Monday, December 23, 2024

चंबल के पूर्व डकैत मलखान सिंह ने थामा कांग्रेस का हाथ, राम जानकी मंदिर को ज़मीन दिलाने को उठाये थे हथियार

भोपाल। चार दशक पहले चंबल के बीहड़ में डकैत रहे मलखान सिंह ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। बुधवार को उन्होंने भोपाल पहुंचकर प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने उन्हें कांग्रेस की सदस्यता दिलाई। इस मौके पर सागर और छतरपुर में जिला शिक्षाधिकारी रहे संतोष शर्मा भी कांग्रेस में शामिल हुए।

इस मौके पर मलखान सिंह ने कहा कि वे अब कांग्रेस के लिए प्रचार करेंगे। उन्होंने दावा किया कि जहां वे प्रचार करेंगे, वहां कांग्रेस जीतेगी। उन्होंने कहा कि पहले अन्याय के खिलाफ बंदूक उठाई थी, आज अन्याय के खिलाफ बिगुल बजाया है। आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को साफ कर देंगे और कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाएंगे।

नेता प्रतिपक्ष गोविन्द सिंह ने कहा कि भाजपा मलखान सिंह को 20 साल साथ रखकर शोषण करती रही। मलखान सिंह अन्याय के खिलाफ बागी हुए थे। उन्होंने भाजपा में अन्याय होते देखा तो उसके खिलाफ बगावत की।

मलखान सिंह कभी बीहड़ के दस्यु किंग कहलाते थे। उनके अनुसार वे अन्याय के खिलाफ बागी थे। गांव के रामजानकी मंदिर की 100 बीघा जमीन को मंदिर में मिलाने के लिए उन्होंने हथियार उठाए थे। उस दौरान वे पंच भी थे। मलखान सिंह और उनकी गैंग ने 15 जून 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की मौजूदगी में समर्पण कर दिया था। ये सरेंडर देखने के लिए मैदान में 30 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी।

इसके बाद मलखान 6 साल जेल में रहे। साल 1989 में सभी मामलों में बरी करके उन्हें रिहा कर दिया गया। मलखान भाजपा से प्रभावित हुए और साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार के लिए वे कई मंचों का चेहरा बने। हालांकि 2019 में भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर नाराज होकर उन्होंने पार्टी छोड़ दी और शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का दामन थाम लिया था। इसके बाद धौरहरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन हार गए थे।

लगभग एक दशक तक चंबल में आतंक का पर्याय रहे मलखान सिंह ने अब राजनीति की नई पारी का आगाज कर दिया है। पुरानी पीढ़ी तो डकैत मलखान सिंह से वाकिफ होगी। लेकिन, नई पीढ़ी मलखान सिंह से अनजान ही है, इसलिए हम बताते हैं कि मलखान सिंह कैसे पहुंचा बीहड़ और उसने एक दशक तक किस तरह की अपराधों को अंजाम दिया।

मलखान सिंह का नाता भिंड जिले के बिलाव गांव से रहा है। उनके चंबल के बीहड़ में कूदने की भी कहानी ज्यादती और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ने से जुड़ी हुई है।

गांव के तत्कालीन सरपंच कैलाश नारायण पंडित से उनकी दुश्मनी चली और उसी के चलते मलखान सिंह को बागी होना पड़ा। मलखान सिंह को डकैत कहलाना कभी रास नहीं आया। वह अपने को हमेशा बागी कहता रहा।

बात करते हैं मलखान सिंह के बीहड़ में कूदने की। उनके गांव में एक मंदिर से जुड़ी जमीन थी, जिस पर उस दौर के सरपंच कैलाश पंडित ने कब्जा कर रखा था। इसी बात से मलखान सिंह नाराज था और वह इस जमीन को मुक्त कराना चाहता था।

1972 में उसका विवाद हुआ और उसके बाद उन्होंने बंदूक उठा ली। वह 1972 से 75 तक बीहड़ में रहा और डकैती के काम में लगा रहा। इस दौरान उन पर तीन मामले भी दर्ज हुए।

1976 में मलखान सिंह ने कैलाश को मारने की कोशिश की। मगर वह उसमें असफल रहा, हां एक अन्य व्यक्ति जरूर उनकी गोली का शिकार हुआ और उसकी मौत हो गई।

इसके बाद मलखान सिंह ने उत्तर प्रदेश के जालौन में शरण ली, धीरे-धीरे उसने  डकैत गिरोह बनाया और भिंड के अलावा मुरैना, उत्तर प्रदेश के इटावा, जालौन, आगरा और राजस्थान के धौलपुर में कई वारदातों को अंजाम दिया।

मलखान सिंह ने लगभग एक दशक में न केवल मजबूत डकैत गिरोह बनाया बल्कि उसके बढ़ते अपराधों ने पुलिस की नींद उड़ा दी थी। 1980 के आते-आते उनके गिरोह पर लगभग 100 मामले दर्ज हो चुके थे और पुलिस लगभग एक लाख का इनाम घोषित कर चुकी थी।

चंबल के बीहड़ का मलखान सिंह ऐसा डकैत रहा है, जिसने लूटपाट, डकैती और अपहरण तो खूब किए, मगर उसके गिरोह के अपने सिद्धांत हुआ करते थे कि कोई भी डकैत किसी महिला पर बुरी नजर नहीं डालेगा। अगर कोई ऐसा करेगा तो उसे चौराहे पर खड़ा करके गोली मार दी जाएगी।

कहा जाता है कि मलखान सिंह ने महिला अपराध में लिप्त कई लोगों को मौत के घाट उतारने में भी हिचक नहीं दिखाई।

चंबल के बीहड़ का मलखान सिंह ऐसा डकैत रहा, जो सेमी-ऑटोमेटिक और ऑटोमेटिक राइफल चलाने में महारत रखता था। बागी मलखान सिंह के नाम पर 1982 तक हत्या के 12, अपहरण के 28, हत्या के प्रयास के 19 और डकैती के लगभग दो दर्जन मामले दर्ज हो चुके थे।

इसी दौरान मलखान सिंह के मन में आत्मसमर्पण का ख्याल आया और उनके लिए एक जिम्मेदार व्यक्ति ने मध्यस्थता निभाई। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की मौजूदगी में मलखान सिंह ने 15 जून 1982 को आत्मसमर्पण कर दिया। मलखान सिंह छह साल तक जेल में रहा और उसके बाद 1989 में उसे सभी मामलों से बरी किए जाने के साथ रिहा कर दिया गया। मलखान सिंह लगभग एक दशक से सियासत की राह पर चल रहा है और अब उसने कांग्रेस का दामन थामकर नई पारी की शुरुआत की है।

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