आज रात मज़ा हुस्न का लीजिए,मुझे प्यार हुआ अल्लाह मियां,चिकनी चमेली पौआ चढ़ाके आई, ऊ लाला ऊ लाला तू है मेरी फेंटेसी…इन सारे गानों में क्या समानता है ? यह कि यह सारे गाने गरबा पंडालों में बज रहे हैं और उस पर बहुत सी हॉफ नैकेड महिलाएं डांस कर रही हैं, यह कैसी भक्ति है ? कौन सी देवी प्रसन्न होंगी ?और यदि यही भक्ति है तो कोठों को मंदिर घोषित क्यों नहीं कर दें? फिर सजीधजी ये महिलाएं वहीं चली जाएं तो गरबा आयोजन की फिजूलखर्ची बचेगी और माता रानी की गरिमा भी बची रहेगी।भक्ति के नाम पर ऐसी अश्लीलता बर्दाश्त करना चाहिए क्या ? ये तो लगातार बढ़ती ही जा रही है,कल कुछ ने ऐसे ड्रेस भी पहने हुए थे जिसमें बैक साइड में गर्दन से लेकर कमर तक खुला आंगन और फिर हद यह कि कुछ ने देवी जी के टैटू भी वहीं बनवा रखे थे,यह माता का अपमान नहीं है क्या ? गरबों का फिल्मीकरण ठीक नहीं है, गरबा एक आराधना का माध्यम है,इसलिए मर्यादा रखना चाहिए। पंडाल के बाहर आप कुछ भी पहनें,कुछ भी करें परन्तु देवी प्रतिमा के सामने ही देवीजी का अपमान न करें। अब पूरे समाज को सामने आकर इस वल्गेरिटी का विरोध करना चाहिए और महिलाएं खुद इस बात को समझें कि वो गरबे में जा रही हैं या कैबरे में ? यह सिर्फ माता का अपमान नहीं बल्कि बहुत बड़ा पाप है जो पूरी सनातन संस्कृति के लिए ही घातक साबित होगा। गरबा भक्ति का माध्यम है,इसमें सिर्फ भक्ति होना चाहिए एवं भजन ही बजना चाहिए। हमारे देश में देवी भजनों की कोई कमी तो है नहीं फिर इस धार्मिक आयोजन में फिल्मी गाने बजाने का क्या औचित्य है ? आज हाल यह है कि गरबा पंडालों में जाने पर ऐसा लगता ही नहीं कि आप किसी पूजा स्थली पर आए हैं बल्कि कई जगह तो ऐसा लगता है जैसे किसी फिल्मी पार्टी में या फिर किसी टेक्निकल यूनिवर्सिटी की फेयरवेल पार्टी में आए हैं बल्कि इतना खुलापन तो आम पार्टीज में देखने को भी नहीं मिलेगा जितना आजकल गरबों में देखने को मिल रहा है। आयोजक भले ही इसको कमर्शियल रूप दे रहे हों लेकिन लोगों को भी तो सोचना चाहिए कि आपकी भक्ति भावना का कोई दुरुपयोग न कर सके आखिर इसके नुकसान तो परिवार और समाज को ही उठाना पड़ेगें,इसी तरह धीरे धीरे हमारी धर्म संस्कृतियों को भ्रष्ट किया जा रहा है और परिणाम स्वरूप हमारी जड़ें कमजोर हो रही हैं, परिवार टूट रहे हैं और कभी कभी तो ऐसे माहौल में गंभीर अपराध भी हो जाते हैं फिर इसके लिए दोष हम किसी दूसरे के सर पर मढ़ते हैं। अपराध यदि न भी हों तो भी हमें हमारे धर्म और परंपराओं को तो समझना चाहिए कि यदि कोई कोई परंपरा हजार सालों से कायम है तो उसका आधार क्या है ? उसकी वजह क्या है?यह सारी परंपराएं भक्ति का माध्यम रही हैं ,गरबा माता रानी को प्रसन्न करने का अपनी मन्नतें पूरी करवाने का एक साधन रहा है और यही इसका उद्देश्य भी था, यह पूरे विधि विधान से शुरू होता था जिसमे घट स्थापना होती थी और उसी को देवी स्वरूप मानकर घट के चारों ओर नृत्य किया जाता था,कई जगह उस घट में गेहूं के जवारे उगाने का चलन था जो वंश वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक माने जाते थे लेकिन इन सारे विधि विधान को हमने भुला दिया और गरबे को सिर्फ एक मनोरंजन का माध्यम बना दिया, मनोरंजन के लिए कोई और आयोजन किया जा सकता है उसमे देवी की भक्ति को कलंकित क्यों किया जा रहा है ? और वैसे भी पूरे साल भर हम मनोरंजन तो करते ही हैं । फिल्मी धुनों पर नाचते ही हैं फिल्में देखते हैं, पार्टी करते हैं उसको तो कोई रोक नहीं रहा लेकिन जब बात गरबे की हो नवरात्रि की हो तो सारी दुनिया जानती है कि नवरात्रि तो देवी आराधना का सबसे सशक्त और सरल मुहूर्त होता है फिर इतने पवित्र मुहूर्त को हम क्यों गंदा करते हैं ? और सबसे खास बात यह कि हमें इससे फायदा कौन सा हो रहा है ? बल्कि इस तरह के वल्गर आयोजन से फायदे के बजाए नुकसान ज्यादा होता है । साल में सिर्फ दो बार यह पवित्र और शक्तिशाली नौ दिन आते हैं ,साधक इसको स्वर्णिम अवसर मानते हैं और पूरे साल इसकी प्रतीक्षा करते हैं लेकिन हम इतने पवित्र दिनों का अपमान करके घर आई हुई लक्ष्मी का अपमान करते हैं जिसका नुकसान कई बार खुद के साथ आने वाली पीढ़ियां भी भुगतती हैं । इस तरह के कई किस्से हमारे शास्त्रों में मिलते हैं लेकिन हम फिर भी गंभीर नहीं हैं। मैं जब हिमालय की यात्रा पर था तब मैंने बहुत से पहाड़ी किस्से सुने थे देवियों के , उनमें एक यह था कि देवी जी कभी भी सुंदर नारी के रूप में दर्शन नहीं देती,वो या तो छोटी कन्या के रूप में दर्शन देंगी या फिर किसी विकलांग या कुरूप महिला के रूप में दर्शन देती हैं बल्कि कई बार तो भेड़ बकरी के रूप में दर्शन देकर चली जाती हैं,इसका कारण पूछने पर तारा देवी के पुजारी ने बताया कि देवी पर किसी की कुदृष्टि न पड़े इसलिए देवी जी सौंदर्य का प्रदर्शन नहीं करती क्योंकि देवी पर कुदृष्टि डालना घोर पाप है। जिसका कष्ट भक्त को तो उठाना ही पड़ता है साथ ही देवी जी को स्वयं भी कष्ट होता है क्योंकि माता अपने बच्चों को गलत रास्ते पर नहीं ले जाना चाहती। जब हमारी देवी मां खुद इतनी मर्यादा का ध्यान रखती हैं फिर हम क्यों अमर्यादित होते हैं ? हम तो माता रानी के बराबर सुंदर भी नहीं हैं फिर कुरूपता का इतना प्रदर्शन क्यों ? और ऐसा करने से हम खुद भी पाप के कारण बने यह खुद का नुकसान नहीं है क्या ? सिर्फ नौ दिन के लिए तो हमें मर्यादा में रहना चाहिए खासकर गरबा पंडालों में । गरबा पंडाल माध्यम हैं भक्ति के यहां सिर्फ भक्ति होना चाहिए तभी माता रानी आशीर्वाद देंगी। (लेखक गीतकार हैं)
(मुकेश कबीर-विभूति फीचर्स)