Monday, December 23, 2024

सुख की प्रसन्नता

अनुकूलता प्रतिकूलता का होना प्रारब्ध पर निर्भर है। प्रारब्ध की रचना कर्मों के आधार पर होती है अर्थात जैसे हमने कर्म अपने पूर्व जन्मों में किये हैं, उसी के अनुसार फल भी अच्छा मिलेगा या बुरा मिलेगा यह निश्चित है, परन्तु शोक करना न करना अपने हाथ की बात है।

शोक-चिंता करना, सुखी-दुखी होना, प्रारब्ध का फल नहीं यह मन की अनुभूति है। आपकी मर्जी है कि विपत्तियों में भी दुखी न हो अथवा थोडे से कष्ट में ही रोना-धोना शुरू कर दे, किसी भी परिस्थिति में शोक न करें, दुखी न हो, क्योंकि सुख-दुख तो आने-जाने वाले हैं।

संतोषी और ज्ञानी व्यक्ति हर परिस्थिति में स्वयं को संतुलित रखता है, जिस व्यक्ति को अप्राप्त विषय की इच्छा नहीं, प्राप्त होने पर भी जो हर्षित नहीं होता जो सुख-दुख से निरपेक्ष है, संतोषी उसी को कहा जाता है, ज्ञानी भी वही है। जिसका मन संतुष्ट है उसे कभी कोई शारीरिक या मानसिक पीड़ा होती ही नहीं।

ऐसा व्यक्ति दरिद्र होने पर भी साम्राज्य का सुख अनुभव कर लेता है। सुख की प्रसन्नता ही संतोष का चिन्ह है। संतोषी के मुख पर विषाद की लकीरों को स्थान नहीं मिलता। वह तो दुख हो या सुख हो हर परिस्थिति में स्वयं को संतुलित रखने की कला जानता है।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,303FansLike
5,477FollowersFollow
135,704SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय