Friday, November 22, 2024

मध्यम वर्गीय समाज ही न्याय का पोषक

सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक होगा कि मध्यमवर्गीय समाज के अन्तर्गत कौन-कौन व्यक्ति आते हैं, अर्थात् मध्यम वर्गीय व्यक्ति को कैसे परिभाषित किया जाय? मध्यमवर्गीय व्यक्ति को मध्यम आयवर्गीय के रूप में भी जाना जा सकता है। परन्तु मध्यम आय की सीमा निर्धारित करना विवाद का विषय बन सकता है। क्योंकि पृथक-पृथक स्थानों एवं पृथक परिस्थितियों के अनुसार आय के मापदण्ड भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। अत: इस वर्ग को ऐसे वर्ग के रूप में जाना जाय जो ‘रोटी-कपड़ा और मकान जैसी न्यूनतम आवश्यकताओं तथा सामान्य आवश्यकताओं को पूर्ण कर पाने में सक्षम होता है तो अधिक उचित होगा। इस वर्ग के पास धन तो होता है, उस धन से अपने परिवार की मुख्य आवश्यकताएं पूर्ण कर सकता है परन्तु फिजूल खर्ची, विलासिता पूर्ण खर्चों के लिए अतिरिक्त धन नहीं होता। धन की उपलब्धता सीमित होती है। कभी-कभी उसे अपना जीवन स्तर बनाये रखने में परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।
इस वर्ग (मध्यम वर्ग) की अपनी अनेक विशेषताएं होती हैं। यदि अपवादों को छोड़ दिया जाय तो यह वर्ग चरित्रवान, परिश्रमी, महत्वाकांक्षी एवं सिद्धान्तवादी व्यक्तियों का समूह है। क्योंकि इस वर्ग के पास धन सीमित होता है, अत: अपनी सन्तान को संयमित एवं मितव्ययी बनाये रखने के लिए मजबूर होता है। वह अपरोक्ष रूप से युवा वर्ग की और बढ़ती संतान को नियंत्रित कर पाने में सक्षम होता है। फिजूलखर्ची एवं विलासितापूर्ण जीवन से दूरी तथा बच्चों में संघर्ष करने की प्रवृत्ति को बल देता है। अपने जीवन स्तर से ऊपर उठकर उच्च जीवन स्तर पर जीने की लालसा उन्हें जुझारू एवं महत्वाकांक्षी बना देती है।
इस वर्ग के पास शिक्षा प्राप्त करने के पर्याप्त साधन होते हैं। शिक्षित सामाजिक वातावरण होने के कारण जीवन स्तर ऊंचा उठाने की प्रेरणा भी होती है। अत: योग्य, परिश्रमी, युवा अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ण कर पाने में सफल भी होते हैं। यही कारण है देश को योग्य, होनहार, प्रतिभावान नागरिक सबसे अधिक यही वर्ग उपलब्ध कराता है। आइये देखें उच्च वर्ग अर्थात् सर्व साधन सम्पन्न वर्ग क्यों पिछड़ जाता है? यदि अपवादों को छोड़ दें, विलासिता के सभी साधनों के रहते इस वर्ग की सन्तान दुनिया की जमीनी हकीकत से अनजान रह जाती है। उसमें संघर्ष पूर्ण जीवन जीने की कला का अभाव रहता है। अनेक बार अभिभावकों की लापरवाही (पर्याप्त समय एवं मार्गदर्शन न दे पाने के कारण) से सन्तान आलसी, बेपरवाह, अय्याश, नशेड़ी और गैर जिम्मेदार बन जाती है। उसे धन उपार्जन के महत्व का पता नहीं हो पाता। उसे अपने भावी जीवन को संवारने की समझ नहीं बन पाती। उसके मन में देश, समाज एवं परिवार के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा (तमन्ना) का अभाव रहता है। उनके पास बैसाखी के रूप में पूर्वजों की कमाई बेशुमार दौलत होती है जिसके सहारे अपना भावी जीवन बखूबी बिता देने में सक्षम होते हैं। अत: अतिरिक्त परिश्रम कर, अधिक शिक्षा ग्रहण करने के संकल्प का अभाव बना रहता है।
यदि संतान योग्य है तो वह पारिवारिक व्यवसाय एवं प्रतिष्ठा को कायम रखने में सफल हो जाती हैं और व्यवसाय को नई बुलंदियों पर पहुंचा पाती हैं, अयोग्य एवं अतिविलासी संतान पारंपरिक व्यवसाय को पतन की ओर भी ढकेल देती हैं। उच्च श्रेणी के व्यक्तियों से न्याय की उम्मीद करना (अपवाद को छोड़कर) व्यर्थ ही है। उनके लिए धन दौलत ही उनका सिद्धान्त है, न्याय है, सम्मान है एवं कानून है।
ऐसा कहना भी उचित नहीं होगा कि सर्व साधन सम्पन्न व्यक्ति अभिमानी, अन्यायी एवं समाज के प्रति गैर जिम्मेदार ही होते हैं। परन्तु इस समाज में बहुत बड़ा युवा वर्ग उपरोक्त विशेषताओं से परिपूर्ण होता है। यह ऐसा वर्ग है जिसने कभी किसी वस्तु के अभाव को नहीं देखा, जिसने अपने व्यापार को ऊंचाइयों तक ले जाने में कोई कष्ट अनुभव नहीं किया जिसने शिक्षा को कभी महत्व नहीं दिया। अब देखते हैं निम्न आय वर्ग, न्यूनतम आय वर्ग जो जीवन भर अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघर्ष करता है। शिक्षा के अभाव में मेहनत-मजदूरी कर किसी प्रकार अपने परिवार के लिए खाद्य सामग्री जुटा पाते हैं। धन का अभाव उन्हें जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं अर्थात् ‘रोटी-कपड़ा, मकान को पूर्ण नहीं होने देता।
अत: बच्चों को पढ़ा पाना भी उनकी सामर्थ्य के बाहर होता है। अक्सर परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बच्चों को रोजगार करना पड़ता है। यदि बच्चे किसी प्रकार स्कूल जाने में समर्थ भी होते हैं तो पर्याप्त सुविधाओं के अभाव में शिक्षा की गुणवत्ता नहीं आ पाती और बच्चों के लिए उच्च श्रेणी के स्वप्न देख पाना भी सम्भव नहीं हो पाता।
निम्न आय वर्ग के व्यक्ति अशिक्षित होने के कारण न्याय और अन्याय से अनभिज्ञ रहते हैं। धन के अभाव में अपने पक्ष में न्याय पाना भी सम्भव नहीं हो पाता। न्याय के लिए आवाज उठाने के लिए भी धन एवं पर्याप्त ज्ञान की आवश्यकता होती है। जो इस वर्ग के पास नहीं होता।  अत: पर्याप्त शिक्षा, आवश्यक उपलब्ध धन, सिद्धान्तवादी जमीनी हकीकत से परिचित मध्यम आय वर्ग ही न्याय की बात उठाता है और समाज को नियंत्रित करता है। देश के विकास में सर्वाधिक योगदान यही वर्ग करता है।
सत्यशील अग्रवाल – विभूति फीचर्स

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