आमतौर पर सासु मां के बारे में शादी के पहले या बाद में महिलाओं की सोच होती है कि भले ही वह कितना भी प्यार-दुलार करें, लेकिन सास कभी मां तो हो ही नहीं सकती।
देखिए अब जमाना बदल रहा है। पहले जहां बहुएं सास से परेशान रहा करती थीं, अब बदलते समय में बाजी बहुओं के हाथ आ गई है। आज हम अपने इर्द-गिर्द ऐसे लोगों को देखते हैं, जो बुढ़ापे में अपने बच्चों की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।
हमें अपने इर्द-गिर्द कई ऐसी बहुएं मिल जाती हैं, जो अपनी आजादी में किसी प्रकार का न हस्तक्षेप सहन करती हैं और न शादी के बाद पति के हाथों की कठपुतली बनकर रहना उन्हें गंवारा होता है। सास की सुनने को तो वह कतई तैयार नहीं होती। यदि वह कामकाजी है, वह घर में अपना रौब चलाती है।
पहले जहां बहुएं सास से ‘पीड़ित’ रहती थीं, सो अब स्थिति उलट है। अब सास की ‘सेवा’ का तो सवाल ही नहीं, सारा घर का काम सास से ही कराना चाहती है। सासों की अब यह आम शिकायत है कि बहु सम्मान की बात तो दूर उपेक्षा और अपमान करती है। घर के किसी फैसले में सास की सम्मति लेना उसे पसंद नहीं।
घर में होने वाले उत्सव में किसको बुलाना है, इसमें सास की कोई भूमिका नहीं। परिणाम यह है कि जो सास बरसों तक घर की मालकिन रही हो वह धीरे-धीरे घर से बेदखल कर देने की स्थिति में पहुंचा दी जाती है।