Saturday, July 6, 2024

जानकारी: सबसे पहले उड़ने वाले मैमल्स

हाल ही में जीवाश्म खोज में मिले एक नए जीवाश्म में एक गिलहरी जैसे पशु का चित्र था जिससे यह तथ्य सामने आया कि मैमल्स स्तनधारी जीवों में वायवीय गुण पक्षियों के साथ ही पनपे हैं। इनका इतिहास पहले का  नहीं है।

वैज्ञानिकों ने एक अन्य विलुप्त प्रजाति खोजी है जो कि चीन में 125 मिलियन साल पहले पाई जाती थी। उनके अनुसार गिलहरी के आकार का यह जानवर पेड़ों के बीच ऊंची उड़ान भरता था। मैमल्स द्वारा उड़ान भरने का यह सबसे पहला उदाहरण है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन्हें देखकर ऐसा लगता है मैमल्स ने भी आकाश में पहली उड़ान पक्षियों के कुछ पहले या उनके साथ ही भरी थी।

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रिसर्च में इनके नए नमूनों की अनिश्चित तिथियां आई हैं जो इन्हें 125 मिलियन वर्ष का मानती हैं। कुछेक जीवाश्म इन्हें 164 मिलियन साल पहले के मानते हैं। वैज्ञानिक पुरानी तिथियों को ही सही मानते हैं और वे मैमल्स के हवाओं में उड़ाने की बात को पक्षियों से पहले का ही मानते हैं जिस समय उड़ान के विषय में कोई जानता भी नहीं था।

मीजोजोईक ईरा में जीवाश्मों के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों ने उडऩे वाले मैमल्स को आधुनिक युग की उडऩे वाली वाली गिलहरी से बिल्कुल भिन्न बताया। यह ईरा डायनासोर्स के खुले जीवन के लिए ज्यादा जानी जाती थी। इसमें वे छोटे व अप्रेरक मैमल्स के साथ रहते थे। वैज्ञानिकों के अनुसार वे प्रजातियां मैमल्स से कोई समानता नहीं रखती थी।

नारमन के ओकलाहामा म्युजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के जीवाश्म वैज्ञानिक रिचर्ड एल सीफीली ने इन खोजों पर विचार दिए। उनके अनुसार यह बेहद चकित करने वाली बात है कि  इतने समय पुराने समय में भी उडऩे के लिए अन्य पक्षियों की आदतों का अनुसरण किया गया। दो साल पहले सीफीली ने कहा कि सबसे पहले उत्पन्न हुए मैमल्स बहुत ही साधारण व छछूंदर की तरह दिखते हैं जो डायनासोर की छाया में ही हमेशा छिपे रहते थे जबकि  हाल ही में जीवाश्मों के जरिए पहचाने गए उडऩे वाले मैमल्स तीन मिलियन वर्ष पहले विलुप्त वे स्तनपायी जीव थे जिनके छोटे व पैने दांत होते थे।

आधुनिक युग का पहला चमगादड़ जो उडऩे में भी सक्षम  है, वह भी अपना इतिहास 51 मिलियन साल पुराना रखता है। यह भी माना जाता है कि आदि जीव के रूप में चमगादड़ इससे भी पहले से उडऩा जानते थे।
प्रसिद्ध जरनल नेचर में प्रकाशित मैमल्स डिस्कवरी के अनुसार नार्थ चीन के एक क्षेत्र मंगोलिया के भीतरी इलाकों में किसानों को बलुया पत्थर  में अंतस्थापित एक जीवाश्म मिला जिसे उन्होंने बीजिंग के इंस्टीट्यूट ऑफ वट्रीब्रेट पेलेटोलाजी व पेलेएथ्रोपोलाजी को सौंप  दिया।

न्यूयार्क में अमेरिकन म्यूजियम आफ नेचुरल हिस्ट्री के जीवाश्म विज्ञान विभाग के क्यूरेटर जिन मेंग ने कुछ साल पहले उसके नमूनों की जांच की जिसमें उन्होंने पैने व डायवर्स विविधता वाले कीटभक्षियों के दांत देखे। फिर उन्होंने जीवाश्म की धारियों का भी अध्ययन किया जिससे ये तथ्य स्पष्ट हुए कि उनके अगले व पिछले पैरों के रेशों में एक खींचने वाली झिल्ली होती है जो एअरफोइल है जो किसी भी जानवर को उडऩे व पेड़ों पर चढऩे के लिए सपोर्ट करती है।

जरनल की इस रिपोर्ट में मेंग व उसके अन्य साथियों ने लिखा कि जियोलाजी के इतिहास में इस खोज ने हवा में उडऩे वाले मैमल्स का इतिहास 70 मिलियन साल पुराना करार दिया है। जनरल के लेखन ने इसे वोलेटिकोथिरीयम एंटिक्स नाम दिया जिसका मतलब उडऩे वाले पुरातन राक्षस होता है। उनके अनुसार इस जानवर की लंबी व कड़क पूंछ होती है जो हवा में उडऩे के लिए सपोर्ट करती है और पचवार की भांति हवा को काटती है।

जीवाश्म वैज्ञानिकों के अनुसार हवा मेंं उडऩे से ये जानवर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूद कर अपनी सुरक्षा करते हैं और पंजों की सहायता से पेड़ों पर चढ़ सकते हैं और एक बड़े क्षेत्र के कीटों का भक्षण भी कर सकते हैं।
जीवाश्म के आकलन के अनुसार यह रिपोर्ट है कि उडऩे वाले मैमल्स आधुनिक युग की उड़ने वाली गिलहरी से बिल्कुल भिन्न हैं। साथ ही मीजोजोइक ईरा के भी किसी प्राणी से कोई मेल नहीं है। जीवाश्म में दिखने वाली रेखाएं बालों के साथ की झिल्ली हैं जो अगले व पिछले पैरों की रूप रेखा बताती हैं जो कि एअरफोइल की तरह प्राणी को उडऩे व ऊपर उठने में सपोर्ट करती है।
– नरेंद्र देवांगन

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