वें ही क्षण महत्वपूर्ण हैं, जिन क्षणों में मनुष्य की भावनाएं श्रद्धा भक्ति से भरपूर होती है। मन प्रभु के साथ जुड़ा होता है। वें ही क्षण बहुमूल्य होते हैं। यदि ऐसी वृति जीवन भर बनी रहे तो यह जीवन सफल हो जायेगा, धन्य हो जायेगा।
हमारे ऋषि, मुनि तथा मनीषियों ने जो शिक्षाएं और संदेश हमें दिये वें मानव मात्र के कल्याण के लिए दिये गये। उन्होंने हमें सच्चा मार्ग दिखलाया। मनुष्य का चिंतन, उसकी वाणी तथा व्यवहार कैसा हो, उसे कैसे जीना है, यह सब शिक्षाएं हमें समय-समय पर दिये जाने के बावजूद हममें से कितने हैं जो अमल करना तो दूर उसके बारे में सोचने का कष्ट भी नहीं करते।
हमें शिक्षा दी जाती है कि प्रेम से रहो पर हम दूसरों के साथ तो क्या अपने परिवार के सदस्यों के साथ भी प्यार से नहीं रह सकते। ईश्वर ने हमें इतना कुछ दिया, लेकिन हम शिकायत ही करते रहते हैं, उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना भूल गये हैं।
हमारे पास बेशक सुख साधनों के वैभव का अभाव हो सकता है, किन्तु प्रभु ने यह मूल्यवान स्वस्थ शरीर दिया है, क्या यह सोचकर परमात्मा की कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कभी हमारी आंखें भीगती हैं? कृतज्ञता का यह भाव ही तो वह भक्ति है, जो हमें ईश्वर से जोड़ता है।
ईश्वर का प्रकाश तो चहु ओर फैल रहा है, परन्तु हम ही अभागे हैं, हमने ही अपनी खिड़कियां, दरवाजे बन्द करके रखे हुए हैं।