Tuesday, November 19, 2024

अजय कुमार सिंह फिर से बने झारखंड के डीजीपी,अनुराग गुप्ता हटाए,चुनाव आयोग ने झारखंड सरकार को दिया था आदेश

नई दिल्ली। चुनाव आयोग (ईसी) ने झारखंड सरकार को आदेश दिया है कि अनुराग गुप्ता को तुरंत कार्यकारी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद से हटा दिया जाए। इसके साथ ही, 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी अजय कुमार सिंह को झारखंड का नया पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया गया है।

अजय कुमार सिंह पहले भी पिछले साल फरवरी में झारखंड के डीजीपी के पद पर नियुक्त हुए थे, लेकिन बाद में उन्हें हटाकर अनुराग गुप्ता को यह जिम्मेदारी दी गई थी। इससे पहले अजय कुमार सिंह भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) के महानिदेशक के पद पर कार्यरत थे। उनकी इस पुनर्नियुक्ति से राज्य में पुलिस प्रशासन में फिर से स्थिरता लाने का प्रयास किया जा रहा है।

 

सूत्रों के अनुसार, चुनाव आयोग (ईसी) ने झारखंड सरकार को निर्देश दिया है कि अनुराग गुप्ता को उनके पद से हटाकर सबसे वरिष्ठ डीजीपी स्तर के अधिकारी को कार्यभार सौंपा जाए। यह कदम गुप्ता के खिलाफ प्राप्त शिकायतों के आधार पर उठाया गया है, जो पिछले चुनाव में उनके आचरण से संबंधित थीं।

यह निर्णय महत्वपूर्ण समय पर आया है, जब झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। राज्य में विधानसभा चुनाव दो चरणों में, 13 और 20 नवंबर को, आयोजित किए जाएंगे। पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, और चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए यह कदम उठा रहा है।

2019 के आम चुनाव के दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने उन पक्षपातपूर्ण आचरण का आरोप लगाया था। इसके बाद उन्हें झारखंड के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (विशेष शाखा) के रूप में उनके कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया था। उस समय उन्हें दिल्ली में रेजिडेंट कमिश्नर के कार्यालय में तैनात किया गया था। चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक उनके झारखंड लौटने पर रोक लगा दी गई थी।

इससे पहले भी 2016 के राज्यसभा उपचुनाव के दौरान गुप्ता पर पद के दुरुपयोग के आरोप लगे थे। वे तब अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के पद पर थे। उस समय आयोग ने उनके खिलाफ एक जांच समिति गठित की थी। जिसके नतीजों के आधार पर विभागीय जांच के लिए उनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया। इस मामले में जगन्नाथपुर थाने में उनके खिलाफ 2018 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसके बाद 2021 में झारखंड की झामुमो सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17 (ए) के तहत उनके खिलाफ जांच की अनुमति दी।

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