आधुनिक युग में जब संबंधों के दायरे सिमटते जा रहे हैं, तब आम आदमी का घर भी निरन्तर छोटा होता जा रहा है। हरियाली की शौकीन महिलाओं के लिये तो छोटे घर और भी त्रासद होते हैं। क्योंकि छोटे घर में बागवानी करना बहुत ही टेढ़ी खीर है। बहुप्रचलित बहुमंजिला इमारतों से केवल रेत, कांक्रीट के बने बड़े-बड़े भवन और उद्योगों की धुआं उगलती चिमनियां ही दिखायी देती हैं। आज के माहौल में जगह की कमी से पेड़-पौधों को लगाना काफी मुश्किल हो गया है, इसलिये महिलाओं के एक वर्ग ने विकल्प के रूप में बोन्साई पौधों को स्वीकार कर लिया है। बोन्साई यानी बौने वृक्ष। बोन्साई पोधों को न केवल छोटे घरों में गमलों में लगाया जा सकता है बल्कि आप इसे आसानी से उठाकर कहीं भी रख सकती है। ये पौधे आपको अपने ही घर में हरियाली का भी अहसास देते हैं और सुविधाजनक इतने कि चाहें तो खिड़की में रख दें या फिर खाने की मेज पर। बोन्साई हर जगह हरियाली बिखेरने में समर्थ है। बोन्साई पोधों का रखरखाव एक कठिन और थोड़ा महंगा कार्य है, इसलिये अभी तक यह अमीर घरों की महिलाओं के बीच ही अधिक प्रचलित थे। अब धीरे-धीरे समाज के अन्य वर्गों में बोन्साई पौधे अपना स्थान बनाते जा रहे हैं। जापान में तो हर घर में कम से कम एक बोन्साई पौधा अवश्य होता है। बड़े-बड़े, सैकड़ों फुट ऊंचे वृक्षों को छोटे से गमले में लगाना बोन्सार्ई कहलाता है। आमतौर पर बोन्साई बनाने के लिये एक छोटे से गमले, मिट्टी, खाद और पानी के अलावा आवश्यकता होती है, ढेर सारे संयम, आत्म विश्वास और कल्पनाशीलता की। बोन्साई पौधों के विशेषज्ञों का कहना है कि पौधों को बौना बनाने की शुरूआत लगभग चार सौ वर्ष पूर्व चीन में हुई थी, लेकिन इसका उत्कृष्ट विकास जापान में होने से इसे जापानी कला माना जाता है। बोन्साई पौधे बनाना चीन और जापान के अलावा लंदन, सिंगापुर और थाईलैण्ड में भी काफी प्रचलित है। हमारे देश में भी अब धीरे-धीरे इस कला को काफी सम्मान मिलने लगा है। कई नगरों में बाकायदा बोन्साई क्लब भी बन गये हैं, जहां बोन्साई बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इन क्लबों के सदस्य कई इंजीनियर एवं डॉक्टर भी हैं। इन कलब के सदस्यों के पास स्वयं द्वारा बनाये गये सैकड़ों बोन्साई पौधे उपलब्ध हैं। अधिकतर तो बोन्साई बनाने के लिये पीपल और बरगद का उपयोग किया जाता है। इनके अलावा अमरुद, नारंगी, अनार, शहतूत, अंजीर, बोगेनविलिया, चमेली आदि के भी बोन्सार्ई बनाए जाते हैं। सुन्दर पत्तियों वाले पौधों के बोन्साई भी काफी प्रचलित हैं क्योंकि फूल पत्तियों वाले पौधों को घर भर में सभी पसन्द करते हैं। अगर चाहें तो आप भी आसानी से बोन्साई बना सकती हैं। इसके लिये सबसे पहले पौधों का चयन किया जाता है, कोशिश यही होना चाहिए कि पौधे को वर्षा ऋतु में ही लगाया जाये। पौधा लगाने के लिये गमले का चयन थोड़ी सावधानी से करना चाहिए क्योंकि बोन्सार्ई पौधों की जड़ें ज्यादा लंबी नहीं होती हैं, इसलिये तश्तरी नुमा उथले गमलों का चयन सर्वश्रेष्ठ रहता है। इसके अलावा बोन्साई को समय-समय पर पानी और खाद देना, जड़ों को काटना, पौधों की डालियों को काटकर छोटा करना और समय-समय पर बीमारियों से बचाव की आवश्यकता होती है। आमतौर पर बोन्साई की जड़ें तो साल दो साल में एकाध बार काटी जाती है, परन्तु मिट्टी जरूर जल्दी-जल्दी बदलना पड़ती है। बोन्साई को अधिक सुंदर, प्राकृतिक और कलात्मक बनाने के लिये आप उन्हें अलग-अलग आकार भी दे सकती हैं। यदि आप बहुत सारे बोन्साई पौधों, संग्रह करना चाहें तो ही आपको नियमित रूप से एक-दो घंटे इन्हें देना होंगे। अन्यथा इन्हें आपके अल्प समय की ही आवश्यकता होगी। आप अपनी कल्पनाशीलता से एक ही प्रजाति के कई पौधों को अलग-अलग स्वरूप देकर विभिन्नता बनाये रख सकती है। कल्पनानुसार इन्हें झुके, सीधे खड़े, समूह, एकांकी रूप से सजाकर मनमोहक एवं खूबसूरत बना सकती है। भारतीय बोन्साई क्लबों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या कई गुना अधिक है। जो यह दर्शाता है महिलाओं में बोन्सार्ई का शौक बहुत तीव्र है और वे ही बोन्साई बनाने में अधिक रुचि लेती हैं। बोन्साई क्लबो के पास भारतीय पौधों की दो सौ से भी अधिक ऐसी प्रजातियां उपलब्ध हैं जिनसे आसानी से बोन्सार्ई पौधे बनाये जा सकते हैं। कुछ लोग बोन्साई पौधों को बनाने का यह कहकर भी विरोध करते हैं कि यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है, परन्तु बोन्साई पौधे तो अपनी स्वाभाविक प्राकृतिक अवस्था को बनाये रखते हैं। ये भी अन्य वृक्षों की तरह वृद्धि करते हैं तथा इन पर भी फल एवं फूल लगते हैं, इसलिए आप भी संकोच रहित होकर अपने घर और आंगन को बोन्सार्ई पौधों से अवश्य ही सजाईये। साथ ही यदि आप वट सावित्री अमावस्या या आंवला नवमी का व्रत करती हैं तो बरगद एवं आंवले की पूजा भी करती ही होंगी। यदि आप इन वृक्षों के बोन्साई पौधे बनाएंगी तो निश्चित ही आप इन वृक्षों को ढूंढने में होने वाली परेशानी से बच सकेंगी। साथ ही बोन्साई पौधे तैयार करने में आपके खाली समय का रचनात्मक सदुपयोग तो होगा ही, आपको आनंद और संतोष भी प्राप्त होगा।
अंजनी सक्सेना – विभूति फीचर्स]