Wednesday, May 15, 2024

स्वतंत्रता दिवस विशेष: जिन्होंने रचा आजादी का इतिहास

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भारत में यूरोपीय लोग व्यापार करने आए पर बाद में यहां के शासक ही बन बैठे। सबसे पहले 1498 में पुर्तगाल से वास्को डिगामा ने कालीकट खोजा। फिर पुर्तगालियों ने गोवा, दमन व दीव पर कब्जा कर लिया। 16वीं सदी में डच ईस्ट इंडिया कंपनी व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में आईं। 17वीं सदी में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी भी भारत में आ गई।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य बिखरने लगा। पेशवाओं के नेतृत्व में मराठों का उदय हुआ और दूसरी ओर यूरोपीय कंपनियां भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने लगीं।

प्लासी का युद्ध: अब तक फ्रांसीसी और ब्रिटिश कंपनियों का ही वर्चस्व रह गया था। 1757 में अंग्रेजी कमांडर लॉर्ड क्लाइव और फ्रांसीसी कमांडर डूप्ले की सेनाओं में युद्ध हुआ। इसमें फ्रांसीसियों को हरा कर लॉर्ड क्लाइव ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की नींव रखी।

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पानीपत की तीसरी लड़ाई:  इस समय आलम यह था कि मुगल सम्राट मराठों की मदद से गद्दी पर बैठा था। उधर मराठे विजय के मद में चूर पंजाब व सरहिंद तक आक्रमण कर रहे थे। क्रोधित हो कर 1761 में अफगानिस्तान के सुल्तान अहमदशाह अब्दाली ने आक्रमण कर दिया। इस लड़ाई में मराठों की रीढ़ ही टूट गई। अब अंग्रेजों को रोकने वाला कोई न था।

बक्सर की लड़ाई: 1764 में बक्सर के मैदान में अंग्रेजों का मुकाबला बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम की सेनाओं से हुआ। फ्रांसीसियों ने भी उनका साथ दिया था पर युद्ध अंग्रेजों ने जीता। मुगल सम्राट को बंगाल बिहार और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को देनी पड़ी।
मैसूर युद्ध: हैदर अली और अंग्रेजों में मैसूर का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेजों को हार मिली। उसके बाद उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने भी अंग्रेजों की नींद उड़ा दी पर 1799 में मैसूर के चौथे युद्ध में उसने वीरगति पाई। अंग्रेजों ने अनेक युद्धों में गोरखों, पिंडारियों और मराठों का दमन किया। उसने राजपूताना के अनेक छोटे राज्यों को संरक्षण दे कर अपने अधीन कर लिया।

1857 का स्वतंत्रता संग्राम:  लॉर्ड डलहौजी ने भारत की रियासतों को हड़पने के लिए ‘लैप्स का सिद्धांत’ बनाया। इसमें दत्तक पुत्र का राज्य पर अधिकार समाप्त कर दिया गया। इस कारण 1857 की क्रांति का श्रीगणेश हुआ। अंग्रेजों की कुटिल नीति के शिकार मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर, नाना साहब पेशवा और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई भी बनीं। दिल्ली के लाल किले में गुप्त मंत्रणाएं होने लगीं। तय हुआ कि बहादुरशाह जफर के नाम से क्रांति की जाएगी और उसकी तारीख 31 मई 1857 होगी।

मेरठ का विद्रोह: बैरकपुर की छावनी में मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूस को ले कर विद्रोह कर दिया। मंगल पांडे मेरठ से ही बैरकपुर गए थे। उनके बलिदान की खबर मेरठ आई तो वहां के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। 10 मई 1857 को उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर कूच किया।
दिल्ली: 11 मई प्रात: काल ही विद्रोही सैनिक दिल्ली पहुंच गए। दिल्ली के भारतीय सैनिक भी उनसे मिल गए। अंग्रेजों को मार कर विद्रोही लालकिले में घुसे। बहादुर शाह जफर को सम्राट घोषित किया गया और हाथी पर बैठा कर चांदनी चौक में जुलूस निकाला।

दिल्ली के आसपास: क्रांति की आग शीघ्र ही दिल्ली व आसपास फैल गई। अलीगढ़, इटावा, मैनपुरी, मुरादाबाद और बरेली में भी अंग्रेजों का वध कर, बहादुरशाह जफर का हरा झंडा फहराया गया। अंग्रेजों ने मद्रास, सिख और गोरखा रेजीमेंट को बुला कर क्रांति का दमन किया। बहादुरशाह को बंदी बना कर उसके पुत्रों के सिर काट कर उनके पास भेजे गए। फिर उन्हें म्यांमार में रंगून भेज दिया गया जहां उनका देहांत हुआ।
बनारस: बनारस में अंग्रेजों ने क्रांति का बड़ा क्रूरतापूर्ण दमन किया गया। गांव के गांव जला दिए। स्त्रियों और पुरूषों को मौत के घाट उतार दिया गया।

इलाहाबाद: इलाहाबाद में मौलवी लियाकत अली के नेतृत्व में किले पर अधिकार कर लिया गया। बाद में अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों का दमन कर उनके शव नीम के पेड़ पर लटका दिए।

कानपुर: नाना साहब पेशवा ने कानपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। नाना ने अंग्रेजों को पकड़ कर नदी पार भेजा, तभी कुछ क्रांतिकारियों ने उनका वध कर दिया। कानपुर, बिठूर, लखनऊ और ग्वालियर में नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे का कई बार अंग्रेजों से सामना हुआ। अंत में तात्या टोपे कालपी चले गए।

लखनऊ: क्रांति का सबसे भीषण रूप अवध में था। वहां सेना और जनता में अपार उत्साह था। क्रांतिकारियों ने लखनऊ रेजीडेंसी पर अधिकार कर लिया था। बड़े संघर्ष के बाद क्रांति का दमन किया गया। उधर नाना साहब ने अहमद शाह को मिला कर शाहजहांपुर और बरेली पर अधिकार कर लिया। अहमदशाह लखनऊ आया तो एक देशद्रोही ने उसका वध कर दिया। अवध में फिर  क्रांति   भड़क उठी। अंत में क्रांति के नेता नेपाल की तराई में चले गए।

झांसी: 1858 में झांसी का दमन करने के लिए सर ह्यूरोज को भेजा गया। तात्या टोपे रानी लक्ष्मीबाई की सहायता के लिए आए। रानी ने किले से निकल कर अंग्रेजों से बड़ी वीरता से लोहा लिया और वीर गति पाई।
अब तात्या टोपे ही शेष बचे थे। उनके पास अब न सेना थी और न धन। वह नागपुर गए, फिर उदयपुर होते हुए अलवर पहुंचे, जहां किसी ने उन्हें पकड़वा दिया। अंत में उन्हें फांसी दी गई।

देशद्रोहियों ने ही क्रांति का दमन करवाया। क्रांति का क्षेत्र दिल्ली से बंगाल तक ही सीमित रहा। अंग्रेज ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति में सफल हुए पर इसके बाद अंग्रेजी राज कंपनी से ब्रिटेन की महारानी के हाथ आ गया। अंग्रेजों ने अपनी नीतियों में परिवर्तन किए। अंत में गांधी जी के शांतिपूर्ण आंदोलन से हमें आजादी मिली।
– नरेंद्र देवांगन

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