मानव जीवन प्राप्त होना प्रकृति का सर्वोत्कृष्ट उपहार है। मानव जीवन प्राप्त होने का आश्य है आनन्द का द्वार खुलना। हमारे ऋषियों ने मानव जीवन को मोक्ष रूपी मंदिर का प्रवेश द्वार माना है। मानव सृष्टि निर्माता परमेश्वर की कलाकृत्ति का सर्वोपरि नमूना है। यह स्वर्णिम अवसर है, जिसमें भौतिक उन्नति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकता है।
मनुष्य योनि आत्म कल्याण करने का सबसे उत्तम साधन है। संसार सागर में तैरने की दिव्य नाव यही मानव जीवन है। पुण्य कर्म सम्पादित करके नूतन पथ तैयार करने का अवसर इसी मानव जीवन में उपलब्ध होता है।
हमारे दार्शनिक ग्रंथों का भी यही चिंतन है कि मनुष्य जीवन साधना, उपासना के माध्यम से आत्म तत्व का साक्षात्कार करने की स्वर्णिम वेला है। सद्ग्रंथों के उपदेशों तथा उच्च कोचि के साधकों के मार्ग दर्शन में इस मानव जीवन में ही अनेक प्रकार की आध्यात्मिक उपलब्धियों को अर्जित किया जा सकता है, जो मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।
सूक्ष्म शरीर पर पड़े जन्म जन्मान्तरों के संस्कारों तथा तामसिक वृत्तियों को आध्यात्मिक साधना के माध्यम से दूर करने का पावन अवसर इसी जीवन में प्राप्त होता है। इस दृश्य जगत में रहते हुए नि:स्वार्थ भाव से कत्र्तव्य कर्म करते हुए जीवन को आनंदमय बनाना मनुष्य के हाथ में है।