नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के मामले में सुनवाई पर मुख्य न्यायाधीश कोई फैसला ले सकते हैं।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने निर्देश दिया कि इस मुद्दे को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष बड़ी पीठ द्वारा विचार के लिए रखा जाए।
पीठ ने यह निर्देश देते हुए कहा इस मसले को दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा फिर से खोलना अनुचित होगा, क्योंकि तीन न्यायाधीशों की पीठ ने पहले ही अपने फैसले में इस मामले में सुनवाई की थी।
शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर 2016 की जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से दोषी व्यक्तियों की एक समान अयोग्यता की मांग की गई थी। साथ ही, उन आपराधिक मामलों के फैसले के लिए एक साल की समयसीमा निर्धारित करने की मांग की गई है।
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अदालत के समक्ष न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने राजनेताओं के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों पर एक अद्यतन रिपोर्ट प्रस्तुत की।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कई अदालती आदेशों के बावजूद, 42 फीसदी मौजूदा लोकसभा सदस्य अभी भी आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं, जिनमें से कुछ 30 साल से अधिक समय से लंबित हैं।
उन्होंने अन्य मामलों को संभालने वाली विशेष एमपी/एमएलए अदालतों, अत्यधिक स्थगन और सख्त प्रक्रियात्मक प्रवर्तन की कमी सहित प्रमुख बाधाओं को उजागर किया।
हंसारिया ने सुझाव दिया कि यदि कोई आरोपी लगातार दो बार पेश नहीं होता है, तो गैर-जमानती वारंट जारी किया जाए।
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वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मामले को दो सप्ताह बाद भी रखा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने राजनीति के अपराधीकरण के बारे में चिंताओं के साथ प्रासंगिक निर्णयों और अन्य दस्तावेजों का संकलन किया है।
पीठ ने कहा,“हम हर हितधारक को सुनने के लिए तैयार हैं।”
शीर्ष अदालत इस मामले की अगली सुनवाई चार मार्च को करेगी।