Sunday, May 19, 2024

सहारनपुर नगर निगम के बढ़े हुए क्षेत्रों में नहीं हो पाया अपेक्षित विकास, गंदे पानी की निकासी बना परेशानी का सबब, मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं लोग

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सहारनपुर। सहारनपुर नगर निगम का जब 2009 में गठन किया गया तो उसमें नगरीय क्षेत्र के अलावा 32 गांव और 180 नई विकसित कालोनियों को शामिल किया गया था। निगम बनने के आठ साल बाद वर्ष 2019 में नगर निगम के पहली बार चुनाव हुए थे और थोड़े दिन बाद सहारनपुर को स्मार्ट सिटी योजना में ले लिया गया था। 

नगर निगम के पांच साल पूरे होने के बाद अब फिर से नगर निगम के चुनाव होने जा रहे हैं लेकिन त्रासदी यह है कि नगर निगम के ऐसे वार्डों में जहां विकास की सबसे ज्यादा जरूरत थी। वहां ना तो लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया  कराई जा सकीं और ना ही गंदे पानी की निकासी के प्रबंध किए गए। निवर्तमान मेयर संजीव वालिया ने आज इस संबंध में पूछे जाने पर कहा कि पांच वर्षों के दौरान नगर में विकास के पर्याप्त कार्य किए गए हैं लेकिन बजट की कमी के कारण बाहरी क्षेत्रों में उतना काम नहीं किया जा सका जितना होना चाहिए था।

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उन्होंने कहा कि पार्षदों ने नई कालोनियों और निगम में शामिल गांवों के लिए विकास के कार्य प्रस्तावित किए थे। जिन पर आने वाले समय में काम किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि 32 गांवों को निगम में मिलाकर 12 नए वार्ड बनाए गए थे। जिसमें नागरिकों को अपेक्षित सुविधाएं भी नहीं मिल पाई हैं। इन क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति भी ग्रामीण शेड्यूल के अनुसार होती हैं जबकि नगर में विद्युत आपूर्ति मंडल मुख्यालय स्तर के अनुसार हो रही है।

 

संजीव वालिया ने बताया कि 1400 सड़कों व गलियों, 35 किलोमीटर लंबे 210 नए नालों का निर्माण, सात ओवरहैड टैंक और अनेकों नलकूपों का निर्माण, 49 तालाबों का जीर्वोद्धार कराया गया, 150 करोड़ की संपत्ति कब्जामुक्त कराई गई, 140 कूड़ाघरों में से 126 को समाप्त किया गया। जिन वार्डों में मौजपुरा, पिंजोरा, बादशाहपुर, ओपुरा, मोहम्मदपुर माफी, सड़क दूधली, वर्धमान कालोनी, जेजे पुरम, फतेहपुर जट, मवीकलां, चख हरेटी, लेबर कालोनी, मानकमऊ, सिराज कालोनी, खाताखेड़ी, एकता कालोनी, हयात कालोनी, कमेला व नदीम कालोनी, नंदपुरी, लेबर कालोनी का प्रकाश विहार आदि क्षेत्र शामिल हैं। इन वार्डों के नागरिकों की शिकायत है कि वहां गंदे पानी की निकासी ना होने से परेशान हैं। सड़कों और गलियों का निर्माण जरूरत के मुताबिक नहीं हो पाया है। दुखद बात यह है कि विकास कार्यों के प्रस्ताव बने पार्षदों ने समस्याएं उठाईं लेकिन योजनाएं और घोषणाएं क्रियान्वित नहीं हो पाईं।

 

इस संबंध में अधिकारियों का कहना है कि नगर निगम क्षेत्र के समेकित विकास के लिए कम से कम 100 करोड़ की धनराशि की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में महानगर की डेढ़ लाख से अधिक आबादी है जिसे जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। निगम के हो रहे चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा को देहाती नागरिकों की उपेक्षा का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। विपक्षी दल इसे चुनावी मुद्दा बनाएंगे वहीं सत्तारूढ दल भाजपा इसे लेकर रक्षात्मक रूख अपनाए हुए हैं। भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों का कहना है कि उन्हें लोगों को सही स्थिति समझाने में मुश्किलें पेश आएंगी।

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