हापुड। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) देश के लिए प्रगति की आवाज है। इससे बदलाव की शुरूआत होगी। देश में भी नागरिक समान होंगे। किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा। ये बातें एक एक कार्यक्रम में मौलाना बदरूद्दीन अहमद ने कही। मदरसा दीनी इबादत में यूसीसी को लेकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें मुस्लिमों ने यूसीसी को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। मौलाना बदरूद्दीन अहमद ने कहा कि हम भारत जैसे बहु-धर्म वाले देश में यूसीसी के निहितार्थों पर विचार करने के लिए मजबूर हैं। हमारे लिए, भारत के लिए एक समान नागरिक संहिता अनिवार्य है। एक से अधिक नागरिक संहिता वाले देश की संभावना अराजकता को बढ़ावा देती है, एक ऐसी भावना जिससे मुस्लिमों को दूर रहना चाहिए।
एडवोकेट असलम सिद्दीकी ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में दृढ़ता से निहित यूसीसी की सूक्ष्म खोज शुरू करते हुए, विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करते हुए धार्मिक समुदायों में समान कानूनों के लिए इसके जोरदार आह्वान से मैं आश्चर्यचकित हूं। अनुच्छेद 25-28 के प्रावधानों को शामिल करने पर यूसीसी का विचार-विमर्श जारी है। जो राष्ट्रीय एकता का पोषण करते हुए संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने के महत्व को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि भारत की असली ताकत इसके विविध और बहुलवादी समाज में है।
जहां यूसीसी खतरा पैदा करने के बजाय, व्यक्तिगत कानूनों में सामंजस्य स्थापित करने, व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हुए सामूहिक राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने के अवसर के रूप में उभरता है। मुस्लिम समुदाय के टेपेस्ट्री के भीतर, जिसे अक्सर एक समान ब्लॉक मानने की गलती की जाती है। पसमांदा मुसलमानों सहित विविध दृष्टिकोणों को पहचानना अनिवार्य हो जाता है। यूसीसी भेदभाव को दूर करने, समान प्रतिनिधित्व बढ़ाने और जाति और वर्ग भेदभाव को मिटाने के लिए एक प्रकाशस्तंभ के रूप में खड़ा है।
इस दौरान उन्होंने कहा कि यूसीसी के प्रति मेरा समर्थन धार्मिक सीमाओं से परे सभी नागरिकों के लिए एक एकीकृत कानूनी ढांचा स्थापित करने के प्रस्ताव में निहित है। इस दौरान अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए।