Thursday, December 26, 2024

मीरापुर चुनाव बनेगा जयंत का ‘परीक्षा केंद्र’, चन्दन चौहान-अनिल कुमार के प्रयोग का भी होगा परिणाम तय !

केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के जनाधार की वापसी का एक और मौका मीरापुर उपचुनाव के जरिए मिला है। लोकसभा चुनावों में भाजपा गठबंधन में शामिल हुए जयंत चौधरी की लोकप्रियता और मतदाताओं पर पकड़ 13 नवंबर को मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट के होने वाले उपचुनाव के परिणाम के रुप में सामने आयेगी। अनिल कुमार को मंत्री और चन्दन चौहान को सांसद बनाने के जयंत के प्रयोग का परिणाम भी इस चुनाव में सामने आएगा।

जयंत के दादा और भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह ने 1977 में जनता पार्टी को जिताने में निर्णायक भूमिका अदा की थी और उनके करीब 100 सांसद, जनता पार्टी के विजयी उम्मीदवारों में शामिल थे। चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री भी बने और उससे पहले दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। उनके पुत्र चौधरी अजीत सिंह को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ लेकिन वह कई बार केंद्र में काबीना दर्जे के मंत्री ज़रूर रहे।

उत्तर प्रदेश में चौधरी अजित सिंह से अलग होकर मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह से पिछड़ों की गोलबंदी कर अपने बूते जनाधार वाली पार्टी खड़ी की, उसका उल्टा असर, पश्चिम की किसान उन्मुख पार्टी राष्ट्रीय लोकदल पर पड़ा। ना तो चौधरी अजीत सिंह और ना ही उनके बेटे जयंत चौधरी, रालोद को अभी तक बड़ी पार्टी के रूप में खड़ी कर पाए।

चौधरी चरण सिंह के जमाने में किसान और पिछड़ी जातियां रालोद की मुख्य धूरी में थे। जाट के अलावा यादव, कुर्मी, गुर्जर, पाल , सैनी आदि किसान जातियाँ उन्हें अपनी आवाज मानती थी, मुस्लिम उनके साथ रहते थे लेकिन बाद में पिछड़ी जाति उनका साथ छोड़ती चली गई। केवल जाट ही उनका आधार बना रह गया।

जाट आर्यसमाजी था और धर्म निरपेक्ष था, लेकिन 1991 में यूपी में बीजेपी ने अपने उठान के साथ ही जाट को हिन्दू बनाकर उसमे भी बंटवारा शुरू करा दिया, जिसकी वजह से अजित सिंह कमजोर होते चले गए और चुनावों में दूसरे राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन करने को मजबूर होना पड़ा। यह सिलसिला अब तक बदस्तूर जारी है।

बदली परिस्थितियों में जयंत चौधरी रालोद के जनाधार का विस्तार करने की गरज से गैर जाट बिरादरियों पर दांव लगा रहे हैं। जिसके चलते उन्होंने उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में राजपाल बालियान के बजाए अनुसूचित जाति के अनिल कुमार को प्रतिनिधित्व दिलाया। खतौली में मदन भैया को विधायक और बिजनौर से चन्दन चौहान को सांसद बनाकर जयंत ने गुर्जर बिरादरी को वापस जोड़ने का भी प्रयास किया है।

मुज़फ्फरनगर दंगे ने पश्चिम की राजनीति की दिशा ही बदल दी है, पश्चिम में जाट मुस्लिम के साथ पिछड़ा गठबंधन रालोद की ताकत बना रहता था लेकिन 2013 के दंगों ने सारे समीकरण बिगाड़ दिए है। ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनावों में रालोद को अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से बड़ा सहारा मिला और उसके 9 विधायक चुनाव जीत गए।

मुज़फ्फरनगर में भी सपा के चार नेता राजपाल सैनी, सौरभ स्वरूप, अनिल कुमार और चंदन चौहान रालोद के टिकट पर  चुनाव लड़े थे , जिनमें से अनिल कुमार और चंदन चौहान चुनाव जीत गए और ये दोनों सपा और रालोद के संबंध टूटने पर भी रालोद का हिस्सा बने रहे और आज ये ही दोनों सपाई नेता, मुज़फ्फरनगर में रालोद का मुख्य चेहरा बने हुए है। रालोद के टिकट पर हारे बाकी दोनों नेता राजपाल सैनी और सौरभ स्वरुप भाजपाई हो गये।

2024 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम में जाट मतदाताओं में बीजेपी के प्रति नाराजगी थी लेकिन अचानक से भाजपा और रालोद साथ आ गए, उनके समर्थक हक्के बक्के रह गए । चंदन चौहान बिजनौर और राज कुमार सांगवान बागपत से रालोद के सांसद चुन लिए गए। इस उपचुनाव में भी बीजेपी उनके साथ है, ऐसे में भी जयंत चौधरी अपने कार्यकर्ता को टिकट देने का साहस नहीं कर पाए। उन्होंने भाजपा से मिथलेश पाल को उधार ले लिया जिससे उनके समर्थक फिलहाल बहुत निराश नज़र आ रहे  है।

पूर्व सांसद मलूक नागर अपने बेटे अयान नागर को टिकट चाहते थे। सांसद चंदन चौहान जिताऊ उम्मीदवार के रूप में अपनी पत्नी याशिका चौहान को टिकट चाहते थे। रालोद के इन दोनों बड़े नेताओं के अलावा पार्टी के पुराने नेता अजीत राठी, प्रभात तोमर, रमा नागर,रामनिवास पाल और संदीप मलिक को भी टिकट दे पाने की हिम्मत नहीं कर पाए। जिससे उनके अपने समर्थक बहुत हताश है और अब तो दुखी मन से उनके समर्थक ही गुस्से में जयंत के ‘दुष्यंत चौटाला’ बनने की भविष्यवाणी करने लगे है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीतिक समझ रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक जयंत चौधरी के इस फैसले को बेहतर तो मान रहे हैं लेकिन यह सवाल भी उठा रहे है कि क्या मिथलेश पाल को टिकट देकर भी जयंत, पाल जैसी पिछड़ी जातियों में अपने प्रति फिर कोई विश्वास पैदा कर पाएंगे ?, अनिल कुमार को कैबिनेट मंत्री बनाने के बाद क्या किसी दलित का रुझान अब तक रालोद की तरफ बना पाए है ? क्या चन्दन और मदन भैया को आगे बढाकर गुर्जर में वापस अपने प्रति लगाव पैदा कर पाए है ?

अभी हाल ही के हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट संकेत दिया है कि ओबीसी जातियों पर दांव लगाना सफलता की गारंटी बन गया है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने इसी मंत्र के बूते हरियाणा में तीसरी बार शानदार विजय हासिल की जबकि माहौल उनके विरूद्ध था और बाजी कांग्रेस और उसके नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पक्ष में दिख रही थी। पूर्वी यूपी में अखिलेश यादव ने भी अन्य पिछड़ी जातियों को यादव के साथ जोड़कर लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनने का गौरव हासिल किया है।

ऐसे में जयंत चौधरी की ताजी कोशिशों को पश्चिम में रालोद का जनाधार बढ़ाने के रूप में तो देखा जा रहा है। रालोद और भाजपा गठबंधन को मीरापुर उपचुनाव में विपक्षी दलों की ओर से तमाम उम्मीदवार मुस्लिम उतारे जाने का लाभ भी लग रहा है। पर क्या रालोद नेता सांसद चंदन चौहान, मंत्री अनिल कुमार इस स्थिति को अपने पक्ष में भुनाने में सफल हो पाएंगे ?, ये दोनों क्या अपना प्रभाव रालोद को इस चुनाव में दिखा पाएंगे ?

बहरहाल चुनाव परिणाम 23 नवम्बर को किसके पक्ष में जायेगा, यह तो वक्त बताएगा लेकिन अखिलेश यादव मीरापुर सीट पर भाजपा-रालोद गठबंधन की कड़ी परीक्षा जरूर लेंगे और मीरापुर का चुनाव जयंत का भविष्य और अपने प्रयोग की सफलता और असफलता भी तय करेगा।

-सुरेंद्र सिंघल/अवनीश चौहान  

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