जब तक कर्म अपना फल नहीं देते वे समाप्त नहीं होते। कर्मों का फल इस जन्म अथवा अगले जन्मों में अवश्य सामने आता है। दुनिया में साम्यवाद आये अथवा पूंजीवाद आये अथवा अन्य कोई और व्यवस्था आये, परन्तु न तो एक बाप के सभी बेटे एक जैसे होते हैं न ही एक गऊ की सभी बछिया एक जैसा दूध देने वाली होती हैं, न ही एक गुरू की कक्षा में पढऩे वाले सभी विद्यार्थी एक जैसे प्रतिभावान होते हैं।
व्यक्ति को एक जैसे धन, साधन, सामर्थ्य, सुविधाएं मिलने पर भी उनका समान व्यक्तित्व नहीं बन पाता। एक जैसे मकान में रहकर भी सभी एक जैसा सुख नहीं भोग पाते। एक ही पद पर बैठा आदमी तो इज्जत प्राप्त कर लेता है, परन्तु दूसरा नहीं, क्योंकि बाहर से आप कुछ भी ठीक कर लेना जो व्यवस्था प्रभु की है, जो उसका कर्म, सिद्धांत है वह अपना कार्य अवश्य करेगा।
माता-पिता बच्चों की उन्नति के लिए प्रयास करते हुए सोचते हैं कि हमने इनकी किस्मत बना दी, परन्तु किस्मत लिखने वाला तो आदमी नहीं विधाता है, जो वह लिखता है वह जरूर सामने आता है। मनुष्य किसी के भाग्य का निर्माण नहीं कर सकता।
मनुष्य का स्वभाव है कि वह हमेशा दूसरों को दोष देता है, परन्तु वह जो भी दुख भोग रहा है वह कर्मों का फल है। आपके कर्मों के अनुसार आपको सुख भी मिलेगा और दुख भी। कोई भी कर्म बिना फल दिये समाप्त नहीं होता।