नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि उसके लिए महिला आरक्षण विधेयक के प्रावधान को रद्द करना ‘बहुत मुश्किल’ होगा। प्रावधान में है कि महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत कोटा तब तक लागू नहीं किया जाएगा जब तक जनगणना और उसके बाद परिसीमन का काम नहीं हो जाता।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कांग्रेस नेता जया ठाकुर की याचिका पर सुनवाई की।
पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी नहीं करने का फैसला किया और कहा कि वह 22 नवंबर को इसी तरह की मांग वाली लंबित याचिका के साथ इस मामले पर विचार करेगी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि कानून का प्रावधान कि महिला कोटा जनगणना के आंकड़ों और परिसीमन किए जाने के बाद प्रभावी होगा, को खत्म किया जाए।
इस पर शीर्ष अदालत ने कहा, “हमारे लिए ऐसा करना बहुत मुश्किल होगा।”
सिंह ने तर्क दिया कि संसद और राज्य विधानमंडल में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए जनगणना की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने दलील दी कि जनगणना और परिसीमन की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि सीटों की संख्या पहले ही घोषित की जा चुकी है और वर्तमान संशोधन मौजूदा सीटों के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देता है, और यह हमारे देश में सब जानते हैं कि 50 प्रतिशत महिला आबादी है लेकिन चुनावों में उनका प्रतिनिधित्व केवल 4 प्रतिशत है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) द्वारा महिला आरक्षण विधेयक, 2008 को फिर से पेश करने की मांग करते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि वादों के बावजूद विधेयक पारित नहीं किया गया।
इस साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जवाब दाखिल करने में देरी को लेकर केंद्र से सवाल किया था। “आपने कोई उत्तर दाखिल नहीं किया है। आप इससे क्यों कतरा रहे हैं?” इसने केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज से पूछा था।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधेयक 2023 – इस साल सितंबर में संसद के एक विशेष सत्र में पारित किया गया। यह लोकसभा और दिल्ली सहित सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य करता है।