक्षी रही है।
सन 1989 में भोपा थाना क्षेत्र के गाँव सीकरी निवासी युवती नईमा का अपहरण किया गया था।युवती की बरामदगी को लेकर ग्रामीणों द्वारा भोपा थाने के सामने जाम लगाकर प्रदर्शन किया गया था। इसी दौरान प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज हुआ था तथा किसानों के वाहन ट्रैक्टर्स को गंग नहर में फेंक कर भीड़ को तितर -बितर कर दिया गया था। 3 अगस्त 1989 को आंदोलन करने वाले 12 व्यक्तियों व अन्य अज्ञात के खिलाफ धारा 147, 148, 149, 323, 504, 332 व 307 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया था।
मुकदमा दर्ज होने वालों में बेलड़ा, नंगला बुज़ुर्ग, भोकरहेड़ी, निरगाजनी, रुडकली का एक एक व्यक्ति व कुटबा थाना शाहपुर निवासी दो व्यक्ति तथा सीकरी के गाँव निवासी पांच व्यक्ति शामिल थे, जिसके बाद भारतीय किसान यूनियन के जनक स्व.बाबा महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन द्वारा युवती की बरामदगी व परिजनों को न्याय दिलाने तथा जिन किसानों के ट्रेक्टर गंग नहर में फेंक दिए गए थे उन्हें मुआवजा अथवा नए ट्रेक्टर दिलाने की माँग को लेकर गंग नहर पटरी पर धरना शुरू किया था।
डेढ़ माह तक चले धरने के दौरान स्व.नईमा के शव को पुलिस द्वारा थाना रतनपुरी क्षेत्र के बड़सू राजबाहे की पटरी से बरामद किया गया था। परिजनों को न्याय दिलाने व नहर में फेंके गए किसानों के ट्रैक्टर्स का मुआवजा दिलाने आदि को लेकर चला धरना विशाल रूप लेता चला गया । धरना प्रदर्शन ने तत्कालीन काँग्रेस सरकार की चूलें हिला दी थी।सरकार द्वारा भारतीय किसान यूनियन की मांगों को स्वीकार करने के बाद धरना समाप्त किया गया था। उसके बाद कांग्रेस पार्टी प्रदेश में वापसी की बाँट जोहती रही हैं ।
इस आंदोलन के दौरान बने जाट -मुस्लिम गठजोड़ ने सामाजिक व सियासत की नई इबारत उस समय लिख दी थी। बदलाव और एक बड़े सामाजिक व राजनीतिक परिवर्तन की नज़ीर बने इस आन्दोलन को नईमा काण्ड के नाम से जाना जाता है। इस आन्दोलन ने किसानों को प्रशासन के खिलाफ मुखर होने की राह दिखाई थी और उसके बाद अक्सर मामलों में किसानों की एकता व एकजुटता ने प्रशासन को बैकफुट पर ला दिया।
स्व.नईमा की मजार की आज उपेक्षा का शिकार है। मजार के इर्द-गिर्द उगी झाडिय़ां टूटी हुई दीवारें, दीवारों पर लिखी अनाप-शनाप इबारतें पास में लगा गन्दगी का ढ़ेर इस बात का संदेश देती नजर आ रही हैं कि अब इस आंदोलन की स्मृतियों की भी किसी को परवाह नही है।
नईमा की माता जमीला उर्फ सायरो जीवित हैं। जबकि पिता इस्लामुद्दीन व भाई इकराम तथा असलम की मौत हो चुकी है। नईमा का परिवार आज भी बेहद साधारण है। पुत्र गुलजार के परिवार की सदस्य जमीला भीगी आंखों से इस दास्तान को बयान करते हुए बताती हैं। मामूली कहासुनी की रंजिश में बदमाश उसकी जवान बेटी को झोंपड़ी से उठा ले गये थे। मुआवजे के रूप में उसे 50 हजार रुपये मिले थे जिसे वह लेना भी नही चाहती थी। उस पैसे से मकान तो ज़रूर बन गया था किन्तु बेटी के यूँ बिछडऩे को वह आज भी याद कर रोती हैं।
भाकियू द्वारा 1 मार्च 1987 को शामली जनपद के गाँव खेड़ीकरमू के बिजलीघर पर धरना, 27 जनवरी को मेरठ कमिश्नरी पर महापंचायत व धरना, 6 मार्च 1988 को अमरोहा के रजबपुर में धरना व आंदोलन किये जा चुके थे। किन्तु नईमा काण्ड के बाद भारतीय किसान यूनियन को बड़ी शोहरत हासिल हुई थी। भाकियू के जिलाध्यक्ष योगेश शर्मा ने बताया कि आंदोलन के प्रतीक स्व.नईमा के मजार का जीर्णोद्धार कराया जायेगा जहाँ भाकियू के आंदोलन के इतिहास की पट्टी भी स्थापित की जाएगी।