हिमाचल। महाभारत में द्रौपदी का विवाह पाँचों पांडवों से होने की घटना बहुत ही चर्चित है, जिसे पांडवों की स्थिति और परिस्थितियों से जोड़ा जाता है। लेकिन भारत में एक ऐसा क्षेत्र भी है जहाँ इस प्रकार की प्रथा समाज में मौजूद रही है, और इसे बहुपति प्रथा या पॉलीएंड्री कहा जाता है।
भारत के हिमाचल प्रदेश और कुछ अन्य पर्वतीय इलाकों में यह प्रथा कभी-कभी देखने को मिलती थी, खासकर किन्नौर जिले में। यहाँ पर एक महिला परिवार के सभी भाइयों से विवाह करती है। इस प्रथा का एक प्रमुख कारण भूमि का बंटवारा रोकना और पारिवारिक संपत्ति को एकजुट रखना है, जिससे परिवार में संपत्ति विभाजित न हो और सभी भाई एक ही पत्नी के साथ रहते हैं। इसके पीछे आर्थिक कारण भी होते थे, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में खेती और संसाधनों की सीमित उपलब्धता के कारण एक परिवार के लिए एकजुट रहना महत्वपूर्ण था।
हिमाचल व अरुणाचल प्रदेश में प्रथा आज भी कायम
यह अटपटी लगने वाली प्रथा भारत के हिमाचल और अरुणाचल प्रदेश की है। दावा किया जाता है कि यहां बहुपति प्रथा खत्म हो गई है, लेकिन जानकारों का कहना है कि यहां यह प्रथा अभी भी चलन में है। अब इसे खुलेआम नहीं किया जाता। इसे चोरी-छिपे चलाया जा रहा है। आपको बता दें तिब्बत में भी कई जगहों पर यह प्रथा चलन में है।
कहते हैं कि आज भी तिब्बत में कई जगहों पर सबसे बड़ा भाई किसी युवती से शादी करता है। और उसके बाद दुल्हन को बाकी भाइयों की पत्नी भी माना जाता है। सबसे बड़ा भाई पहले पत्नी के साथ समय बिताता है। फिर बाकी भाई भी दुल्हन के साथ समय बिताते हैं।
टोपी तय करती है पति का समय
कमरे के अंदर कौन है, यह जानने के लिए नियम बनाए गए हैं। जब भी कोई भाई कमरे के अंदर होता है, तो उसकी टोपी कमरे के बाहर लटकी रहती है। इस दौरान कोई दूसरा भाई कमरे में प्रवेश नहीं करता। हालांकि, अब यह प्रथा बहुत कम जगहों पर चलन में है।
इस प्रथा का मुख्य उद्देश्य जमीन के बंटवारे से बचना और कर प्रणाली से बचना था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1950 तक तिब्बत में बौद्ध भिक्षुओं की संख्या 1 लाख 10 हजार से ज्यादा थी। इसमें से 35% से ज्यादा भिक्षु विवाह योग्य उम्र के थे। परिवार के सबसे छोटे बेटे को भिक्षु बनने के लिए भेजा जाता था। ऐसे में जमीन के बंटवारे को रोकने के लिए महिलाओं द्वारा उसी परिवार के दूसरे भाइयों से शादी करने की प्रथा शुरू हुई।