Saturday, November 23, 2024

आधुनिकता की दौर में विलुप्त होती जा रही है झिझिया

दशहरा पर्व आते ही हम सभी को झिझिया देखने को मिल जाती है।  ग्रामीण इलाके के लगभग हर चौक-चौराहे व  गांव के गली मुहल्ले के सभी घरों के दरवाजे पर शाम के वक्त झिझिया खेलते हुए महिलाएं व किशोरियां को देखी जा सकती है। झिझिया खेलने की बहुत पुरानी परम्परा रही है। झिझिया नवरात्र के प्रथम दिन से नवमी तक खेली जाती है। दो- तीन दशक पूर्व झिझिया गांव की परंपरा में शामिल था,लेकिन वहीं आज के डेट में इक्का- दुक्का ही झिझिया खेलते हुए बच्चियां व महिलाएं कहीं दिखती है। झिझिया के समूह में पहले महिलाएं शामिल रहती थी, लेकिन अब केवल छोटी-छोटी बच्चियां ही अपने सिर पर झिझिया लेकर हर दुकान व हर घर के दरवाजे पर जाती है और बख्शीश में पैसे मांगती है। झिझिया मिट्टी से बना घड़ा (कलश) और उसके ऊपर ढ़क्कन  होता है। घड़ा में 99 छिद्र होता है और उस  घड़ा में एक मिट्टी का दीपक होता है। मिट्टी के दीपक में सरसों का तेल रखकर और उसमें कपड़े का बाती रखकर उसे घड़ा के अंदर रखकर झिझिया की टोली में शामिल महिलाएं व बच्चियां लगभग हर दुकान व घर के दरवाजे पर शाम 5 बजे से लेकर रात के 10 बजे तक घूमती है। और झूमकर व गीत गाकर बच्चे व परिवार को आशीष देती है। रात में झिझिया के छिद्र से बती की रोशनी आने से देखने में वह काफी खूबसूरत दिखता है। यह क्रम नवरात्र के प्रथम दिन से नवमी तक चलती है। छिद्रयुक्त घड़े सिर पर लिए महिलाएं गांव के ग्राम देवता से पूजा करके युवतियां व किशोरियां गोल गोल घूमकर नाचती है। सस्वर कंठ से गीत गाती व आनंद बिखेरती है तो जीवन के त्रिविध ताप का हरण हो जाता है। इसे आप लोक नृत्य भी कह सकते है। हालांकि आज के इस आधुनिकता की दौर में यह विलुप्त होती जा रही है। इस झिझिया नृत्य में केवल महिलाएं शामिल होती है। जो माथे पर रखे छिद्र युक्त घड़ो को संतुलित रखते हुए नृत्य व गीत प्रस्तुत करती है। झिझिया शारदीय नवरात्र के प्रतिपदा से शुरू होकर पूरे नवरात्र मनाया जाता है। झिझिया नृत्य करने वाली महिलाएं व किशोरिया गोधूलि बेला के बाद अंधकार में झिलमिल प्रकाश बिखरते हुए गीत व नृत्य करती है। नवरात्र में इस लोक नृत्य के माध्यम से जादू-टोना को शक्तिहीन करने की कोशिश की जाती है। खेतों में सूखा पडऩे पर इंद्र व सूर्य की प्रार्थना गीतों के माध्यम से की जाती है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि प्रकृति को संतुलित करने की प्रेरणा देती है। देवरिया के संभ्रांत महिला 80 वर्षीय राजकुमारी देवी ने बताया कि झिझिया के बारे में मान्यता यह है कि छोटे – छोटे बच्चे को गांव में डाइन व योगिन बुरी नजर कर देती है तो झिझिया खेल रही टीम के महिलाएं उस झिझिया से उस बच्चे का बुरी नजर उतारती है और बच्चे ठीक हो जाते है। झिझिया खेल रही टीम की महिलाएं सदस्य अधिकतर डायन व योगिन को टार्गेट कर गाना गाती है और ग्रामीणों का मनोरंजन करती है, जिससे खुश होकर ग्रामीण व दुकानदार उसे बख्शीश में रुपए पैसे देते है। बख्शीश में मिले पैसे से ही वह सरसों का तेल खरीदती है और फिर दूसरे दिन आती है और यह क्रम नवमी तक चलता है। झिझिया में महिलाएं ठेठ देहाती, भोजपुरी व  बज्जिका गीतों का प्रयोग करती है, लेकिन सभी गीतों में डायन प्रथा पर करारा प्रहार होता है। गांव की महिलाएं आज भी डायन को मानती है और अंधविश्वास में रहती है। झिझिया खेलने के दौरान ही कुछ शरारती लड़के के द्वारा झिझिया पर छोटा ईट मारकर फोड़ दिया जाता है तो इस टीम के द्वारा उस लड़के के परिजनों को काफी झिड़की दिया जाता है और उससे दंड भी लिया जाता है। झिझिया खेलने का जिक्र अपने पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। झिझिया एक तरह से खुशहाली का प्रतीक है। अब झिझिया बहुत कम होती जा रही है। इसके प्रति अब बहुत कम महिलाओं में रूचि देखी जा रही है। जिससे अब यह विलुप्त होने के कगार पर है।
-डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

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