नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली समलैंगिक जोड़े की याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें उनमें से एक को मनोचिकित्सक के साथ परामर्श सत्र में भाग लेने का निर्देश दिया गया था। याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता और अवैध हिरासत में कैद युवती अपने लिंग अभिविन्यास (जेंडर ओरिएंटेशन) के अनुसार महिला हैं और वे दोनों शादी करना चाहती हैं और एक साथ रहना चाहती हैं।
माता-पिता की हिरासत में कैद युवती ने केरल हाईकोर्ट के 13 जनवरी, 2023 के आदेश को चुनौती दी है, क्योंकि उसके यौन रुझान को देखते हुए उसे मनोचिकित्सक के साथ परामर्श सत्र (काउंसलिंग) में भाग लेने का निर्देश दिया गया था।
याचिका में कहा गया है कि युवती के माता-पिता ने उसकी मर्जी के खिलाफ उसे अवैध हिरासत में रखा है, ताकि याचिकाकर्ता और उसके बीच विवाह बाधित हो सके।
भारत के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला ने निर्देश दिया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के माता-पिता उसे कोल्लम के पारिवारिक न्यायालय के समक्ष पेश करेंगे और वे हिरासत में लिए गए व्यक्ति का सर्वोच्च न्यायालय के एक अधिकारी के साथ साक्षात्कार की व्यवस्था करेंगे।
पीठ ने कहा कि इस अदालत के अधिकारी इस बारे में एक रिपोर्ट पेश करेंगे कि क्या उसे अवैध हिरासत में रखा गया है। पीठ ने कहा, “बिना किसी सुधार के निष्पक्ष तरीके से बयान दर्ज किए जाएंगे। रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। सूचीबद्ध होने की अगली तारीख तक उच्च न्यायालय के समक्ष आगे की कार्यवाही पर रोक रहेगी।” इसके बाद पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया।
इससे पहले दिन में, अधिवक्ता श्रीराम पी. ने प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र किया और मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की। पीठ ने सुनवाई के लिए सहमति जताई और वकील से संक्षिप्त विवरण तैयार रखने को कहा।
याचिका में कहा गया है, “विशेष अवकाश याचिका बंदी प्रत्यक्षीकरण के मूल सिद्धांत को लागू करने और हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अदालत में पेश करने की मांग कर रही है।”
इसने दलील दी कि अवैध हिरासत में कैद युवती ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हाईकोर्ट को स्पष्ट रूप से बताया कि वह याचिकाकर्ता युवती से प्यार करती है और उससे शादी करके उसके साथ खुशी से रहना चाहती है।
याचिका में कहा गया है: “हाईकोर्ट ने गलत तरीके से कैद की गई युवती को काउंसलिंग के लिए भेजने की मांग की। काउंसलिंग स्पष्ट रूप से उसके यौन अभिविन्यास को बदलने के लिए है। यह काउंसलिंग मद्रास, उत्तराखंड और उड़ीसा के उच्च न्यायालयों के कानून के तहत निषिद्ध है।”