देहरादून: पिछले 12 सालों में उत्तराखंड में हर साल औसतन 11 बाघों की मौत हो रही है, जबकि टाइगर कंजर्वेशन के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। साल 2024 में बाघों की मृत्यु दर में कुछ कमी आई है, लेकिन यह स्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की मौत का आंकड़ा सालाना 100 से अधिक रहा है। साल 2024 में उत्तराखंड में 8 बाघों की मौत दर्ज की गई है।
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 12 सालों में कुल 1386 बाघों की मौत हुई है। इसमें 50 प्रतिशत बाघ टाइगर रिजर्व के भीतर, 42 प्रतिशत बाघ रिजर्व के बाहर और की मौत के कारण स्पष्ट नहीं हुए हैं।
उत्तराखंड में बाघों की मौत के अधिकतर मामले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और उसके आसपास के क्षेत्रों से आते हैं। यहां बाघों की संख्या अधिक होने के कारण स्वाभाविक रूप से मृत्यु के मामले भी ज्यादा रिकॉर्ड होते हैं।
साल 2024 में देश भर में कुल 125 बाघों की मौत दर्ज की गई है। हालांकि, यह आंकड़ा साल 2023 की तुलना में कम है, जब 182 बाघों की मौत हुई थी। साल 2022 में 122, साल 2021 में 127 और साल 2020 में 106 बाघ मरे थे। उत्तराखंड में 2024 में 8 बाघों की मौत हुई, जिनमें से 3 बाघ कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में, 2 राजाजी टाइगर रिजर्व में और 3 कुमाऊं के बाहरी क्षेत्र में मरे।
पिछले 12 सालों में सबसे ज्यादा बाघों की मौत मध्य प्रदेश में हुई, जहां 355 बाघों की जान गई। दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र में 261 और तीसरे स्थान पर कर्नाटक में 179 बाघ मरे। उत्तराखंड में 132 बाघों की मौत दर्ज की गई।
देश में कुल 3682 बाघ हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 785 बाघ मध्य प्रदेश में हैं। कर्नाटक में 563 और उत्तराखंड में 560 बाघ हैं। इसमें 260 बाघ अकेले कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हैं।
वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि उत्तराखंड में बाघों की बढ़ती संख्या संरक्षण कार्यों के सकारात्मक परिणाम को दर्शाती है। राज्य अब बाघों की केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करवा रहा है और मानव-वन्य जीव संघर्ष पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
बाघों की मौत के कारण
साल 2024 में 90 प्रतिशत से ज्यादा बाघों की मौत के मामले अभी जांच के तहत हैं। 13 बाघों की मौत प्राकृतिक मानी गई है, जबकि एक बाघ का शिकार हुआ। साल 2023 में 96 बाघों की मौत के मामले जांच में थे, जबकि 12 का शिकार हुआ और 60 की मौत सामान्य मानी गई।
साल 2024 में मरे 8 बाघों में से 2 शावकों की मौत असामान्य मानी गई है, बाकी मामलों पर जांच जारी है। पिछले 12 साल में 71 प्रतिशत बाघों की मौत के मामलों की जांच बंद कर दी गई है, जबकि 29 प्रतिशत मामलों की जांच जारी है।