Friday, April 18, 2025

कलकत्ता हाई कोर्ट ने ‘न्यायपालिका विरोधी’ टिप्पणियों के लिए ममता बनर्जी के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली याचिका स्वीकार की

कोलकाता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गुरुवार को माकपा के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील बिकास रंजन भट्टाचार्य की वह याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें पिछले दो दिनों में न्यायपालिका के खिलाफ उनकी कथित टिप्पणियों के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर कार्रवाई की मांग की गई है।

मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगणनम की खंडपीठ ने कहा कि हालांकि याचिका स्वीकार कर ली गई है, लेकिन अदालत इस मामले में कोई कार्रवाई करेगी या नहीं, इसका फैसला एक अलग पीठ करेगी।

उच्च न्यायालय के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में मुख्य न्यायाधीश यह तय करेंगे कि कौन सी पीठ मामले की सुनवाई करेगी।

न्यायपालिका के एक वर्ग के खिलाफ मुख्यमंत्री की टिप्पणी कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा सोमवार को 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) द्वारा शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पदों पर की गई 25,753 नियुक्तियों को रद्द करने के बाद आई है।

भट्टाचार्य ने जब गुरुवार सुबह खंडपीठ का ध्यान आकर्षित किया, तो खंडपीठ ने उन्हें मामले में दिन के उत्तरार्द्ध में एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा। भट्टाचार्य द्वारा दायर हलफनामे में तर्क दिया गया है कि अदालत को मुख्यमंत्री को सावधान करने की जरूरत है ताकि वह ‘न्यायपालिका विरोधी’ टिप्पणियां करने से बचें।

भट्टाचार्य ने उन उदाहरणों का भी जिक्र किया जब मुख्यमंत्री ने न्यायपालिका और अदालतों के एक वर्ग पर हमला किया।

उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री दावा कर रही हैं कि अदालतें बिक चुकी हैं और न्यायाधीश राजनीतिक दृष्टिकोण वाले हैं। न्यायाधीश अपने न्यायशास्त्र के अनुसार कार्य करते हैं। ‘अदालतें बिक चुकी हैं’ जैसी टिप्पणियां बिल्कुल अस्वीकार्य हैं। यह न्यायपालिका की गरिमा पर हमला है।”

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बोलपुर में बुधवार को एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए बनर्जी ने कहा था, “भाजपा अपनी वित्तीय ताकत के कारण उच्च न्यायालयों के मामलों को नियंत्रित करती है। मैं सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कुछ नहीं कह रही हूं। हम अभी भी वहां न्याय मांग रहे हैं। लेकिन उच्च न्यायालयों में भाजपा हमेशा अपने तरीके से काम करती है, दूसरों को न्याय नहीं मिलता है।”

मंगलवार को एक अन्य चुनावी रैली में उन्होंने कहा, ”मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहती। न्यायाधीश सरकारी खजाने से अपनी आजीविका कमाते हैं, उनकी सुरक्षा का खर्च सरकारी खजाना उठाता है फिर भी वे सेवाएं समाप्त कर देंगे।”

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