बिहार के सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज के लालपट्टी स्थित सेंट जॉन बोर्डिंग स्कूल में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां नर्सरी क्लास में पढ़ रहे 5 वर्षीय छात्र ने कक्षा तीन में पढऩे वाले बच्चे को गोली मार दी। गोली छात्र के बाएं हाथ में लगी और गंभीर रूप से घायल हो गया। पीडि़त छात्र की पहचान आसिफ के रूप में हुई है।आरोपित बच्चे ने स्कूल में पहुंचते ही प्रार्थना से पहले अपने बैग से बंदूक निकाली और फायरिंग कर दी।
बच्चा छोटा था, पिस्तौल से जब गोली चलाई, उसे झटका लगा। जिसके कारण जिस बच्चे को गोली मारी गई थी, निशाना चूकने के कारण उसके हाथ में गोली लगी। जिसके कारण बच्चे की जान बच गई। गोली मारने वाला बच्चा 8 साल का था। जिसे गोली मारी गई, उसकी उम्र 12 साल की थी। बोर्डिंग स्कूल में यह घटना घटी। जिस छात्र ने गोली चलाई थी। वह अपने घर से स्कूल बैग में पिस्तौल रखकर लाया था। यह घटना भारत की सामाजिक व्यवस्था में छोटे-छोटे बच्चों के हिंसक विचार ओर उनके मनोभाव को देखने की है। छोटे-छोटे बच्चे इतने हिंसक क्यों हो रहे हैं। इस तरह की घटनाएं अमेरिका जैसे देशों में देखने और सुनने में आती थीं। अब यह घटनाएं भारत में भी होने लगी हैं। यह चिंता का सबसे बड़ा कारण है। पिछले कुछ वर्षों से ऑन लाइन वीडियो गेम का प्रचलन बड़ी तेजी के साथ भारत में बढ़ा है। वीडियो में बच्चों को हथियार के साथ खेलते हुए और एक दूसरे के साथ मारामारी करते हुए गेम बने हुए हैं। छोटे-छोटे बच्चे गेम देखते हुए दूध पीते हैं। नाश्ता करते हैं, और खाते-पीते हैं। यदि इन्हें मोबाइल या टीवी पर वीडियो गेम नहीं दिखाया जाए, तो यह घर पर आक्रामक हो जाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन खेलों की लत के कारण बच्चे हिंसक हो उठते हैं। अपनी भावनाओं पर उनका नियंत्रण समाप्त हो जाता है। वे अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पाते। इन खेलों के नायकों के ‘एक्शन अक्सर हिंसा से भरे होते हैं।
जब बच्चे लगातार ये खेल खेलते हैं, तो उन्हें आदत पड़ जाती है। आदतें आसानी से नहीं छूटतीं। ऐसे में जो उन्हें इन खेलों को खेलने से रोकता है, वह या तो उसे खत्म कर देते हैं, खत्म करने की सोचते हैं या खुद ही जान दे देते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि आजकल के गेम काफी आक्रामकता वाले हैं, जो बच्चा इन्हें खेलता है, वह रियलिटी और वर्चुअल दुनिया के बीच फर्क नहीं कर पाता और खुद को उस वर्चुअल दुनिया का ही हिस्सा मान लेता है। इसके लिए पेरैंटिंग, खान-पान, लाइफस्टाइल तथा दोस्त जिम्मेदार हैं।
बच्चों के हिंसक व्यवहार के कई कारण हो सकते हैं और भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भी निकल सकते हैं। ये हिंसक व्यवहार मैडिकल प्रॉब्लम और लाइफ प्रॉब्लम की ओर भी इशारा करते हैं, इसलिए माता-पिता को बच्चे के हिंसक व्यवहार का कारण जानना चाहिए और रोकने या सुधारने के लिए उचित कदम उठाने चाहिएं। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि किसी भी उम्र में बच्चों के हिंसक व्यवहार को अनदेखा नहीं करना चाहिए।
बच्चों में हिंसक व्यवहार के संकेत,जैसे गलत भाषा का प्रयोग करना, समझाने पर भी गुस्सा करना, कोई भी बात समझाने पर चीजें फैंकने लगना, मां-बाप को ही मारने दौडऩा, लोगों के बारे में गलत बोलना, गलत आदतों में पडऩा, भाई-बहन के लिए स्नेह न रखना, लड़ाकू प्रवृत्ति का होना, हमेशा उदास रहना, संवेदनशील और चिड़चिड़े रहना, बार-बार जोश में आना आपको नजर आ सकते हैं। एकल परिवारों में माता-पिता इतने व्यस्त होते हैं कि उनके पास बच्चों से बात करने का ज्यादा समय नहीं होता।
वे अक्सर इस बात पर भी नजर नहीं रख पाते कि बच्चे क्या कर रहे हैं, क्या खेल रहे हैं, उनके दोस्त कौन-कौन से हैं। दोस्त उन्हें चिढ़ाते भी हैं कि अरे! तुम्हारे माता-पिता कैसे हैं, जो तुम्हें ऑनलाइन खेल भी नहीं खेलने देते। इससे बच्चों में हीनता और अपने घर वालों के प्रति नफरत का भाव पैदा होता है, जो अपराध के रूप में बाहर निकलता है। फिजिकल, ओरल या सैक्सुअल रूप में गलत व्यवहार, घरेलू वातावरण न मिलना, माता-पिता द्वारा बच्चों की अनदेखी, दर्दनाक घटना होने या फिर स्ट्रैस होना, बच्चों को धमकाना, फैमिली प्रॉब्लम, नशीली चीजों का सेवन, शराब और अन्य गलत चीजों के सेवन से बच्चों में आक्रामकता बढ़ सकती है और वे हिंसक हो सकते हैं।
कई बार टी.वी. पर हिंसक कार्यक्रम देखने आदि से बच्चों में हिंसक व्यवहार बढ़ जाता है। घर में लगातार बंदूकें, चाकू आदि देखते रहने से भी बच्चों का व्यवहार हिंसक हो जाता है। वैसे भी अगर बच्चों को किसी भी बात के लिए मना नहीं करेंगें, टोकेंगें नहीं तो उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान कैसे होगी। एक ऑनलाइन सर्वे में माता-पिता ने कहा था कि बच्चों को गलत काम की सजा भी मिलनी चाहिए, वरना उनके मन में किसी भी बात के लिए डर नहीं रहेगा और हो सकता है वे ऐसे अपराधों को भी अंजाम देने लगें, जिनके परिणामों के बारे में उन्हें पता नहीं।
जब भी माता-पिता या घर के अन्य सदस्य देखें कि उनका बच्चा या भाई-बहन का बच्चा हिंसक व्यवहार कर रहा है तो उसे तुरंत किसी मैंटल हैल्थ एक्सपर्ट के पास ले जाना चाहिए। किसी प्रोफैशनल डॉक्टर द्वारा किया गया इलाज उसके व्यवहार को दूर करने में मदद कर सकता है। घरेलू माहौल बनाना, बच्चों के मन की बात जानना, उनसे बात करना और समझना, बच्चों की परेशानियों को अनदेखा न करना, सैक्स एजुकेशन, बच्चों के मोबाइल-टैबलेट की जांच करते रहना, प्राकृतिक जगहों पर घुमाने के लिए ले जाना, अच्छी चीजें दिखाने के लिए मोटिवेट करना, बुक्स पढऩे की आदत डालना, गलती होने पर अग्रैसिव न होना जैसी बातों से बच्चों को हिंसक होने के खतरे को कम किया जा सकता है।
हिंदू-मुस्लिम, धार्मिक एवं सामाजिक भेदभाव की हिंसक घटनाओं का जिस तरह से चित्रण नेशनल टेलीविजन चैनल कर रहे हैं, उससे बच्चों के दिमाग में हिंसा फैल रही है। कहा जाता है, छोटी उम्र के बच्चे बड़े संवेदनशील होते हैं। वह जो अपने आसपास देखते और सुनते हैं। इसका उनके ऊपर गहरा असर होता है। पहले बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता बड़े भाई-बहन अच्छी-अच्छी साहसिक एवं ज्ञानवर्धक कहानियाँ सुनाते थे। सामाजिक सद्भाव के साथ रिश्तों से जुडऩे की सीख देते थे। इसका बड़ा असर बच्चों पर संस्कार के रूप में होता था। डिजिटल इंडिया के इस दौर में बच्चों के लिए जिस तरह से हिंसक वीडियो तैयार किये जा रहे हैं। खिलौने के रूप में मिले हथियार से बच्चे खेल रहे हैं। घर और बाहर वह नफरत का वातावरण और हर तरफ हिंसा ही हिंसा बच्चों को दिखती है। इस हिंसा का असर छोटे-छोटे बच्चों पर कई तरह से पड़ रहा है। बिहार के स्कूल में 8 साल के बच्चे ने अपने से 4 साल बड़े बच्चे को गोली मारकर इसका असर दिखा दिया है। भारत में अभी तक इस तरह की घटनाएं नहीं होती थीं। अब इस तरह की घटनाएं भारत में भी होने लगी हैं, तो यह चिंता का विषय है। अमेरिका जैसे देश में खुलेआम हथियारों की बिक्री होती है।
हर घर में हथियार उपलब्ध होते हैं। अमेरिका जैसे देश में सुरक्षा की दृष्टि से हथियार रखना जरूरी होता है। भारत में हथियार बिना लाइसेंस के उपलब्ध नहीं होते हैं। सरकार और प्रशासन लाइसेंस पूरी जांच करने के बाद ही देते हैं। पिछले कई वर्षों से अवैध हथियारों की बिक्री बड़ी तेजी के साथ हो रही है। कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर अवैध रूप से हथियार बनाकर बेचे जाते हैं। बहुत कम कीमत पर अवैध हथियार आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस छोटे बच्चे के पास किस तरह से रिवाल्वर आई, कैसे यह छात्र इतना हिंसक हो गया, इसकी जांच केवल आपराधिक कार्रवाई की तरह नहीं होनी चाहिए। छोटे-छोटे बच्चों पर किस तरह से हिंसा घर कर रही है। इसका भी अध्ययन कराया जाना जरूरी है। भारत की सामाजिक एवं पारिवारिक व्यवस्था बड़ी तेजी के साथ बदली है। हर मां-बाप और बच्चों के पास इन दिनों मोबाइल फोन देखने को मिलते हैं। वीडियो गेम से लेकर इंटरनेट पर पॉर्न वीडियो इत्यादि छोटे-छोटे बच्चे और कम उम्र के युवा देखने लगे हैं। इ
सके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। एक घटना हाल ही में सामने आई है। जब 13 साल के बड़े भाई ने अपनी 8 साल की छोटी बहन के साथ दुष्कर्म किया। जब उसने पापा से शिकायत करने की बात की तो उसकी गला दबाकर हत्या कर दी।
विकास और दिखावे की दौड़ और होड़ में हम किस तरह का समाज और परिवार बना रहे हैं। इसे आसानी से समझा जा सकता है। हमारे आने वाली पीढ़ी किस तरह से आगे बढ़ेगी, इस पर गंभीरता के साथ विचार करना जरूरी हो गया है। शिक्षा के नाम पर जिस तरह से बच्चों को मोबाइल और इंटरनेट से जोड़कर उन्हें वास्तविक ज्ञान की दुनिया से दूर किया जा रहा है। काल्पनिक ज्ञान की ओर ले जाने की जो प्रवृत्ति शिक्षण संस्थानों में बढ़ रही है। वह आने वाली पीढ़ी को पूरी तरह से बर्बाद करके रख देगी।
यह घटना इस बात को दर्शाती है, कि इस तरह की घटनाओं से सबक लेकर गंभीरता से विचार करना होगा। सरकार, समाज, परिवार एवं धर्म गुरुओं को भी इस दिशा में विशेष प्रयास करना होंगे।
समय रहते इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले दिनों में सामाजिक एवं पारिवारिक रिश्तों में हिंसा बढ़ेगी। जो वर्तमान की सबसे बड़ी चिंता है।
योग विशेषज्ञ कहते हैं, स्कूली उम्र के बच्चों (6 से 12 वर्ष की आयु) में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुधार के लिए योग और मेडिटेशन के अभ्यास को काफी कारगर माना गया है।
योग बच्चों में शारीरिक संतुलन और शक्ति में सुधार करते हैं। बच्चों के लिए योग की आदत मनोवैज्ञानिक लाभ प्रदान कर सकती है। नियमित रूप से योगासनों को दिनचर्या का हिस्सा बनाकर आप बच्चों को कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से बचा सकते हैं।
योग बच्चों के शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक विकास में सहायक होता है। विशेष रूप से, बाल मनोविज्ञान अध्ययनों ने पाया है कि योग बच्चों को तनावपूर्ण या चुनौतीपूर्ण समय के दौरान केंद्रित और एकाग्र रहने में सहायक होता है।
बच्चों में बढ़ता हिंसा का जोखिम
कुमार कृष्णन – विनायक फीचर्स