(नरेंद्र नाथ ‘चट्टान’-विभूति फीचर्स)
पर्व हमारी एकता एवं सद्भावना के प्रतीक माने गये हैं परंतु हम दो पाया जानवर मान ही नहीं सकते। मां-बाप को तो हम मानते हैं लेकिन मां-बाप की नहीं। धर्म को तो हम मानते हैं परंतु धर्म की नहीं। इसी कारण आज अधर्म, धर्म पर भारी है- अधर्मियों की बारी है।
कर्फ्यू लगे, 144 धारा या मार्शल ला, दंगे धर्म के हों, राजनीति के हों, भाषा के हों या अन्य किसी भी क्षेत्र के हों। इन दंगों से तो बचा भी जा सकता है परंतु होली की हुड़दंग से कदापि नहीं। लोग कहते हैं कि हुड़दंगियों की दोस्ती अच्छी न दुश्मनी। होली की हुड़दंग से तो भगवान ही बचाये-घर की इज्जत बाहर न जाये। हुड़़दंगियों से अर्थात बड़े नंगों से कोई पंगा नहीं लेना चाहता।
अरे भाई! जब नंगे खुदा से बड़़े होते हैं, नंगों से खुदा भी डरता है तो फिर तुम्हें कौन बचा पायेगा? मैं पिछले बरस शहर के नामी-गिरामी, हुड़दंग टोली के भूकंप के झटके खा चुका हूं जब मेरे चरण घर से बाहर निकले तो झंझट कमेटी के गणमान्य चुरकटों ने मुझ पर रंग-गुलाल, कीचड़ एवं कालिख पेंट लगाकर फरमाइश की-‘हमें पिलाओं।’
मैंने कहा-‘भाई जब मैं खुद पीता नहीं तो तुम्हें कैसे पिला सकता हूं।‘ उन सज्जनों ने कहा ‘हमें पिलाओं अन्यथा नाली में शिरकत फरमाओ।‘ नरकपालिका की खुशबूनुमा सौंदर्य प्रधान नाली के दर्शन मात्र से जीवन धन्य होता है।
उन्होंने मुझे नाली में पटककर स्वर्गलोक की अनुभूति कराई। मेरी चट्टानी टांगे टूट गईं। भगवान भला करें इन हुड़दंगियों का जिनकी कृपा से मैं विकलांग होने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर अकल लेबर की भी न होते हुए लेबर इन्सपेक्टर बन गया और-
‘अब अपना करता हूं पोषण, और लेबरों का करता हूं शोषण।
सरकार को चूना लगाता हूं वेतन दस हजार पाता हूं॥‘
कई ज्ञानी फटे में टांग अड़ाते हैं और बताते हैं जब आसुरी प्रवत्ति को प्रश्रय देने वाली होलिका का दहन हो चुका है, अत्याचार के प्रतिमान एवं अपने आपको भगवान कहलवाने वाले असुरराज हिरण्यकश्यप का भगवान नरसिंह द्वारा बहुत पहले वध किया जा चुका है फिर होली दहन की जरूरत क्यों? अरे भैया। होलिका एवं हिरण्यकश्यप की समाप्ति के बाद से ऊपर वाले की फैक्ट्री में अब अधर्मी दो पाये ही ज्यादातर बनकर आ रहे हैं आपने शायद सुना न हो-
‘जब-जब होय धरम की हानि।
बढै़ अधम असुर अभिमानी॥’
इस कलियुग में जहां देखो वहां धर्म की हानि हो रही है, नीच, अत्याचारी, व्यभिचारी, अधर्मी लोग कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे हैं, फल-फूल रहे हैं और धर्मियों का पर्यावरण नष्ट कर रहे हैं। अधर्मी, खटमल-मच्छर और एड्स की तरह दिन दूना रात चौगुना पैदा हो रहे हैं। आसुरी प्रवृत्ति को खत्म करने के लिये होली दहन की आवश्यकता पड़़ती है परंतु लकडिय़ों की निरंतर कमी के कारण, वनों के उजाड़ होने के कारण ये बड़भागी हैं कि नष्ट नहीं हो पा रहे हैं।
अक्ल के दुश्मन कहते हैं कि हुड़दंगियों की दोस्ती अच्छी नहीं, उन मूर्खों को क्या मालूम कि-
‘जा पर कृपा आपकी होय।
ता पर कृपा करें सब कोय॥’
जिन पर हुड़दंगियों की कृपा बरसती है-सारी दुनिया उनसे डरती है। हुड़दंगियों के आप मुंह लगकर देखें तुरंत मुंह तोड़ देंगे-ईंट का जवाब पत्थर से देंगे। (विभूति फीचर्स)