लखनऊ। अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शायरा डॉ नसीम निकहत का शनिवार को इंतकाल हो गया। उनके निधन से मुशायरे की दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई। किसी भी मुशायरे में उनके कलाम बड़े ही संजीदा हुआ करते थे।
अब उनके न होने की कमी मुशायरों में खला करेगी। उनकी उम्र 65 बरस की थी। उनका नमाज-ए-जनाजा रात 9 बजे हुआ। उन्हें मल्लिका-ए-जहां के कब्रिस्तान में सुर्पुंद-ए-खाक किया गया।
जानकारी के मुताबिक डॉ नसीम निकहत इन दिनों बीमार चल रही थीं। बीमारी की तकलीफ वो बर्दाशत न पाई और आखिर में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह लखनऊ के पुराने इलाके नक्खास इलाके में रह रही थीं।
बचपन में लखनऊ आई नसीम ने यहीं तालीम हासिल की और शादी के बाद उन्होंने इसी शहर को अपना बना लिया। वह बड़ी बेबाकी से शायरी करती थीं और तंज भी कस दिया करती थीं। उनकी शायरी का एक पहलू इन शब्दों में देखिए कि ’मेरे लिए ये शर्त मुझे सावित्री बनकर जीना है, और तुझे इसकी आज़ादी जिस पर चाहे डोरे डाल’।