Sunday, April 13, 2025

महावीर जयंती विशेष: युद्धोन्माद व हिंसा के वातावरण में, आज ज़्यादा प्रासंगिक हैं महावीर

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्मोत्सव के रूप में मनाए जाने वाली महावीर जयंती धार्मिक मात्र नहीं, अपितु सामाजिक और नैतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर वर्तमान समय में  तो इसकी प्रासंगिकता और भी अधिक है।‌

 सांसारिक जीवन की विद्रूपताओं से ऊबकर युवावस्था में ही राजकुमार वर्धमान से संन्यासी बने महावीर की शिक्षाएं शाश्वत प्रकाशपुंज हैं । अहिंसा, दया, करुणा व मानव मात्र की भलाई के उनके सिद्धांत आज भी अपनी प्रासंगिकता सिद्ध करते हैं।

भगवान महावीर का मूल सिद्धांत अहिंसा आज के हिंसक और अशांत वातावरण में व्यक्तिगत, सामाजिक और वैश्विक स्तर पर शांति और सह-अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। सत्य और ब्रह्मचर्य जीवन में सत्य बोलने, ब्रह्मचर्य का पालन करने और इच्छाओं पर संयम रखने मात्र से अनेक समस्याएं हल हो सकती हैं।

 उपभोक्तावादी संस्कृति और नैतिक पतन के दौर में महावीर के सिद्धांत व्यक्ति के आत्म-विकास और संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
महावीर स्वामी ने सभी जीवों के प्रति करुणा और समान दृष्टिकोण रखने की शिक्षा दी थी आज के समाज में जाति, धर्म, वर्ग और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव को मिटाने के लिए यह दर्शन बहुत उपयोगी  सिद्ध हो सकता है ।

   जैन धर्म में जीवों की रक्षा और प्रकृति के साथ सामंजस्य पर विशेष बल है। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों की कमी के दौर में भगवान महावीर का “जियो और जीने दो” का सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक है।
वैश्विक स्तर पर हो रहे संघर्षों, युद्धों और मानवाधिकार उल्लंघनों के संदर्भ में महावीर स्वामी के विचार दुनिया को एक शांतिपूर्ण मार्ग पर ले जाने में सहायक है ध्यान और आत्म-अनुशासन पर बल से आज के तनावग्रस्त जीवन में मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है

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महावीर जयंती केवल एक ऐसे जीवनदर्शन की याद दिलाती है जो वर्तमान युग की समस्याओं का समाधान प्रदान कर सकती है। महावीर की शिक्षाएँ न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए, बल्कि सामाजिक सुधार, नैतिक उत्थान और वैश्विक शांति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

      वैसे तो समय के साथ बहुत सारी चीज़ें कालपार हो जाती हैं लेकिन कुछ ऐसे सिद्धांत, घटनाएं एवं व्यक्ति होते हैं जो समय के मार्ग पर ऐसे पदचिन्ह छोड़ जाते हैं जो उनके जाने के बाद भी युगों तक आने वाली पीढ़ियों को एक राह दिखाते हैं और जीवन की सार्थकता  का संदेश देते हैं । ऐसे ही महापुरुषों की लंबी श्रृंखला में महावीर स्वामी एक ऐसे ही दैदीप्यमान नक्षत्र हैं ।

      महावीर स्वामी के के अनुसार सत्य के पक्ष में रहते हुए किसी के हक को मारे बिना, किसी को सताए बिना, अपनी मर्यादा में रहते हुए पवित्र मन से, लोभ लालच किए बिना, नियम से बंधकर सुख – दुख में समान आचरण करके ही सार्थक जीवन जीया जा सकता है। उनका कहना था कि अगर जीना चाहते है तो दूसरों को भी जीने दो। तभी   एक सार्थक जीवनजी सकते हैं, अपनी तृष्णा  एवं लालच से दूसरों की शांति भंग मत होने दें , तभी सच्ची शांति प्राप्त हो सकती है।’

     महावीर स्वामी का जीवन एक शांत पथिक का जीवन था, जब अनंत बार भोग लेने के बाद भी उनके जीव को तृप्ति नहीं हुई तब भोगों से मन हट गया, किसी चीज की चाह नहीं रही। परकीय संयोगों से बहुत कुछ छुटकारा मिल गया। अब जो कुछ भी रह गया उससे भी छुटकारा पाकर महावीर मुक्ति की राह देखने लगे। 30 वर्ष की आयु में ही त्रिशलानन्दन महावीर कर्मों का बन्धन काटने के लिये तपस्या और आत्मचिंतन में लीन रहने का विचार करने लगे। कुमार की विरक्ति का समाचार सुनकर माता-पिता को बहुत चिंता हुई। कुछ ही दिनों पहले कलिंग के राजा जितशत्रु ने अपनी सुपुत्री यशोदा के साथ कुमार वर्द्धमान का विवाह किया था।  माता पिता व परिजनों ने उन्हे  बहुत समझाया पर मुक्ति के राही को भोगों के लालच जरा भी विचलित नहीं कर सके और अंततः माता-पिता को मोक्षमार्ग की स्वीकृति देनी पडी।

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अपनी शिक्षाओं में महावीर स्वामी ने कहा, ‘‘प्रत्येक आत्मा परमात्मा बन सकता है। कर्मों के कारण आत्मा का असली स्वरूप अभिव्यक्त नहीं हो पाता है। कर्मों को नष्ट कर शुद्ध, बुद्ध, निरज्जन और सुखरूप स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है। जीवन के सार तत्त्वों का प्रचार करते हुए भगवान महावीर अंतिम समय मल्लों की राजधानी पावा पहुँचे। वहाँ के उपवन में कार्तिक कृष्ण अमावस्या मंगलवार, 15 अक्टूबर, 527 ई0 पू0. को 72 वर्ष की आयु में उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ।

    आज जब दुनिया युद्ध के संकट, लालच एवं तृष्णा से अशांत होती जा रही है तब महावीर स्वामी की शिक्षाओं की कहीं ज्यादा ज़रुरत है । आज काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ व प्रतिशोध बढ़ते जा रहे हैं व जप, तप, त्याग न के बराबर रह गए हैं ऐसे में महावीर और भी प्रासांगिक हो जाते हैं ।

 महावीर के उपदेशों का सार जीव मात्र के प्रति दयाभाव रखना है। अस्तेय के रूप में वे लालच,जमाखोरी व चोरी की प्रवृत्ति को मानव मात्र से दूर रखने का मंत्र  देते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करने की उनकी सीख पर यदि मानव चले  तो समाज से बलात्कार जैसी समस्याएं जड़ से ही समाप्त हो जाएं ।

      महावीर स्वामी ने जो बातें कहीं वे केवल जैन धर्म के अनुयाईयों पर ही नहीं वरन् सारे मानव समाज पर असर करती हैं। अहिंसा का महत्व किसी से छुपा नहीं है । लालच व भ्रष्टाचारण के गर्त में डूबते मानव के मानवीय गुण लौटाने में अस्तेय व अचौर्य क्या नहीं का सकते?  ब्रह्मचर्य समाज व देश तथा व्यक्ति को ताकत ही नहीं देता वरन् उसका उद्धार करता है, उसका पारिवारिक जीवन शुद्ध व सात्विक करता है । आज भी स्वामी महावीर की शिक्षाएं दुनिया को मुक्ति का मार्ग दिखाने में सक्षम हैं ।

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डा घनश्याम बादल

 

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