हम सभी का मानना है कि इस सृष्टि में जो सबसे पवित्र चीज का निर्माण हुआ है, वह नारी ही है। नारी की पवित्रता एवं सुंदरता के चलते उसके शरीर में देवताओं का निवास है।यकीन मानिए जिस घर में नारी नहीं है, वहाँ ईश्वर का निवास कतई नहीं हो सकता। पूरे संसार में स्त्री से ही सौंदर्य का निर्माण होता है।
सारी रौनक और गुलजार नारी की वजह से ही इस पृथ्वी पर है। घर हो या बाहर, स्त्रियों की वजह से ही पूरा संसार गुलजार रहता है, लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ में नारी का वास्तविक अस्तित्व खतरे में आ गया है। नारी अब नारी रही कि नहीं, इसमें संदेह होने लग गया है।केवल शरीर से नारी दिखना नारी का स्वरूप नहीं है अपितु नारी में नारी के मूलभूत गुण हैं कि नहीं, ये जरूरी है।
जब हम आज की परिस्थितियों में नारी का विश्लेषण करते हैं तो हमें बहुत सी विसंगतियों का पता चलता है। आज नारी का स्वरूप ही बदल गया है और उसमें भी सबसे ज्यादा युवा लड़कियों का जिनका दिनों दिन नैतिक पतन होता जा रहा है। लड़कियाँ अपने धार्मिक मूल्यों से दूर होती जा रही हैं। आज स्कूल कॉलेज की लड़कियाँ खुलेआम शराब, सिगरेट एवं अन्य नशे की वस्तुओं का सेवन करते आसानी से दिख जाती हैं।
पहले युवा वर्ग अगर सिगरेट पीते थे तो अपने से बड़ों के आने के बाद उसे छुपाने की कोशिश करते थे, लेकिन आज लड़कियां सिगरेट पी रही हैं और अगर आप उधर से गुजर रहे हैं तो वे उसे छुपाने की जहमत भी नहीं उठाती हैं। मैं इस असहज स्थिति का कई बार सामना कर चुका हूँ।मैं बिंदास होकर लडकियों को सिगरेट और शराब पीते देखा है।
आप तर्क दे सकते हैं कि अगर पुरूष ये सब करें तो स्त्री क्यूँ नहीं। दरअसल होता ये है कि जब आप नशे में होते हैं तो आपके दैहिक शोषण की संभावना बढ़ जाती है और ऐसे में स्त्री को पुरुष के अपेक्षा ज्यादा नुकसान होने की संभावना रहती है। नशे की हालत में आपका दैहिक शोषण तो होता ही है साथ में अगर उसकी वीडियो बन गई तो बाद में उसे ब्लैकमेल के लिए आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है और ऐसा आये दिन सुनने को मिलता है और कई बार लड़कियां शर्म से आत्महत्या भी कर लेती हैं, लेकिन हम अपनी गलतियों से सीख नहीं लेते।
आज लड़कियाँ जिस तरह की ड्रेस पहनती हैं वह भी कभी-कभी बहुत उत्तेजक होता है।मैं इस बात का समर्थन नही करता कि महिलाओं को घूंघट या बुर्के में रखा जाए, लेकिन पहनावे की एक मर्यादा तो होनी ही चाहिए। आप आये दिन देखते होंगे कि ठंड के दिनों में शादी एवं अन्य समारोह के कार्यक्रम में जब सभी लोग ठंड से ठिठुर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर महिलाएं सिर्फ साड़ी और ब्लाउज में नजर आएंगी। ऊपर से ये तुर्रा कि उनका ब्लाउज पीछे की तरफ से पूरी तरह उनकी नग्न पीठ की नुमाइश करता नजर आएगा।
आजकल फैशन के नाम पर घरों में भी जवान लड़कियाँ छोटे छोटे पैंट या स्कर्ट में घरों में रहती हैं और उंनको ये लगता है कि वे तो अपने घर में हैं लेकिन उन्हें ये नही भूलना चाहिए कि उनके घर में पिता और भाई के रूप में मर्द भी घर में हैं। आपकी नंगी टांगें उनके लिए भी आकर्षण का केंद्र होंगी।
पुरुष सिर्फ पुरुष होता है और उनके लिए कोई भी स्त्री आकर्षण का केंद्र हमेशा रहती हैं चाहे उनसे उनका रिश्ता कोई भी क्यूँ ना हो। ये सही है कि रिश्ते की मर्यादा ही कोई अनहोनी होने से रोक देती है लेकिन बहुत से मामलों में ऐसा नहीं हो पाता है। दुनिया में लड़कियों के साथ ज्यादा बलात्कार के मामले में उनके करीबी रिश्तेदार ही जिम्मेदार होते हैं।
लड़कियों का सबसे ज्यादा मोलेस्टेशन उनके करीबी रिश्तेदार ही करते हैं। लड़कियों को बाहर के अलावा घर में भी उसी संयम से रहना चाहिए। स्त्रियों के शरीर के कुछ हिस्से हमेशा ढके रहना चाहिए वह चाहे घर हो या बाहर।
मैं ये कदापि नहीं कह रहा हूँ कि आप अपनी पसंद के कपड़े ना पहने बल्कि आपका जो जी में आये पहनिए, लेकिन ये ध्यान रहे समाज में कुछ लम्पट प्रवृत्ति के पुरूष रूपी भेडि़ए भी समाज में हैं और आप उनका शिकार बन सकती हैं। मेरा स्पष्ट मानना है कि किसी भी नारी को केवल अपने पति के सामने ही अनावृत होना चाहिए और जो महिलाएँ अपने पति के अलावा किसी और के सामने अनावृत होती हैं तो उन्हें वेश्या की श्रेणी में ही रखना चाहिए। मैं लिविंग रिलेशनशिप को भी व्यभिचार की श्रेणी में ही रखता हूँ। बगैर शादी के शारीरिक संबंध मानव जाति के लिए नहीं है।
अगर आप ऐसा करते हैं तो आप अभी जानवरों की श्रेणी में ही आते हैं। आज सामाजिक स्वरूप ही बदल गया है। पहले लड़कियों को उनके घर में कुछ व्यवहारिक शिक्षा दी जाती थी जिसमें घर की साफ सफाई से लेकर खाना पीना बनाने तक। आज स्थिति ये है कि पढ़ाई के चक्कर में माँ अपनी लड़कियों को किचेन में जाने ही नहीं देती हैं और ऊपर से ये तुर्रा कि बड़े गर्व से बाहर वाले को बताती हैं कि मैं तो अपनी लड़की को किचेन में जाने नहीं देती। नतीजा ये होता है कि उन लड़कियों को एक कप चाय बनाना नहीं आता है, खाना बनाना तो दूर की बात है।
मैं इस पक्ष में नही हूँ कि पढ़ाई को छोड़कर खाना बनाना सीखना चाहिए, लेकिन पढ़ाई लिखाई के साथ साथ लड़कियों को घर गृहस्थी के भी काम जानना जरूरी है। वैसे तो इस देश में सिर्फ दस प्रतिशत ही महिलाएँ ढंग से खाना बनाना जानती हैं और खाना तो छोडि़ए जनाब, ढंग की चाय भी महज पंद्रह प्रतिशत महिलाओं को आता है। महिलाओं को दुर्भाग्य से एक अदद चाय भी बनानी नहीं आती है। खाना तो बहुत दूर की बात हो जाती है।
मर्द के दिल का रास्ता पेट से होकर ही जाता है ये ध्यान रहे। अब कुछ महिलाएं भी शामिल होने लगी हैं। अब ये काम मां का होता है कि अपनी लड़कियों को सिखायें लेकिन जब मां ही नही जानती है तो अपनी बच्ची को क्या सिखाएगी। आज तो मोबाईल का जमाना है, जहाँ से आप आसानी से खाना बनाना सीख सकते हैं लेकिन लोग वहाँ से भी नही सीखना चाहते हैं।
आज आधुनिक युग की माँ इस बात पर खुश होती हैं कि उनकी बेटी के दस दस बॉयफ्रेंड हैं और इस बात पर वे इतराती फिरती हैं। सच पूछिए तो लड़कियों के उच्छृंखल होने में मां की अहम भूमिका होती है। जो माँ अपने जमाने में जो नहीं कर सकीं, वे अपनी लड़कियों से वह कराकर आत्मिक सुख प्राप्त करती हैं चाहे उसका नतीजा बुरा ही क्यूँ ना हो। पढ़ाई के नाम पर लड़कियां अपने घरों से दूर रहती हैं जहाँ उन पर कोई अंकुश नहीं होता है परिणामस्वरूप वे आवारा लड़कों के प्रेम जाल में फंस जाती हैं। उनके साथ क्या क्या होता है, इसे बताने की जरूरत नहीं है पर वे सभी लड़कियाँ एक जूठन की तरह रह जाती हैं। शादी के पहले अपने कौमार्य का दोहन करने देना एक पाप की श्रेणी में ही गिना जाएगा चाहे हम कितना भी आधुनिक हो जाएं।
आधुनिकता का मतलब अश्लीलता कतई नहीं है। आप पहले ये तय कर लो कि आप इंसान हैं या जानवर, अगर जानवर की श्रेणी में अपने आप को रखते हैं तो सब क्षम्य है। तब तो आप सभी रिश्ते नाते भी भूल जाओ और जिसके साथ चाहो, हमबिस्तर हो जाओ। सबसे दु:खद बात ये है कि आज सबसे ज्यादा लड़कियां अपने समुदाय के लड़कों को छोड़कर दूसरे समुदाय के लड़कों के प्रेम जाल में फंस रही हैं या उनसे शादी कर रही हैं। इस पर विचार करने की जरूरत है।
अपने धर्म के लड़कों को छोड़कर दूसरे धर्म के लड़कों से शादी करना अपने जीवन में आफत को दावत है। आज हमें इन सब बातों पर गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है। आधुनिकता के नाम आज लड़कियां जो पथभ्रष्ट हो रहीं हैं, उन पर लगाम लगाना जरूरी है। आज हम सभी को इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
-डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी
-डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी