संसार का कार्य ठीक से चलता रहे उसके लिए संतुलन बहुत जरूरी है। बिना संतुलन के अशान्ति ही अशान्ति है।
राजा का कोष भी खाली हो जायेगा यदि उसमें धन वसूल कर डाला नहीं जाता रहेगा। इसके विपरीत धन रखने को स्थान नहीं मिलेगा यदि उसका भोग नहीं किया जायेगा। भोगो का अधिक भोग करोगे तो दुर्बल होते जाओगे।
यदि पौष्टिक भोजन अधिक लेकर शारीरिक परिश्रम नहीं करोगे तो रूग्ण हो जाओगे। नये-नये रोग पैदा हो जायेंगे। पुरूषार्थ से भय मानकर हाथ पर हाथ रखकर बैठोगे तो दरिद्रता ही हाथ आयेगी। अधिक श्रम के साथ श्रम के अनुकूल शरीर को पौष्टिक भोजन नहीं दोगे तो दुर्बल हो जाओगे।
पैदा होने वालों की मृत्यु नहीं होगी तो जीवों को धरती पर खड़े होने को भी स्थान नहीं मिलेगा। वृक्षों को काटते रहोगे और नये वृक्ष नहीं लगाओगे तो न वृक्षों की छाया मिलेगी न फूल-फल उपलब्ध हो पायेंगे। वर्षा न हो और सूखा पड़ता रहे तो अकाल की स्थिति पैदा हो जायेगी। इसी प्रकार सूखा न हो और लगातार वर्षा होती रहे तो बाढ़ में दुनिया तबाह हो जायेगी।
संसार के हर क्षेत्र में संतुलन बना रहेगा तो संसार के कार्य सुचारू रूप से चल पायेंगे। इसी कारण परमात्मा ने संसार में संतुलन बनाकर रखा है।