आज भी अनेक ऐसे परिवार हैं, जिनमें बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए तो पूरे जोश के साथ जोर लगा दिया जाता है ताकि वह अपने पांव भली प्रकार जमा सके किन्तु बेटियों के प्रति उदासीन ही रहते हैं।
बच्चियों की नींव इस प्रकार तैयार की जाती है कि वे स्वयं को निरीह एवं विकलांग महसूस करती रहें और सदैव किसी न किसी बैशाखी का सहारा खोजते हुए जीवन बिताने पर मजबूर हों।
अगर आपकी बेटी दब्बू और हीनभावना से ग्रस्त है तो यह कसूर उसका नहीं बल्कि आपका है। आपने बचपन से उसे शिक्षा के नाम पर सिर्फ किताबी कीड़ा बनाने पर ही जोर दिया। उसमें आत्मविश्वास जगाने की कोशिश आपने कभी की ही नहीं। वह भी अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बना सकती है। अपनी बेटी के लिए भी कुछ ऐसा करके तो देखिए।
बेटी को अकेले भेजने में प्राय: माता-पिता घबराते हैं। उसके साथ या तो स्वयं जाते हैं या फिर भाई को साथ लगा देते हैं। इससे उसे इस बात का अहसास होने लगता है कि वह लड़की है और अकेले असुरक्षित भी है। बच्ची को दिन में कभी-कभी अकेले जाने की अनुमति भी देनी चाहिए ताकि उसका आत्मविश्वास बना रहे।
जहां तक सम्भव हो, बेटों और बेटियों में समान व्यवहार करना चाहिए। खाने-पीने व खेल-कूद की छोटी-मोटी वस्तुओं में भेदभाव नहीं करना चाहिए। माता-पिता के इसी भेदभाव से बेटी का आत्मबल कम होने लगता है। समय पर उसे आगे बढऩे की प्रेरणा भी हमेशा देते रहना चाहिए।
बेटी को सही मायने में शिक्षित करने के लिए उसकी नींव प्रारम्भ से ही डाली जानी चाहिए। सर्वप्रथम बचपन से ही बेटी में आत्मविश्वास जगाइये। उससे बात-बात पर यह कहना कि तुम बेटी हो, इस कारण ऐसा मत करो या यह काम तुम नहीं कर सकती, उसे कमजोर बनाता चला जाएगा। बेटी पर बचपन से ही थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारियां डालते रहना चाहिए।
शिक्षा के साथ ही उसकी घरेलू कामों में भी रूचि जगाना आवश्यक है। अपनी बेटी को दब्बू और पंगु बनाने के स्थान पर उसे प्रगतिशील, उदार एवं स्वावलंबी बनाया जाना चाहिए ताकि वह अपनी रक्षा के लिए दूसरे पर मोहताज न हो तथा अपने अधिकारों के लिए लड़ सके एवं परिवार तथा समाज में सिर ऊंचा करके जी सके।
अगर बेटी अधिक पढऩा चाहती है तो उसे यह कहकर निरूत्साहित मत कीजिए कि तुम लड़की हो, अधिक पढ़कर क्या करोगी? तुम्हारे पढ़ाने पर हम अधिक खर्च नहीं करेंगे। आज के समय में हर क्षेत्र में स्त्रियां आगे बढ़ रही हैं चाहे डॉक्टर हों, इंजीनियर हों, आईएएस हों या प्रशासनिक क्षेत्र हो। अगर उसे खेलकूद, वाद-विवाद या अन्य प्रतियोगिताओं में रूचि हो तो उसमें भाग लेने का अवसर अवश्य प्रदान कीजिए। इससे बेटी में आत्मविश्वास तथा उत्साह बढ़ेगा।
बेटियों के मनोबल को बढ़ाकर देखिए, वह दो कुलों का नाम रोशन करेगी। अगर उसे दब्बू बना दिया गया तो वह मातृकुल, पितृकुल तथा ससुराल सभी के लिए एक समस्या ही बनकर रह जाएगी।
– आरती रानी