नई दिल्ली। फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप की प्रवर्तक कंपनी मेटा ने 50,000 किलोमीटर की लंबाई के अंडरसी केबल प्रोजेक्ट ‘वाटरवर्थ’ का ऐलान किया है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत-अमेरिका के बीच डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ाना है। माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट से दोनों देशों के बीच हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी का एक नया दौर शुरू होगा और इससे भारत के डिजिटल इकोसिस्टम को भी सपोर्ट मिलेगा। मेटा ने बताया कि नया प्रोजेक्ट वाटरवर्थ अमेरिका, भारत, ब्राजील, साउथ अफ्रीका और अन्य महत्वपूर्ण रीजन में इंडस्ट्री-लीडिंग कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगा और यह प्रोजेक्ट इस दशक के अंत तक पूरा हो सकता है।
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कंपनी ने आगे कहा कि प्रोजेक्ट वाटरवर्थ से इन इलाकों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ेगा, डिजिटल पहुंच बढ़ेगी और टेक्नोलॉजी विकास के नए अवसर खुलेंगे। एक बार जब यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा, इससे दुनिया के पांच महाद्वीप जुड़े होंगे और इसकी लंबाई 50,000 किलोमीटर होगी। यह उपलब्ध उच्चतम क्षमता वाली टेक्नोलॉजी का उपयोग करके बनाई गई दुनिया का सबसे लंबा समुद्री केबल प्रोजेक्ट होगा। मेटा के लिए यह प्रोजेक्ट काफी अहम है, क्योंकि कंपनी के सभी प्लेटफॉर्म पर भारत में यूजर्स की संख्या 100 करोड़ से भी ऊपर है। भारत में हाई-स्पीड इंटरनेट भी तेजी से गांव और कस्बों तक पहुंच रहा है।
ऐसे में मेटा इन सभी को अपने यूजर्स के रूप में देखती है और इससे कंपनी के लिए कमाई के नए रास्ते खुलेंगे। मेटा ने अपने ब्लॉग पोस्ट में लिखा कि कंपनी अपनी तरह की पहली रूटिंग का उपयोग कर रही है, जिसके तहत समुद्र में 7,000 मीटर तक की गहराई पर पानी में केबल बिछाई जाएगी। इसके अलावा जहाज के लंगरों और अन्य खतरों से होने वाले नुकसान से बचने के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों, जैसे कि तट के पास उथले पानी में दफन टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाएगा। प्रोजेक्ट वाटरवर्थ एक मल्टी-बिलियन डॉलर प्रोजेक्ट है। इससे डिजिटल हाईवे की विश्वसनीयता और पैमानों में बढ़ोतरी होगी। यह प्रोजेक्ट इस दशक के अंत तक पूरा हो सकता है।
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मेटा के आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा, “भारत में डिजिटल सेवाओं की बढ़ती मांग से प्रेरित होकर, यह निवेश आर्थिक विकास, मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल समावेशन के प्रति मेटा की प्रतिबद्धता को दिखाता है और यह भारत के संपन्न डिजिटल परिदृश्य और टेक्नोलॉजी इनोवेशन को भी बढ़ावा देता है।” अंडरसी केबल प्रोजेक्ट दुनिया के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की रीढ़ की हड्डी है। दुनिया का 95 प्रतिशत डेटा ट्रैफिक इन्हीं केबलों के होकर गुजरता है।