आधुनिक जीवन शैली और एकाकी जीवन प्रवृति, शांत स्वभाव वाले व्यक्ति को भी हिंसक बना सकती है। ऐसे ही वातावरण में जीते बच्चे भी हिंसक होते जा रहे हैं। बच्चों पर हिंसक फिल्में, कार्टून, माता-पिता का तनाव पूर्ण जीवन, दिनभर या अधिकांश समय अकेले रहने का घातक असर पड़ता है। अगर आप चाहते हैं कि बच्चा मृदु स्वभाव वाला रहे तो इन बातों पर ध्यान दें-
बच्चों की गलती को मार-पीट, धमका कर सुधारने की बजाय गलतियां न करने की समझाइश प्रेम से दें।
माता-पिता अपना तनाव या घरेलू छोटी-मोटी जरूरतों को बच्चों के सामने स्पष्ट न करें।
कुछ ऐसा वातावरण तैयार करें ताकि किसी क्षेत्र में असफलता मिलने पर वह हीन भावना से ग्रसित न हो बल्कि उसे आत्मविश्वास बढ़ाने वाला माहौल दें। दूसरों के सामने बच्चों की बेइज्जती न करें। अनैतिक कार्यों से बच्चों को दूर रखें जैसे, सिगरेट, तंबाकू, पान या अन्य नशीली चीजें बच्चों को खरीदने हेतु न भेजें।
कभी-कभी बच्चे दूसरे बच्चों की हरकतों को देखकर, छोटी मोटी चोरी करना या किसी वस्तु को छिपाना, झपटना जैसी हरकतों को अपना बैठते हैं। इन हरकतों के दुष्परिणाम को बच्चों को समझायें और इनसे दूर रहने की समझाइश दें। अपने से बड़ों को मान सम्मान देना, उनकी बातों को मानना जैसे गुणों का विकास बच्चों में पैदा करें।
ओछी शिक्षा देने वाली फिल्में व किताबें न पढ़ें, न देखें वरना बच्चे लुक-छिपकर उन्हें देखने का प्रयास करेंगे।
अच्छी कहानियां यानी धार्मिक, महापुरूषों के शिक्षाप्रद दृष्टांत बच्चों को सुनायें। ऐसे ही साहित्य उन्हें पढऩे को दें।
बच्चों से दोस्ताना रवैय्या रखें ताकि बच्चा अपनी समस्या आपके सामने खुलकर रख सके। कठोर अनुशासन में बच्चा उग्र होता है।
बात-बात पर बच्चों को आंख दिखाना और उन्हें किसी कार्य के प्रति रोकना ठीक नहीं है।
बच्चों के शौक अपनी क्षमतानुसार अवश्य पूर्ण करें। इससे वे खुश रहेगें।
बच्चों के सामने नशापान न करें और न ही दोस्तों को घर में बुलाकर नशापान इत्यादि की महफिल जमायें।
बच्चों के सामने पड़ोसियों की बुराई करना ठीक नहीं। यही आदत बच्चों में आती है।
यदि लाख समझाने के बावजूद बच्चा नियंत्रित नहीं हो रहा है या हर दम उदासीन या निराश रहता है तब ऐसे वक्त में मनोचिकित्सकों का सहारा लें
बच्चों में छोटी मोटी उद्दण्डता उनका अपना सामान्य गुण होता है। इसे दबाकर उसे दब्बू न बनने दें।
अगर बच्चा बात-बात पर झूठ बोलता है तो उसे समझायें।
बच्चे की हर मांग हर समय पूरी न करें। बाद में अगर आपने उसकी इच्छाओं की उपेक्षा की तो वह उग्र हो उठेगा। साथ ही बच्चों को हथियार अनुकृति वाले खिलौने न दें।
बात-बात पर अगर बच्चा रोता है तो उसके सही कारण का पता लगायें।
बच्चों के सामने गंदी गालियों का इस्तेमाल भूलकर भी न करें।
बच्चों को किसी भी गलत कार्य के प्रति उल्टी – सीधी शह न दें।
इस तरह छोटी-मोटी बातों को ध्यान में रखकर हम योग्य सुसंस्कृत व प्रतिभाशाली पीढ़ी तैयार कर सकते हैं क्योंकि बच्चे तो कुम्हार की उस मिट्टी के समान होते हैं जिससे पक्की व मजबूत ईंट बना लें या फिर बना लें टेढ़ी मेढ़ी कच्ची ईंट।
– सुनील कुमार ‘सजल’