आज का मनुष्य इतना अधीर है कि वह सब कुछ तुरन्त पा लेना चाहता है। उसे अपने हर कर्म का ऐसा परिणाम चाहिए जो उसकी कामनाएं पूरा करने में सहायक हो। उसके पास दूसरों के लिए सोचने का समय नहीं है। दूसरों के लिए वह तभी सोचता है यदि उसका कोई स्वार्थ सिद्ध होता हो। चिंतन का यह दोष धर्म से दूर होते जाने का ही परिणाम है।
आज धर्म स्थलों पर भीड़ है पर उन लोगों की जो धर्म चिंतन से विहीन हैं। धर्म मूलत: चिंतन है, जो कर्मों में प्रकट होता है। चिंतन विहीन कर्म केवल कर्म कांड बनकर रह गये हैं।
धर्म और आध्यात्म से जुड़ना, मन, वचन और कर्म का समन्वित प्रयास है, जिससे वर्तमान से आगे देख पाने की योग्यता विकसित होती है। यदि आज पेड़ नहीं लगेंगे, बागों की स्थापना नहीं होगी तो कल छाया और फल कैसे मिलेंगे। आज यदि गुणों का सम्मान नहीं होगा, अच्छे इन्सानों को इज्जत नहीं मिलेगी तो कल का समाज कैसे होगा। कल को संवारने के लिए आज ही कुछ करना पड़ेगा।
बहुधा लोग अतीत की स्मृतियों में खोये रहते हैं या भविष्य के सपने बुनते रहते हैं, इस कारण वर्तमान उपेक्षित रहता है, जबकि होना यह चाहिए कि हम अतीत की गलतियों से वर्तमान में नसीहत लेकर अपने भविष्य को बेहतर बनायें।