Wednesday, May 8, 2024

कांग्रेस की तंगदिली से बिखरने लगा इंडिया गठबंधन

मुज़फ्फर नगर लोकसभा सीट से आप किसे सांसद चुनना चाहते हैं |
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। देशभर फिलवक्त चर्चा हिंदी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की जीत की है। बीजेपी मध्य प्रदेश में सरकार बचाने में सफल रही और पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को हराकर बीजेपी सत्ता में लौट आई है। वहीं राजस्थान में हर चुनाव में सरकार बदलने का रिवाज बदलना चाह रही कांग्रेस के हाथ नाकामी लगी है. उसे सिर्फ दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में ही सफलता मिली है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की प्रचंड जीत ने चुनावी पंडितों को हैरान कर दिया है, वहीं तेलंगाना और मिजोरम में बीजेपी के बढ़ते जनाधार ने इंडी गठबंधन में खलबली मचा दी है।
कांग्रेस के लचर और निराशाजनक प्रदर्शन का असर इंडी गठबंधन की एकजुटता पर भी दिखाई देने लगा है। सवाल उठ रहे हैं कि इन नतीजों का इस गठबंधन और इसके भविष्य पर क्या असर पड़ेगा। ऐसा इसलिए भी क्योंकि नतीजों के बाद इंडिया के घटक दलों ने कांग्रेस के रवैए पर सवाल उठाए हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने 6 दिसंबर को इंडी गठबंधन की बैठक बुलाई थी लेकिन बैठक से ठीक एक दिन पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरने, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया। कांग्रेस की तरफ से सफाई दी गई है कि बारिश की वजह से चेन्नई एयरपोर्ट बंद है, ऐसे में स्टालिन भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं। वहीं नीतीश कुमार की तबीयत ठीक नहीं हैं जबकि ममता बनर्जी कार्यक्रम में व्यस्त है। गठबंधन के कई सहयोगियों के इनकार के बाद इंडी गठबंधन की बैठक को टालना पड़ गया है। अब कांग्रेस के सामने अपने कुनबे को बचाये रखने की चुनौती है।
कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन से इंडी गठबंधन के घटक दलों को प्रेशर पॉलिटिक्स करने का
मौका मिल गया। इंडी गठबंधन में शामिल दल अब कांग्रेस को गठबंधन धर्म पालन नहीं करने की याद दिला रहे है। साथ ही बता रहे हैं कि गठबंधन न करने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है। ऐसे में घटक दल कांग्रेस की आपदा में अपना अवसर तलाश रहे हैं। अपनी शर्तों पर कांग्रेस से समझौता करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने बैठक से दूरी बनाकर कांग्रेस को स्पष्ट संदेश दे दिया है।
इंडी गठबंधन की दूसरी बैठक के बाद ही ममता बनर्जी ने जो तेवर दिखाया था, उससे पता चल गया था कि गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसके बाद बैठक में शामिल होने से इनकार कर ममता बनर्जी ने अपनी नाराजगी प्रगट कर दी है। हालांकि उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि बैठक कब और कहां हो रही है इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। किसी ने मुझे बैठक के बारे में नहीं बताया था और ना ही कोई फोन आया था। अगर उन्हें पता होता तो बैठक में चली जाती है। इसके विपरीत कांग्रेस की तरफ से कहा जा रहा है कि सभी नेताओं को बैठक की सूचना दे दी गई थी। ममता बनर्जी की सफाई और कांग्रेस के बचाव ने गठबंधन की पोल खोलकर रख दी है। इससे पहले कांग्रेस की हार पर ममता बनर्जी से सवाल किया गया तो उन्होंने दो टूक कहा कि ये जनता की नहीं कांग्रेस की हार है। कांग्रेस की हार ‘ज़मींदारी एटीट्यूड की वजह से हुई है। वहीं जनता दल युनाईटेड का कहना है कि कांग्रेस के ‘घमंड की वजह से हार मिली है।
वास्तव में पांच राज्यों में चुनाव से पहले कांग्रेस हसीन सपने देख रही थी। उसे चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी। इसके माध्यम से वो अपनी बार्गेनिंग पावर बढ़ाने और इंडी गठबंधन की ड्राइविंग सीट पर मजबूती के साथ बैठकर मनमाना फैसले लेने की सोच रही थी। लेकिन खराब प्रदर्शन ने उसके उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। अब बाजी पूरी तरह पलट गई है। अब कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं और उसे इंडी गठबंधन के घटक दलों की नसीहत, शर्तें और बार्गेनिंग से जुझना पड़ रहा है। आने वाले समय में घटक दलों के दबाव और हमले और बढ़ेंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंडिया गठबंधन और कांग्रेस ने इन चुनावों में एक मौक़ा गंवाया है। इन चुनावों में विपक्षी दलों को साथ लेने और एक राजनीतिक बदलाव की पहल कांग्रेस कर सकती थी, जिससे इंडिया गंठबंधन की भावना को मज़बूती मिलती। छोटी पार्टियों को अपने साथ लेने से कांग्रेस को जो फ़ायदा मिल सकता था, उसमें उसने चूक की है। गठबंधन बनने से जो राजनीतिक शक्ल बदलती है, वह विधानसभा चुनाव में नहीं बदली। जैसे तेलंगाना में कांग्रेस ने सीपीआई के साथ गठबंधन किया था, लेकिन सीपीएम के साथ नहीं किया था। तो इस तरह से बाक़ी जगह भी छोटे दलों को साथ लाने का फ़ायदा वे नहीं ले पाए। छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का वोट बीजेपी को ट्रांसफऱ हो गया।
इसी तरह कांग्रेस राजस्थान में भारत आदिवासी पार्टी यानी बीएपी के साथ गठबंधन कर सकती थी। अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश में चुनाव लडऩा चाहती थी तो एक-दो सीटें उन्हें दी जा सकती थी। कुछ सीटें वामदलों को कांग्रेस दे देती तो नई राजनीति ला सकते थे। लेकिन कांग्रेस भी साफ्ट-हिंदुत्व के फेर में पड़ गई। लेकिन कांग्रेस ने न हिंदुत्व को चुनौती दी, न ही उस पर खेल पाई। और कांग्रेस की इन तमाम चूकों का नतीजा अब सबके सामने है। राजनीतिक विषलेषकों के अनुसार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अगर छोटे दलों को साथ लिया जाता तो फ़ायदा होता। जैसे समाजवादी पार्टी को मध्य प्रदेश में मौक़ा दिया जाता, तो बिहार और यूपी के स्ट्रक्चर को आगे बढ़ाने और स्वीकार्यता बनाने का अवसर मिलता। लेकिन अभी इसके लिए लंबी लड़ाई की ज़रूरत पड़ेगी, क्योंकि वहां पर ऐसा स्ट्रक्चर खड़ा ही नहीं था।
वास्तव में, इंडिया गठबंधन पहले ही दिन से कई चुनौतियों से जूझ रहा है। जैसे इसके घटक दल कई राज्यों में एक दूसरे के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं और वे एक-दूसरे के विरूद्ध चुनाव भी लड़ते रहे हैं। इसके साथ ही विभिन्न मुद्दों और विषयों पर उनकी राय और स्टैंड भी अलग है। मध्य प्रदेश चुनाव में गठबंधन नहीं होने से अखिलेश यादव पहले ही मोर्चा खोल चुके हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी पहले ही कांग्रेस और लेफ्ट से सीट शेयरिंग को लेकर अपना रूख साफ कर दिया है। नीतीश कुमार भी समय समय पर आंखें दिखाते रहते हैं। ऐसे में कांग्रेस अब घटक दलों के सामने पूरी तरह बेबस और लाचार हो चुकी है।
वहीं यह भी ज़रूरी नहीं कि जो विधानसभा चुनाव में हुआ, वैसा ही लोकसभा में होगा. लेकिन जो चाहते हैं कि सत्ता में बदलाव हो, उनका काम मुश्किल जरूर हो गया है। केंद्र से बीजेपी को हटाना है तो उसे गुजरात से लेकर बिहार तक  हराना ज़रूरी है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस के पास ले-देकर अभी तीन से चार ही लोकसभा सीटें हैं। यहां पर कांग्रेस के लिए कुछ सीटें जीतना ज़रूरी होगा लेकिन ये संभावना आज के बाद मुश्किल हो गई है। अगर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस चालबाजी, पैंतरेबाजी और चालाकी करने की बजाय बड़ा दिल दिखाती तो उसे ये आज ये दिन देखने नहीं पड़ते। हो सकता है आने वाले दिनों में इंडिया गठबंधन नये रंग रूप में सामने आए। और इस बात की भी प्रबल संभावना है कि तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आ जाए।
-आशीष वशिष्ठ

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