खेल मंत्रालय ने विगत रविवार यानी दिनांक 24 दिसम्बर को भारतीय कुश्ती संघ को निलंबित कर के संघ की सभी गतिविधियों पर अगले आदेश तक रोक लगा दिया। इस आदेश के साथ ही भारतीय कुश्ती संघ के नव निर्वाचित अध्यक्ष संजय पर भी निलंबन की गाज गिरी, इतना ही इसके बाद खेल मंत्रालय ने इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन को लेकर एक नई एड हॉक कमेटी बनाने को कहा जिसकी समय सीमा तीन दिन रखी गयी. इस कमेटी का काम भारतीय कुश्ती संघ की हर दिन की गतिविधियों पर ध्यान रखना रहेगा। हालांकि यह कोई ताज़ा मामला नहीं है और न सरकार ने आनन-फानन में ऐसे फैसला लिया है।
वास्तव में इस विवाद की शुरुआत 2023 के जनवरी में हो गयी थी। सबसे पहले 18 जनवरी 2023 में महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण और धमकी का आरोप लगाया था, तब जंतर-मंतर पर उनका विरोध प्रदर्शन सुर्खियों में आ गया था, ऐसा होने की एक सबसे बड़ी वजह यह थी कि इसमें साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जैसे नामचीन पहलवान शामिल थे।
इसके बाद राष्ट्रमंडल खेलों की विजेता बबीता फोगाट जो भारतीय जनता पार्टी की सदस्य भी हैं, उन्होंने ने पहलवानों से मुलाकात की और कहा कि वह सरकार से बात करेंगी। बबीता फोगेट के आश्वासन के बाद पहलवानों ने भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) अध्यक्ष पीटी ऊषा को एक शिकायत पत्र लिखा, जिसमें आरोपों की जांच के लिए जांच समिति के गठन और पहलवानों की सलाह से डब्ल्यूएफआई को चलाने के लिए एक नई समिति की नियुक्ति की मांग की, आईओए ने यौन उत्पीडऩ के आरोपों की जांच के लिए सात सदस्यीय समिति गठित की जिसमें एमसी मैरीकॉम और योगेश्वर दत्त भी शामिल किया गया।
हालांकि उस वक्त समिति की गठन के बाद पहलवानों ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मुलाकात के पश्चात विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया था, क्योंकि अनुराग ठाकुर ने पहलवानों को यह आश्वासन दिया कि आरोपों की जांच के लिए एक निगरानी समिति बनायी जायेगी और जांच पूरी होने तक बृजभूषण पद से हट जाएंगे, निगरानी समिति को जांच पूरी करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया गया, हालांकि बाद में निगरानी समिति का कार्यकाल दो हफ्ते बढ़ाया गया और 16 अप्रैल को निगरानी समिति की रिपोर्ट खेल मंत्रालय को सौंपे दिया।
रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद डब्ल्यूएफआई ने 7 मई को चुनाव की घोषणा की, लेकिन रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किया गया जबकि पहलवानों ने खेल मंत्रालय से निगरानी समिति के निष्कर्षों को सार्वजनिक करने को अनुरोध किया, 24 अप्रैल को खेल मंत्रालय ने 7 मई को होने वाले चुनाव रोक को रोक दिया, आईओए से अपने गठन के 45 दिनों के भीतर चुनाव कराने और खेल निकाय का प्रबंधन करने के लिए एक तदर्थ समिति गठित करने को कहा, हालांकि इस बीच पहलवानों के विरोध प्रदर्शन, पुलिस से झड़प के अलावे मेडल गंगा में बहाने और लौटाने के बयान और कारवाही के साथ इस विवाद में कई मोड़ आए, लेकिन अंत में 21 दिसम्बर को चुनाव संपन्न हुआ लेकिन नतीजा सिफऱ ही निकला, चुनाव में ब्रज भूषण सिह के करीबी संजय सिंह चुनाव जीतने में सफल हो गए, जीत के साथ ही ब्रज भूषण सिह के बेटे का बयान और पोस्टर सामने आया जिसपर लिखा था कि दबदबा है, दबदबा रहेगा अर्थात ब्रज भूषण सिंह ने पहलवानों को यह स्पष्ट संकेत दिया कि भले ही वो अध्यक्ष पद से हट गए हो लेकिन संघ पर दबदबा उनका ही रहेगा।
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सरकार ने सचमुच यह फैसला नव निर्वाचित भारतीय कुश्ती संघ के अनुचित निर्णयों के लिए लिया है, जिसमें खेल मंत्रालय ने जिक्र किया है कि डब्ल्यूएफआई ने मौजूदा नियम-कायदों की उपेक्षा की है , क्योकि अधिकारिक प्रेस रिलीज में खेल मंत्रालय ने कहा है कि नव निर्वाचित संघ द्वारा राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित करने का ऐलान जल्दबाजी में किया गया और नियमों का पालन नहीं हुआ, इस प्रतियोगिता का आयोजन उत्तर प्रदेश के गोंडा में होना था, जो बृजभूषण सिंह का इलाका है।
मंत्रालय ने यह भी कहा कि नवनिर्वाचित अध्यक्ष संजय कुमार सिंह ने 21 दिसंबर को ऐलान कर दिया था कि जूनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं इस साल के अंत से पहले शुरू हो जाएंगी, मगर ये नियमों के खिलाफ है, क्योंकि प्रतियोगिता शुरू करने के लिए कम से कम 15 दिन के का नोटिस देना होता है, ताकि पहलवान तैयारी कर सकें। मंत्रालय ने आरोप लगाया कि नई संस्था पूरी तरह से पुराने पदाधिकारियों के कंट्रोल में दिखाई पड़ता है, जिन पर पहले ही यौन उत्पीडऩ के आरोप हैं, या फिर यह निर्णय केन्द्र सरकार ने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दबाव में लिया गया है ? भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव के महज तीन दिन के बाद लिया गया।
केन्द्र सरकार का यह फैसला कहीं न कहीं इस बात की तरफ संकेत करता है कि यह फैसला अनियमितताओं के अतिरिक्त राजनीतक भी है, क्योंकि भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव नतीजों के बाद आंदोलन कर चुके तीनों पहलवान बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट फिर एक साथ आए और प्रेस कॉन्फ्रेंस किया, ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का बिजनेस पार्टनर और करीबी सहयोगी संजय सिंह चुना जाता है तो मैं अपनी कुश्ती को त्यागती हूँ , इस दौरान साक्षी ने अपने जूते उठाकर मेज पर रख दिए और ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी शेयर की गईं, कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार को इस बात का भय जरूर सता रहा होगा कि इससे विपक्ष को एक मजबूत मुद्दा मिल सकता है और इसका संदेश भी आम मतदाताओं के बीच गलत जाएगा, तभी सरकार अचानक जाग गयी और सरकार को देश की बेटियों की पिक्र होने लगी?
क्योंकि सरकार को अगर पहलवान बेटियों की इतनी ही चिंता है तो जाँच रिपोर्ट को निश्चित रूप से सार्वजनिक किया जाना चाहिए या फिर कम से कम पहलवानों को इससे अवगत करवाना आवश्यक था, इतना नहीं, ब्रज भूषण सिह जिन पर न सिर्फ यौन शोषण जैसा संगीन आरोप है बल्कि उनके खिलाफ पुलिस ने 13 जून को आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी), 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना), 354 ए (यौन उत्पीडऩ) और 354 डी (पीछा करना) में आरोपपत्र दाखिल किया है, मुकदमा अदालत में लम्बित है।
इसके बावजूद भी वह कैसे चुनाव में इतनी सक्रिय भूमिका निभा सका? और अपने करीबी संजय सिंह को चुनाव जीतवाने में कैसे सफल रहा? यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह केन्द्र सरकार पर जरूर लगा है क्योंकि यह एक ऐसा मामला है जिससे न सिर्फ वर्तमान अपितु भविष्य के पहलवानों और खिलाडिय़ों का भविष्य दाँव पर लगा है, सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर कैसे माता-पिता या अभिभावक अपनी बच्चियों के अकेले किसी खेल संघ के साथ विश्वास के साथ भेज सकेंगे?
ऐसी स्थिति में कैसे देश की लड़कियाँ खेल की दुनिया में उड़ान भर सकेगी? और कैसे केन्द्र सरकार का सपना की बेटी बचाव, बेटी पढाव पूरा हो सकेगा? हालांकि कारण कोई भी हो, इतना तो जरूर है कि देर से ही सही सरकार ने एक दुरूस्त फैसला लिया है, लेकिन इस फैसले के लेने में सरकार ने जितना वक्त लगाया तथा तरह से ब्रज भूषण सिंह को बचाने की कोशिश हुई है, उससे केन्द्रीय सरकार की मंशा और कार्य प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगना लाजिमी है सरकार इससे बच नहीं सकती हालांकि इतनी उम्मीद जरूर लगायी जा सकती है कि सरकार के इस निर्णय से ब्रज भूषण सिंह जैसे लोगों का दबदबा भारतीय कुश्ती संघ के ऊपर से जरूर खत्म होगा जो बेहद आवश्यक है।
-अमित कुमार अम्बष्ट, आमिली