नई दिल्ली। बिहार विधान सभा के अंदर महिलाओं को लेकर विवादित बयान देने से पहले और विवादित बयान देने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुछ समय के लिए सक्रिय राजनीति से गायब हो गए थे।
दिसंबर 2023 में तो एक समय ऐसा भी आया जब केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास पासवान) के मुखिया चिराग पासवान सहित पटना से लेकर दिल्ली तक कई नेता नीतीश कुमार की मानसिक स्थिति पर ही सवाल उठाने लगे थे, लेकिन विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस और अन्य दलों द्वारा अपनी अनदेखी से नाराज नीतीश कुमार ने अचानक अपनी सक्रियता इतनी बढ़ा दी है कि सब हैरान रह गए।
पिछले 25 दिनों में नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक सक्रियता को बढ़ाकर पार्टी और सरकार को फिर से पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया। पहले राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर स्वयं राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, फिर ललन सिंह सहित उनके सभी करीबियों को हटाकर राष्ट्रीय पदाधिकारियों की अपनी नई टीम बनाई।
नीतीश कुमार ने शनिवार, 20 जनवरी को पार्टी और सरकार से जुड़े दो अहम फैसले लेकर बिहार में सभी राजनीतिक दलों और प्रशासनिक अधिकारियों को यह भी संदेश दे दिया कि बात चाहे पार्टी की हो या सरकार की, असली बॉस नीतीश कुमार ही हैं।
शनिवार को बतौर जेडीयू राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय पदाधिकारियों की जो अपनी नई टीम में बनाई है, उसमें नीतीश कुमार ने न केवल पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के करीबियों को हटा दिया बल्कि दिल्ली में बैठकर जेडीयू की राजनीति करने वाले केसी त्यागी को राजनीतिक सलाहकार और प्रवक्ता बनाकर एक बड़ा संकेत भी दे दिया।
एक जमाने में शरद यादव के काफी करीबी माने जाने वाले केसी त्यागी के संबंध भाजपा नेताओं से काफी अच्छे हैं। इसके बाद नीतीश कुमार ने राम मंदिर, रामचरितमानस और मनुस्मृति पर लगातार विवादित बयान देने वाले लालू प्रसाद यादव की पार्टी के कोटे से मंत्री बने चंद्रशेखर का मंत्रालय ही बदल दिया।
नीतीश कुमार ने आरजेडी कोटे से मंत्री बने चंद्रशेखर सहित तीन मंत्रियों के विभागों में फेरबदल कर लालू यादव, तेजस्वी यादव और आरजेडी सहित कांग्रेस को भी बड़ा राजनीतिक संदेश दे दिया है।
हाल ही में अमित शाह द्वारा दिए गए एक इंटरव्यू से भी बिहार की राजनीति में आने वाले बदलाव के संकेत मिल रहे हैं।
सूत्रों की माने तो, पिछली बार भी नीतीश कुमार भाजपा के शीर्ष नेता से हुई बातचीत के बाद ही एनडीए गठबंधन में लौटे थे और उसमें बिहार भाजपा के नेताओं का कोई लेना-देना नहीं था। इस बार भी बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार अपने एक बहुत ही करीबी नेता के जरिए बातचीत का चैनल खोल चुके हैं।
हालांकि फिलहाल नीतीश कुमार की तरफ से जो मांगे रखी गई है, उसे भाजपा पूरा करने के मूड में नहीं है। इसलिए बातचीत जारी है। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे को अपनी-अपनी मांग से अवगत करा दिया है, लेकिन यह बताया जा रहा है कि इस बारे में अंतिम फैसला पिछली बार की तरह ही शीर्ष स्तर पर बातचीत के बाद ही होगा।
सूत्रों की माने तो, बिहार की राजनीति में बदलाव के लिहाज से जनवरी का यह महीना काफी अहम माना जा रहा है। नीतीश कुमार आने वाले कुछ दिनों में अंतिम फैसला कर सकते हैं कि वह किस गठबंधन के साथ मिलकर लोक सभा का चुनाव लड़ेंगे।
हालांकि दोनों ही सूरतों में यह भी तय माना जा रहा है कि उनकी पार्टी के कई नेता उनका साथ छोड़ सकते हैं। लेकिन बिहार से आ रहे राजनीतिक बदलावों के संकेतों के लिहाज से जनवरी का यह महीना खासतौर से 22 जनवरी से लेकर 27 जनवरी तक का समय काफी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है।