हर इंसान चाहता है कि वह कुछ ऐसा काम करे कि मरने के बाद भी लोग उसे याद रखें, लेकिन इसके लिए कुछ अलग हटकर करना होगा, कुछ असाधारण। जिंदगी यह मौका हर किसी को नहीं देती। अंतिम समय में इंसान के मन में यह बात जरूर आती है कि काश, मैं कुछ ऐसा कर पाता कि मरने के बाद भी मेरा नाम रहे।
इस सोच को सार्थक बनाने के लिए आप नेत्रदान कर सकते है । किसी की अंधेरी जिंदगी में इन्द्रधनुषी रंग भरने से बड़ी खुशी शायद ही कोई हो। अभी कुछ दिन पहले ज्ञात हुआ कि एक कार्निया को चार भागों मे विभाजित कर चार व्यक्तियों की आंखों में उसे सफल तरीके सें प्रत्यारोपित करने में डॉक्टरों को सफलता मिली है। मरने के बाद हमारी आंखें किसी के काम आ सके तो इससे बड़ा दान और क्या हो सकता है।
नेत्रदान यानी कार्निया का दान किया जाता है। हमारे नेत्र का काला गोल हिस्सा कार्निया कहलाता है। यह आंख का पर्दा है जो पतली झिल्ली के समान है और जो बाहरी वस्तुओं का चित्र बनाकर हमें दृष्टि देता है। कई लोगों का कार्निया जन्म से ही खराब होता है। यदि कार्निया पर चोट लग जाए या इस पर धब्बे पड़ जाएं तो दिखायी देना बंद हो जाता है। हमारे देश में लाखों लोग कार्निया की समस्या से पीडि़त हैं। इन लोगों के जीवन का अंधेरा दूर हो सकता है, यदि उन्हें किसी मृत व्यक्ति का कार्निया प्राप्त हो जाए।
नेत्रहीनता के कई कारण होते हैं, जैसे कार्निया का क्षतिग्रस्त हो जाना, आई लैंस का क्षतिग्रस्त हो जाना, मोतियाबिंद, ग्लूकोमा आदि। नेत्र प्रत्यारोपण केवल कार्निया की वजह से होने वाली नेत्रहीनता में ही संभव है, क्योंकि कार्निया का ही प्रत्यारोपण हो सकता है। इसके लिए आपको बस इतना करना है कि अपने किसी परिजन या परिचित के निधन के तुरंत बाद सबसे नजदीकी आई बैंक को फोन करें, ताकि उसका कार्निया निकाला जा सके। जो भी व्यक्ति नेत्रदान करना चाहे वह अपने परिवार को इसके बारे में पहले से ही बताकर रखे। कानून में यह प्रावधान है कि आप किसी मृत संबंधी जिसने पहले से नेत्रदान की घोषणा न की हो, के भी नेत्रदान कर सकते हैं।
कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या उम्र का हो, नेत्रदान कर सकता है। जीवित व्यक्ति आंखों का दान नहीं कर सकता। यदि आपकी नजर कमजोर है, चश्मा लगाते हैं, मोतियाबिंद का ऑपरेशन हो चुका हो, उच्च रक्तचाप या मधुमेह से पीडि़त हैं तो भी आप नेत्रदान कर सकते हैं। रैबिज, एड्स या हिपेटाइटिस जैसी इंफेक्शन वालीं बीमारियों की वजह से जिन लोगों की मौत होती है, वे अपनी आंखें दान नहीं कर सकते हैं। मृत्यु के छह घंटे के भीतर ही कार्निया लेना होता है, इसलिए नजदीक के आई बैंक को सूचना देने में देर मत कीजिए। जब तक डॉक्टर न आए, तब तक मृतक की दोनों आंखें बंद कर उनके ऊपर गीली रुई रख दें। कमरे के पंखे बंद कर दें।
एयर कंडीशनर हो तो चलने दें। मुमकिन हो तो कोई एंटिबायोटिक आई ड्रॉप आंखों में डाल दें। इससे इन्फेक्शन का खतरा नहीं होगा। सिर के नीचे तकिया रखकर उसे ऊँचा कर दें। इससे टिश्यू को नम रखने में मदद मिलेगी। कार्निया निकालने में केवल दस से पन्द्रह मिनट का समय लगता है और आंखों में कोई विकृति नहीं आती। देखने में आंखें पहले जैसी ही लगती हैं। नेत्रदाता चाहे तो उसकी मृत्यु के पश्चात उसकी इच्छानुसार किसी परिचित नेत्रहीन व्यक्ति को कार्निया प्रदान किए जा सकते हैं। दान में दिए गए नेत्रों को न तो बेचा जा सकता है और न ही खरीदा। ऐसा करना कानूनन अपराध है। आज देश में नेत्रदान से जुड़ी कई सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाएं कार्य कर रही हैं। कई शहरों में नेत्र बैंक खुल चुके हैं।
-दीपक नौगांई- विभूति फीचर्स