चंडीगढ़ । पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने प्रदेश में हुए पेंशन घोटाले की जांच सीबीआई को सौंप दी है। यह घोटाला हरियाणा की पूर्व हुड्डा सरकार के कार्यकाल के दौरान चर्चा में आया था। सीबीआई के जांच शुरू होते ही प्रदेश के कई आईएएस तथा एचसीएस अधिकारी निशाने पर आ जाएंगे।
याचिकाकर्ता के वकील प्रदीप रापड़िया ने गुरुवार को कोर्ट का फैसला आने के बाद बताया कि वृद्धावस्था पेंशन के नाम पर 40 साल से कम के उम्र के लोगों को भी इस पेंशन का पात्र बनाया गया था। यहां तक कि मृत लोगों को भी वृद्धावस्था पेंशन दी जा रही थी। इसके साथ ही कई लोग सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद भी वृद्धावस्था पेंशन पा रहे थे। बहुत से मामले ऐसे थे जिसमें संबंधित व्यक्ति दोहरी पेंशन ले रहे थे। उन्होंने बताया कि इस घोटाले के मामले में याचिकाकर्ता राकेश बैंस ने सीबीआई, ईडी और हरियाणा सरकार को पत्र लिखा था।
रापड़िया ने बताया कि साल 2011 में हुड्डा सरकार के वक्त कैग की रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि यह बहुत बड़ा घोटाला है। इस मामले में कैग की रिपोर्ट पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, हमने जब कैग की रिपोर्ट को सरकार को भेजा फिर भी कार्रवाई नहीं हुई, इसके बाद हमने इस मामले में सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई।
फरवरी में हुई सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने इस मामले में एसीबी और समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव से 2011 से अभी तक हुई कार्रवाई की जानकारी मांगी थी। इसके साथ यह भी जानकारी मांगी गई थी कि जिस दौरान ये घोटाला हुआ उस दौरान कौन-कौन से आईएएस अधिकारी संबंधित विभागों में तैनात थे,जिनकी इस मामले में कार्रवाई करने की जिम्मेदारी बनती थी ।
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि आज हुई सुनवाई के दौरान एंटी करप्शन ब्यूरो और सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट की ओर से इस मामले में एफिडेविट कोर्ट में पेश किया गया। उन्होंने बताया कि एफिडेविट में बड़े हैरान करने वाले तथ्य सामने आए हैं। जिसमें जानकारी सामने आई है कि अभी भी सात करोड़ से अधिक की रिकवरी किया जाना बाकी है। जबकि अभी तक मात्र 4 करोड़ रुपये ही रिकवर किए गए हैं। उनके मुताबिक उन्होंने एफिडेविट में जानकारी दी है लेकिन यह घोटाला इससे भी ज्यादा का है। इस दौरान करीब 10 से 15 आईएएस अधिकारी इन विभागों में तैनात थे जिनकी यह जिम्मेदारी बनती थी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी जानकारी दी कि इस मामले में एक भी एफआईआर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दर्ज नहीं हुई।