उदयपुर। राजस्थान के उदयपुर में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र के दो दिवसीय 9वें सम्मेलन में डिजिटल माध्यमों से विधानमंडलों को जनता से जोड़कर अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही के द्वारा सुशासन सुनिश्चित करने से जुड़े कई पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई।
सोमवार को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के भाषण के साथ शुरू हुए दो दिवसीय सम्मेलन का समापन मंगलवार को उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ के समापन भाषण से हुआ। समापन कार्यक्रम में राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र भी मौजूद रहे।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, दोनों नेताओं ने ही हाल ही में मानसून सत्र के दौरान विपक्षी दलों द्वारा किए गए हंगामे के कारण सदन में कामकाज नहीं हो पाने को लेकर विपक्षी सांसदों, दलों और उनके नेताओं के रवैये की जमकर आलोचना की।
धनखड़ ने कहा कि हंगामे के कारण संसद और विधानमंडल अप्रासंगिक होते जा रहे हैं तो वहीं ओम बिरला ने कहा कि सदन में सुनियोजित व्यवधान करने वाले सदन की गरिमा गिरा रहे हैं।
धनखड़ ने कहा कि सीपीए का यह मंच हमें वर्तमान में विधानमंडलों और राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत महत्वपूर्ण चुनौतियों के बारे में गहन विचार-विमर्श करने का अनूठा और अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। जन प्रतिनिधियों को लोगों का आदर्श होना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनसे ऐसे आचरण की अपेक्षा की जाती है जो दूसरों के लिए अनुकरणीय हो। जब हम अपने अंतर्मन में झांकते हैं, जब हम विचार करते हैं, चिंतन करते हैं तो हमें एक चिंताजनक स्थिति दिखाई देती है।
उन्होंने कहा कि हमें जमीनी हकीकत पर ध्यान देना होगा। विधानमंडलों की बात करते हुए धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र के मंदिर के रूप में विधानमंडल संवाद, विचार-विमर्श, वाद-विवाद और चर्चा के लिए होते हैं, लेकिन इन दिनों, जनप्रतिनिधियों के कारण विधानमंडल अशांति और अव्यवस्था का केंद्र बन गए हैं।
उन्होंने कहा कि इस स्थिति में संसद और विधानमंडल अप्रासंगिक हो रहे हैं। उन्होंने जन प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे कार्यपालिका की जवाबदेही और शासन व्यवस्था में वित्तीय अनुशासन सुनिश्चित करें। जनप्रतिनिधि सबसे महत्वपूर्ण मंच पर जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनप्रतिनिधियों के पास कार्यपालिका, सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने की शक्ति है। सरकार के तीनों अंगों के बीच सामंजस्य पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र की सफलता के लिए विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका को सामंजस्य के साथ काम करना चाहिए, मिलकर और एकजुट होकर काम करना चाहिए।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि दो दिवसीय सम्मेलन सफल रहा और सम्मेलन में हुए विचार-विमर्श से विधानमंडलों के समक्ष प्रस्तुत वर्तमान और भावी चुनौतियों के समाधान में बहुत मदद मिलेगी।
बिरला ने यह भी कहा कि बदलते परिप्रेक्ष्य में, हमें अपनी संस्थाओं के अंदर विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रभावी ढंग से उपयोग करना चाहिए ताकि हमारी संस्थाएं प्रभावी परिणाम ला सकें।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रमुख वैश्विक चुनौतियों का समाधान भारत से निकले।
लोकसभा स्पीकर ने विधानमंडलों की गरिमा और मर्यादा में गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि विधानमंडलों की गरिमा इस बात पर निर्भर करती है कि लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए विधि निर्माता सदन में कैसा व्यवहार करते हैं।
हमारे विधानमंडलों की गरिमा और प्रतिष्ठा तभी बढ़ेगी जब जनप्रतिनिधि देश और समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक चर्चा और संवाद करेंगे। सदन में व्यवधान का सहारा लेने के बजाय, उन्हें लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए विधायिका को एक मंच बनाना चाहिए।
सम्मेलन के विषय के बारे में बात करते हुए बिरला ने कहा कि डिजिटल माध्यमों से विधानमंडलों को जनता से जोड़कर, हम अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही के द्वारा सुशासन सुनिश्चित कर सकते हैं।
बिरला ने पीठासीन अधिकारियों से आग्रह किया कि ‘एक राष्ट्र एक विधायी मंच’ को लागू किया जाए और विधायकों का क्षमता निर्माण भी किया जाए, जिससे न केवल विधानमंडलों की प्रभावशीलता और प्रभावकारिता में सुधार होगा, बल्कि विधानमंडलों और जनता के बीच की दूरी भी कम होगी।
उन्होंने विधायकों से विधायी प्रभावशीलता में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का आग्रह किया।
उन्होंने पीठासीन अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया कि कानून पारित होने के बाद नियम पहले बनाए जाएं ताकि कार्यान्वयन तेजी से हो सके और कानून निर्माताओं को विधायिका में पारित कानूनों के बारे में लोगों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
बिरला ने यह जानकारी भी दी कि कि 9वें सीपीए सम्मेलन में विधायी निकायों के बीच बेहतर संवाद और समन्वय के लिए सीपीए इंडिया रीजन जोन को नौ नए क्षेत्रों में पुनर्गठित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है।
राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष, डॉ. सी. पी. जोशी ने चर्चा के निष्कर्ष के बारे में बात करते हुए कहा कि प्रतिनिधियों की सर्वसम्मत राय थी कि डिजिटल माध्यम भविष्य में सहभागी लोकतंत्र में निर्णायक भूमिका निभाएंगे और विधायकों के रूप में उन्हें अपने कार्यों की सार्वजनिक जांच के लिए तैयार रहना होगा।
इसलिए, पीठासीन अधिकारी और जन प्रतिनिधि के रूप में जनप्रतिनिधियों के लिए आवश्यक है कि वे एक उदाहरण स्थापित करें और अपने कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित करें। अंत में उन्होंने सभी प्रतिनिधियों से ‘अमृत काल’ में राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का आग्रह किया।
सम्मेलन में 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पीठासीन अधिकारियों ने भाग लिया। इस अवसर पर संसद सदस्य और राजस्थान विधान सभा के सदस्य भी उपस्थित थे।