आज रंगों की होली है। रंग उत्साह में बिखेरे जाते हैं, रंग खुशी में बिखेरे जाते हैं। आज हंसी-ठिठोली, खुशी और उत्साह का दिन है। वह इसलिए कि हाड कंकपाती सर्दी धीरे-धीरे कम हो रही है, नई फसल घर में आने को दस्तक दे रही है।
गेहूं, चना, मटर, सरसों, जौं आदि पकने को तैयार है। कल हमने सामूहिक यज्ञ (होलिका दहन) करके पर्यावरण को स्वच्छ और संतुलित रखने का प्रयास किया। यज्ञ से भूमि उर्वर बनेगी, जल स्वच्छ होगा, वायु सुगन्धित होगी, अग्रि धूम्र रहित और आकाश निरभ्र होगा। ये पांचों तत्व शुद्ध होंगे तो हमारे शरीरों की भी शुद्धि होगी, निरोगता आयेगी।
शरीर शुद्धि के साथ अंत:करण की शुद्धि भी जरूरी है। मात्र तन शुद्ध और निरोग रहने से काम नहीं चलने वाला, मन की शुद्धि भी जरूरी है। मन शुद्ध होगा तो व्यवहार भी शुद्ध होगा, वाणी में मधुरता आयेगी। हम एक-दूसरे के साथ शुद्ध और पवित्र अंत:करण से गले लगकर रंगों की होली मनायेंगे।
रंग भी प्राकृतिक होंगे, जो फूलों से तैयार होंगे, परन्तु आज के समय हमने इस पर्व की दुर्दशा ही कर दी है। रंग भी ऐसे प्रयोग हो रहे हैं, जो त्वचा के लिए हानिकारक हैं, हम तो नालियों के कीचड तक पहुंच गये हैं।
प्रभु से प्रार्थना करे कि वह हमें सद्बुद्धि दें हम अपने पूर्वजों की भांति याज्ञिक बने ताकि होली खेलने में हम हमारे सगे-संबंधी, परिजन पडौसी और समस्त देशवासी कीचड से सर्वथा मुक्त हों कहीं भी कीचड के दाग दिखाई न दें, चहुंओर सुनाई दे केवल होली की शुभकामनाएं। ईश्वर आपके जीवन को रंगीन बनाये, यही प्रार्थना है। आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं !