Wednesday, April 30, 2025

मुजफ्फरनगर में वाणी साहित्यिक संस्था की मासिक गोष्ठी में गूंजीं रचनाएं, साहित्यकारों ने समाज और राष्ट्र पर रखे विचार

मुजफ्फरनगर। अग्रणी साहित्यिक संस्था वाणी की मासिक गोष्ठी योगेंद्र सोम के आवास विकास स्थित आवास पर आयोजित की गई। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार बृजेश्वर सिंह त्यागी ने की, जबकि संचालन सुनील कुमार शर्मा ने किया।

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गोष्ठी का शुभारंभ सपना अग्रवाल द्वारा मां सरस्वती की वंदना से हुआ। इसके बाद उपस्थित साहित्यकारों ने अपने विचारों एवं रचनाओं से गोष्ठी को ऊर्जस्वित किया।

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  • पंडित राजीव भावग्य ने सामाजिक विघटन और राजनीतिक स्वार्थ पर आधारित रचना प्रस्तुत की:
    “लड़ रहे हिंदू-मुसलमान, लूट रहा चैनो-अमन।
    हुक्मरानों को फकत बस वोट की दरकार है।”

  • संतोष कुमार फलक ने शेरों के माध्यम से इंसानियत पर चिंता व्यक्त की:
    “बुलंदी पर पहुंचा इंसान इसका तो फर्क है,
    इंसानियत से गिर गया, इसका मलाल है।”

  • समीर कुलश्रेष्ठ ने मानस और आत्मचिंतन पर आधारित रचना पढ़ी:
    “प्रतिपल सजती मानस में, सुख-दुख की अमिट रंगोली।
    दृग जल से इसे भिगोकर, क्या खेल सकोगे तुम होली।”

  • बृजराज सिंह ने हास्य गद्य रचना ‘कल्लू पंचर वर्क्स’ पर प्रस्तुत की, जिसमें भाषा की रोचकता और ग्रामीण जीवन के संवाद उभर कर सामने आए।

  • रामकुमार शर्मा ‘रागी’ ने देशभक्ति से ओतप्रोत रचना पढ़ी:
    “जवानों के दिलों में और भी अरमान बाकी हैं,
    वतन के दुश्मनों की मौत का सामान बाकी है।”

  • सुनील कुमार शर्मा ने मानवता और आतंकवाद पर तीखा कटाक्ष किया:
    “मानवता का ह्रास किया है, देख ले दानव पाकिस्तान।
    निर्दोषों का कत्ल कराकर, तूने जगा दिया है हिंदुस्तान।”

  • सपना अग्रवाल ने धर्म के नाम पर फैलाई जा रही हिंसा पर लिखा:
    “मचा के मौत का तांडव, सुनो धर्म-धर्म का गान करते हो।”

  • पुष्पा रानी ने कश्मीर पर सुंदर कविता पढ़ी:
    “जो स्वर्ग सा सुंदर, स्वप्न सा मनोहर, वह कश्मीर हमारा है।”

  • सुधीर जगधर ने नागरिक चेतना को जगाते हुए लिखा:
    “हे भारत के नागरिकों! तुम बच्चों सी आदत छोड़ो,
    बात-बात पर नाराज़ रहो ना, ये बहुत बुरी लत छोड़ो।”

  • योगेंद्र सोम ने शब्दों की शक्ति पर अपनी भावपूर्ण रचना सुनाई:
    “शब्द कितना भारी सामान हो गए हैं,
    कलाम से कलमा तक जवान हो गए हैं।”

  • बृजेश्वर सिंह त्यागी ने प्रेरणात्मक रचना प्रस्तुत की:
    “अंधेरी रात के बाद ही तो सूरज चमकता है,
    ग़म जब हद से गुजर जाए, तभी खुशी का आग़ाज़ होता है।”

  • डॉ. बी.के. मिश्रा ने राजनीति पर तीखा व्यंग्य किया:
    “आखिर कब तक? राजनीति की छल वेदी पर,
    कितने सिर अब और कटेंगे,
    छप्पन इंची सीने वाले, भाषण से कब तक चलेंगे?”

गोष्ठी के अंत में आयोजक योगेंद्र सोम ने सभी साहित्यकारों और श्रोताओं का आभार प्रकट किया।

बृजेश्वर सिंह त्यागी, डॉ. बी.के. मिश्र, संतोष कुमार फलक, डॉ. के.डी. कौशिक, सुनील कुमार शर्मा, सपना अग्रवाल, समीर कुलश्रेष्ठ, योगेंद्र सोम, रामकुमार शर्मा ‘रागी’ सहित अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

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