रांची। “आकाश” को छूने के देश के तमाम वैज्ञानिक मिशनों में हिस्सेदार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एचईसी (हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन) के करीब 3,200 अफसरों-कर्मियों की थाली में “रोटी” नहीं है। उनका 17-18 महीनों का वेतन बकाया है।
चंद्रयान-3 के बाद शनिवार को जब देश के पहले सूर्य मिशन आदित्य एल-1 के स्पेस क्राफ्ट ने आकाश में उड़ान भरी तो रांची स्थित एचईसी के कर्मी भी गर्व से फूले नहीं समाए।
इस स्पेसक्राफ्ट के लिए होरिजोंटल स्लाइडिंग डोर, फोल्डिंग कम वर्टिकल रिपोजिशनल प्लेटफॉर्म, मोबाइल लॉन्चिंग पैड, टेन टी हैमर हेड टावर क्रेन का निर्माण इसी कारखाने में हुआ है। इन उपकरणों का निर्माण देखने के लिए इसरो की टीम ने हाल में एचईसी का दौरा भी किया था।
एचईसी के एक इंजीनियर गौरव सिंह ने कहा कि एचईसी के तमाम कर्मियों को गर्व है कि चंद्रमा के सभी अभियानों के बाद सूर्य के लिए देश के इस मिशन में हम भी भागीदार हैं। सरकार से हमारा आग्रह है कि देश के नवनिर्माण में भागीदार रही इस संस्था को बदहाली के दौर से उबारे।
एचईसी की सबसे बड़ी यूनियन हटिया प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन के महामंत्री राणा संग्राम सिंह कहते हैं कि मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज के रूप में विख्यात रहे एचईसी का यह हाल कुप्रबंधन के चलते हुआ है।
इसके मौजूदा प्रभारी सीएमडी नलिन सिंघल कभी एचईसी की ओर झांकते तक नहीं। तीन डायरेक्टर्स हैं, वह भी सप्ताह में एक से दो दिन उपलब्ध होते हैं।
कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। एक तो उनका महीनों का वेतन बकाया है और दूसरी तरफ उन्हें काम से हटाने की साजिश की जाती है। केंद्र सरकार को तत्काल इस गौरवशाली संस्थान को बचाने की पहल करनी चाहिए।
पिछले दो-तीन वर्षों से एचईसी वर्किंग कैपिटल के गंभीर संकट से जूझ रहा है। यहां के कर्मी वेतन के लिए लगातार आंदोलित हैं, लेकिन इसके साथ ही इसरो के चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 मिशन के लिए मिले वर्क ऑर्डर को पूरा करने में उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखी।
इन दोनों मिशन के लिए मोबाइल लॉन्चिंग पैड, टावर क्रेन, फोल्डिंग कम वर्टिकली रिपोजिशनेबल प्लेटफॉर्म, होरिजोंटल स्लाइडिंग डोर, 6-एक्सिस सीएनसी डबल कॉलम वर्टिकल टर्निंग और बोरिंग मशीन, 3-एक्सिस सीएनसी सिंगल कॉलम वर्टिकल टर्निंग एंड बोरिंग मशीन सहित जटिल उपकरणों की आपूर्ति तय समय के पहले की गई थी।
एचईसी ने भारी उद्योग मंत्रालय से 1,000 करोड़ रुपए के वर्किंग कैपिटल उपलब्ध कराने के लिए कई बार गुहार लगाई है। लेकिन, मंत्रालय ने पहले ही साफ कर दिया था कि केंद्र सरकार कारखाने को किसी तरह की मदद नहीं कर सकती। कंपनी प्रबंधन को खुद अपने पैरों पर खड़ा होना होगा।
करीब 22,000 कर्मचारियों के साथ 1963 में शुरू हुई इस कंपनी में अब सिर्फ 3400 कर्मचारी-अधिकारी हैं। कर्ज और बोझ इस कदर है कि इनका तनख्वाह देने में भी कंपनी पूरी तरह सक्षम नहीं है। एचईसी में पिछले ढाई सालों से स्थायी सीएमडी तक की नियुक्ति नहीं हुई।