शील व्यक्ति में बहुत बड़ा गुण है। शील अपने आप में एक वजनी शब्द है। अन्य भाषाओं में शील का स्थापना अथवा पर्यायवाची शब्द खोजने से भी नहीं मिलेगा। यह भारतीय आचार संहिता की गायत्री है। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक और दयानन्द इसीलिए पुरूषोत्तम है कि शील उनका स्वाभाव है। शील के बिना सारे गुण वैसे ही निस्तेज है जैसे पुतली के बिना नेत्र। वाणी, कर्म और जीविका की शुचिता में शील की पहचान होती है। प्रिय सत्य बोलने से वाणी पवित्र होती है। वाणी में अमृत भी है और विष भी। जब वाणी पर विष हावी होता है तो उपद्रव पैदा कर देती है। शीलवान व्यक्ति की वाणी से सदा ही अमृत की वर्षा होती है और शील रहित वाणी के द्वारा केवल विष का प्रसारण होता है, शील की आत्मनियंत्रण में बहुत बड़ी भूमिका होती है। आत्म विजय का शील बहुत बड़ा शस्त्र है। जिसने स्वयं को जीत लिया मानो उसने समस्त संसार को जीत लिया।