गाजियाबाद। पितृ पक्ष में जहां एक तरफ लोग अपने पूर्वजों की दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दान पुण्य कर श्राद्ध कर्म करते हैं। तो वहीं दूसरी तरफ शहर के शमशान घाट में अस्थिकलश में रखीं अस्थियां अपनों की राह ताक रही हैं। हिंडन शमशान घाट के पिंडदान कक्ष में रखे अस्थिकलश की इन अस्थियों को पितृ विसर्जन अमावस्या पर महापात्र ही गंगा में प्रवाहित कर मोक्ष दिलाएंगे।
शमशान घाट में 10 से ऊपर अस्थि कलश लावारिस
गाजियाबाद के हिंडन किनारे स्थित श्मशान घाट में लगभग 10 से ऊपर अस्थि कलश रखे हुए हैं। जिनकी खोज खबर लेने के लिए कोई नहीं आ रहा है। हिंडन मुक्तिधाम के महापात्र मनीष पंडित का कहना है कि इस समय 10 से अधिक अस्थि कलश पिंडदान भवन में हैं। जिन्हें प्रतीक्षा है कि उनके बेटे-बेटियां या फिर अन्य कोई सगा संबंधी अस्थियां ले जाकर गंगा में प्रवाहित कर मोक्ष दिलाएगा।
हर महीने लगभग सौ शवों का अंतिम संस्कार :—
महापात्र मनीष के अनुसार हिंडन शमशान घाट पर हर माह करीब सौ शवों का अंतिम संस्कार होता है। इस हिसाब से एक साल में लगभग बारह सौ शवों का अंतिम संस्कार होता है। इनमें से करीब 100 शव ऐसे होते हैं। जिनका अंतिम संस्कार तो होता है लेकिन उनकी अस्थियों को लेने कोई नहीं आता है। इनमें पुलिस द्वारा लाई गई लावारिश लाशें भी होती हैं।
क्रिया कर्म के लिए उनके परिजन यहां पर छोड़ जाते
इसके अलावा कुछ ऐसी भी लाशें होती हैं। जिनके क्रिया कर्म के लिए उनके परिजन यहां पर छोड़ जाते हैं। लेकिन उनकी अस्थियों को लेने के लिए नहीं आते हैं। ऐसे में इन अस्थियों का विसर्जन हिंडन शमशान घाट पर रहने वाले महापात्रों द्वारा ही किया जाता है। उन्होंने बताया कि इनमें से दो-चार ऐसे लोग भी होते हैं जो कि बाद में अस्थि विसर्जन की बात कहकर चले जाते हैं और फिर इस तरफ का रास्ता भूल जाते हैं।
प्रवाह तो दूर अस्थियां चुनने तक नहीं आते लोग
महापात्र मनीष ने बताया कि वैसे तो दाहसंस्कार के दो तीन दिन बाद अस्थियां गंगा में प्रवाहित कर देनी जानी चाहिए। लेकिन समयाभाव होने पर एक-दो माह बाद भी विसर्जित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कई बार तो ऐसा भी होता है कि लोग अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां चुनने तक नहीं आते हैं। इस पर वो लोग स्वयं अस्थियां एकत्र कर उनको मिटटी के पात्र में सुरक्षित रखवाया जाता है। कुछ दिन इंतजार किया जाता है लेकिन बाद में उसको गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।