सदियों की परतंत्रता की बेड़ियां काटकर स्वतंत्र हुए भारत को 77 वर्ष हो चुके हैं। 77 वर्ष की अवधि बहुत होती है। यह शरीर की वृद्धावस्था मानी जाती है। इतने वर्षों में राष्ट्र को पूर्ण समृद्ध हो जाना चाहिए था, किन्तु हम आज भी अधिकांश देशों की अपेक्षा विपन्न है। जिन क्षेत्रों में हमने प्रगति की है वे हैं भ्रष्टाचार, चरित्रहीनता, बेईमानी, अनुशासनहीनता। हम अपने अधिकारों के प्रति तो जागरूक हैं, पर कर्तव्यों के प्रति उदासीन है।
स्वतंत्रता आन्दोलन के दिनों में जो त्याग और बलिदान की भावना थी, उसका लोप हो गया है।
हमारे राष्ट्रीय ध्वज का भगवा रंग हमें त्याग की प्रेरणा देता है, किन्तु हम स्वार्थी हो गये हैं। देश के लिए त्याग की भावना यदि नागरिकों के मन में नहीं होगी, तो देश की अस्मिता की रक्षा कैसे होगी? त्याग की भावना के लुप्त हो जाने के कारण राष्ट्र के दिशाहीन होने की सम्भावना रहती है। इसी कारण युवा पीढ़ी अनुशासनहीन होती जा रही है। नारी का शोषण हो रहा है, दिन दहाड़े उनकी अस्मिता लुट रही है। समाचार पत्रों के पन्ने ऐसे अपराधों से रंगे होते हैं। शिक्षा व्यापार बन गई है। विद्यार्थी विकृत इतिहास पढ़ने को बाध्य हैं। धर्म के नाम पर पाखंड फैलाया जा रहा है। संसाधनों की दृष्टि से सम्पन्न होते हुए भी नागरिक विपन्नता झेल रहे हैं। मंदिरों से हजारों टन सोना किस काम आ रहा है। यदि उसे देश के विकास में लगाया जाये तो परमात्मा की प्रजा दुखी नहीं रहेगी। प्रभु का स्वर्ण भंडार प्रभु के भक्तों के विकास में लगेगा, राष्ट्र में सुख समृद्धि आयेगी। रामराज्य की स्थापना होगी।