भोपाल। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज देश में भाषाओं के संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि हर भाषा को संभाल कर रखना लेखकों का कर्त्तव्य है और एक भाषा की पुस्तकों का दूसरी भाषाओं में अनुवाद से साहित्य और ज्यादा समृद्ध होगा।
श्रीमती मुर्मू यहां केंद्रीय संस्कृति विभाग के अधीन संगीत नाटक अकादमी और साहित्य अकादमी की ओर से राज्य के संस्कृति विभाग के सहयोग से आयोजित समारोह ‘उत्कर्ष’ एवं ‘उन्मेष’ के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहीं थीं। इस अवसर पर मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उपस्थित थे।
श्रीमती मुर्मू ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत साहित्य के क्षेत्र में इस बात का विचार किया जाना चाहिए कि इस क्षेत्र में पाठकों की भागीदारी कितनी है। उन्होंने कहा कि उनकी जानकारी में उड़िया भाषा की एक पुस्तक ऐसी है, जिसके 100 से ज्यादा रीप्रिंट हो चुके हैं। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि संप्रेषणीय होना साहित्य की प्रमुख कसौटी है।
श्रीमती मुर्मू ने कहा कि उनका संथाली और उड़िया भाषा से सबसे ज्यादा परिचय है। संथाली भाषा की पुस्तकों का कई अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उन्होंने कहा कि एक भाषा की पुस्तकों का दूसरी भाषा में अनुवाद होने से साहित्य समृद्ध होता है।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत में 700 से ज्यादा आदिवासी समुदाय है, लेकिन उनकी भाषाएं और बोली इससे लगभग दो गुनी हैं। देश भर की भाषाओं को संभाल कर रखना लेखकों का कर्त्तव्य है।
उन्होंने कहा कि भारत की सबसे ज्यादा जनजातीय आबादी मध्यप्रदेश में रहती है, इसलिए ये आयोजन यहां किया जाना तर्कसंगत और भावसंगत दोनों है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हाल के वर्षों में जनजातीय समुदाय के कई कलाकारों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इसी क्रम में उन्होंने छत्तीसगढ़ की जनजातीय कलाकार तीजन बाई का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि तीजन बाई को पद्म विभूषण से सम्मानित किया जाना इस वर्ग की सभी बहनों का सम्मान है।
उन्होंने कहा कि जनजातीय वर्ग भी दूसरे वर्गों की तरह जीवन की अपनी आकांक्षाएं पूरी करना चाहते हैं। हमारा सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि अपनी संस्कृति और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखते हुए इस वर्ग के युवा आधुनिक विकास में भागीदार बनें।