Sunday, May 11, 2025

भारत बुद्धिजीवी समाज वाला देश, इसकी गौरवशाली संस्कृति विश्व भर में विख्यात : डॉ. सच्चिदानंद जोशी

मेरठ। स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय मेरठ के राहुल सांकृत्यायन सुभारती स्कूल ऑफ लिंग्विस्टिक्स एंड फॉरेन लैंग्वेजिज (भाषा विभाग) तथा कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय एवं अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय चिति संवाद, साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श रहा। इस दौरान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि सतत विकास के साथ चरित्र निर्माण पर भी ध्यान देने की अति आवश्यकता है। भारत एक बुद्धिजीवी समाज वाला देश है और गौरवशाली संस्कृति के साथ रचनात्मकता के लिए विश्व भर में विख्यात है। आज एआई तकनीक ने रचनात्मकता को खत्म करने का कार्य किया है। इससे हमारी नैसर्गिक रचनात्मक क्षमताओं का नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि प्रयागराज में चल रहे भव्य महाकुम्भ चिति का गौरवशाली उदाहरण है।

 

 

 

 

हम अपने संस्कार व परम्परा को अपनाकर चिति के उद्देश्यों को पूर्ण कर सकते है। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, सुभारती विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति कर्नल डॉ. देवेन्द्र स्वरुप, कार्यक्रम अध्यक्ष जम्मू कश्मीर के पूर्व उप मुख्यमंत्री व इतिहासकार प्रो. निर्मल सिंह, विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की उपाध्यक्ष व केन्द्रीय साहित्य अकादमी की अध्यक्ष प्रो कुमुद शर्मा, पूर्व आईएएस अधिकारी सत्येन्द्र सिंह, अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष व आकाशवाणी महानिदेशालय के पूर्व निदेशक सोमदत्त शर्मा, कार्यक्रम संयोजक एवं अध्यक्ष भाषा विभाग डॉ. सीमा शर्मा ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। चिति संवाद की प्रस्तावना अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष सोमदत्त शर्मा द्वारा की गई। कार्यक्रम अध्यक्ष जम्मू कश्मीर के पूर्व उप मुख्यमंत्री व इतिहासकार प्रो. निर्मल सिंह ने कहा कि किताबों से दूरी और तकनीक के उचित प्रयोग न करने से हमारी क्षमताओं में कमी आई है।

 

 

 

 

आज आवश्यकता इस बात कि है कि भारतीय गुरूकुल परम्परा से प्रेरणा लेकर हमे अपना ज्ञान वर्धन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा साधन है, और भारतीय भाषाएं अपने संस्कारों का प्रतिनिधित्व करते हुए भारतीय संस्कृति के विराट उदाहरण के रूप में विश्व में विख्यात है। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की उपाध्यक्ष प्रो. कुमुद ने ‘चिति’ शब्द को लेकर सर्वप्रथम उसका वृहद विवेचन करते हुए ‘चिति संवाद’ के तत्वों का विवेचन किया। उन्होंने स्त्री विमर्श पर व्याख्यान देते हुए कहा कि चिति हमारी सामूहिक अस्मिता है।पूर्व आईएएस सत्येंद्र सिंह ने साहित्य और कलाओं में चिति की भूमिका पर प्रकाश डाला। द्वितीय सत्र में हवेली संगीत एवं कथक की मनमोहक प्रस्तुति की गई जिसमें रणछोड़ लाल गोस्वामी ने हवेली संगीत की प्रस्तुति करते हुए सभागार में उपस्थित सभी को मध्यकाल (भक्तिकाल) में पहुंचा दिया।

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