Saturday, April 27, 2024

नरेन्द्र मोदी सरकार अब रक्षात्मक होने की बजाय चीन के प्रति आक्रामक नीति अपना रहे है

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केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने  हाल में  अरुणाचल प्रदेश में 36 सड़क और पुल परियोजनाओं का ऑनलाइन उद्धाटन किया है । इन परियोजनाओं में तवांग को असम के बालीपारा से जोडऩे वाली, सामरिक रूप से अहम नेचिफू सुरंग भी शामिल है। रक्षा मंत्री ने जम्मू से ऑनलाइन माध्यम से देश भर में कुल 90 प्रमुख सीमा बुनियादी ढांचा परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित की।

चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सड़क संगठन (बीआरओ) की यह परियोजनाएं 2,941 करोड़ रुपये की लागत की हैं।बीआरओ के अनुसार राजनाथ सिंह ने देश भर में 22 सड़कों, 63 पुलों, नेचिफू सुरंग, दो हवाई पट्टियों और दो हेलीपैड का ऑनलाइन उद्घाटन किया। इस दौरान मुख्यमंत्री पेमा खांडू और पुलिस महानिदेशक आनंद मोहन ने पश्चिम कामेंग जिले के सेसा से इस कार्यक्रम को देखा।

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अधिकारियों ने कहा कि पश्चिम कामेंग जिले में बालीपारा-चारदुआर-तवांग रोड़ पर 5,700 फुट की ऊंचाई पर स्थित नेचिफू सुरंग अद्वितीय डी-आकार की सिंगल-ट्यूब डबल-लेन सुरंग है जो तवांग क्षेत्र को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगी।

यह प्रोजेक्ट वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट कृति, रणनीतिक रूप से स्थित सुरंग सैनिकों के साथ-साथ आम लोगों की आवाजाही सुगम बनाएगी। इस सुरंग से दूरी पांच किलोमीटर कम हो जाएगी और घने कोहरे वाले इलाकों में भी यात्रा में सहूलियत होगी।  ज्ञात हो कि बीआरओ ने हाल ही में एलएसी के पास अरुणाचल प्रदेश में 678 करोड़ रुपये की लागत से आठ सड़कों का निर्माण पूरा किया है।

बताया जाता है कि अरुणाचल प्रदेश में जिन परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया, उनमें आठ सड़क परियोजनाएं और 20 पुल शामिल हैं। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने हिंदू धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा था  हमें अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए मिलकर काम करना होगा। जब देश की सुरक्षा की बात आती है तो सभी राजनीतिक दल एकजुट होते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है।रक्षामंत्री के कथन के अनुसार  ‘बीआरओ के साथ मिलकर, हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि देश सुरक्षित रहे और सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास हो। यही नहीं रक्षा मंत्री ने पूर्वी लद्दाख में न्योमा एयरफील्ड की आधारशिला भी रखी। उन्होंने कहा, ‘200 करोड़ रुपये की लागत से विकसित होने वाला यह हवाई क्षेत्र, लद्दाख में हवाई बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देगा और उत्तरी सीमा पर भारतीय वायुसेना की क्षमता को बढ़ाएगा जो  सशस्त्र बलों के लिए गेम-चेंजर होगा ।

जानकार लोगों का कहना है कि भारत ने चीन के विस्तारवादी और उपनिवेशवादी इरादों को देखते हुए उसकी बढ़त को काउंटर करने के लिए उससे लगी सीमाओं पर इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण तेज कर दिया है। सीमावर्ती क्षेत्रों में कनेक्टिविटी में सुधार और वहां रहने वाले लोगों के जीवन को आसान बनाने के लिए रक्षा मंत्री ने 90 नई परियोजनाएं राष्ट्र को समर्पित कीं।

इनमें से 26 परियोजनाएं लद्दाख में और 36 अरुणाचल में हैं और इनकी कुल लागत लगभग 6,000 करोड़ रुपये होगी। इसमें 22 सड़कें, 63 पुल और अरुणाचल प्रदेश में एक सुरंग भी शामिल है। इससे पता चलता है कि भारत चीन की तरफ से पेश की जा रही चुनौती को पूरी गंभीरता से ले रहा है और उसके अनुरूप अपनी तैयारी कर रहा है। इसी के साथ न्योमा एयरफील्ड पर भी काम शुरू हुआ, जो लद्दाख में अग्रिम चौकियों पर तैनात सैनिकों के लिए स्टेजिंग ग्राउंड होगा। यह दुनिया के सर्वाधिक ऊंचे हवाई क्षेत्रों में है। रक्षामंत्री ने जानकारी दी कि बीआरओ ने पिछले 900 दिनों में लगभग 100 इंफ्रा-प्रोजेक्ट्स देश को समर्पित किए हैं।

हममें से अधिकांश भारतीयों को 2020 में चीन के साथ गलवान घाटी में हुआ गतिरोध याद ही होगा। उस समय हमने चीन को पीटने में सफलता इसीलिए पाई क्योंकि यह सैनिकों और रसद की आवाजाही के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। फिलहाल यह एएलजी या उन्नत लैंडिंग ग्राउंड है और इसका रनवे मिट्टी से बना हुआ है, यानी मतलब यह कि इस पर केवल विशेष मालवाहक विमान या हेलिकॉप्टर ही उतारे जा सकते हैं। फिलहाल इस पर चिनूक हेलिकॉप्टर और सी-130 जे विमान उतारे जा रहे हैं।

218 करोड़ रुपए की लागत वाला नया रनवे जब बनकर तैयार हो जाएगा, तो बड़े-बड़े परिवहन और मालवाहक विमान भी न्योमा से ही संचालित हो सकेंगे। इससे भारतीय सेना को बड़ा रणनीतिक लाभ होगा और उनका मनोबल भी बढ़ेगा। इस साल के अंत तक ही इसके तैयार हो जाने की उम्मीद है। 13 हजार फुट की ऊंचाई वाला न्योमा बेल्ट 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद बंद था, लेकिन 2010 में यह फिर शुरू हुआ।

यह वास्तविक नियंत्रण रेखा का सबसे नजदीकी एयरबेस है और चीन से इसकी दूरी महज 50 किलोमीटर है। भारत को पता है कि चीन अपनी कारस्तानी से बाज नहीं आएगा और न्योमा किसी भी गतिरोध की स्थिति में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, इसलिए वह तेजी से इसका विकास कर रहा है। इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां से ही सीमा पार चीन क्या कर रहा है, उस पर भी नजर रखी जा सकती है। इससे लद्दाख में इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूती और नया आयाम मिलेगा। भारतीय एयरफोर्स की भी क्षमता बढ़ेगी।

गौरतलब है कि हमारा देश लगातार अपने सीमावर्ती इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास कर रहा है। ऐसे में यह दूर की कौड़ी नहीं लगती कि आने वाले दो-तीन वर्षों में भारत अगर चीन को पछाड़ेगा नहीं, तो इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में उसके बराबर सीमाई इलाकों में तो आ ही जाएगा। चीन की हरकतों को देखते हुए खास तौर से उससे लगी हुई सीमा में, सीमावर्ती इलाकों में भारत इंफ्रास्ट्रक्चर दिन दूनी, रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ा और विकसित कर रहा है।

न्योमा एयरपोर्ट चीन की नजरों से दूर, लेकिन दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई क्षेत्र भी होगा। चीन से सटे होने की वजह से इस एयरबेस का रणनीतिक, सामरिक और राजनीतिक महत्व भी है। 12 सितंबर को रक्षामंत्री ने जिन 90 परियोजनाओं की शुरुआत की है, उसमें बागडोगरा और बैरकपुर जैसे दो रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण हवाई क्षेत्र भी हैं, इसके अलावा लद्दाख मे एक हैलीपैड ससोमा-सासेर ला के बीच और एक हेलीपैड राजस्थान में भी बनेगी।

इसके साथ ही दुनिया की सबसे लंबी दो लेन वाली सेला सुरंग भी अगले महीने तक पूरी हो जाएगी। अरुणाचल के पश्चिम कामेंग जिले की यह सुरंग तवागे को हरेक मौसम में कनेक्टिविटी देगी।जांस्कर और लाहौल स्पीति को जोड़ने वाली यह सुरंग लगभग 16 हजार की फीट पर होगी और यह दुनिया की सबसे ऊंची सुरंग होगी।

फिलहाल, केंद्र सरकार एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा के लगभग 3500 किलोमीटर के इलाके को विकसित करने के लिए बेहद तेजी से काम कर रही है। पिछले दो-तीन साल में ही लगभग 300 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जिनकी लागत 11 हजार करोड़ रुपए की है। केंद्र सरकार एलएसी के 3,488 किमी। इलाके को विकसित करने के लिए तेजी से काम कर रही है। पिछले 2-3 वर्षों में 11,000 करोड़ रुपये की 295 परियोजनाएं पूरी की गई हैं। इनके माध्यम से हम लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

पहले हम एलएसी के इतने करीब नहीं थे, लेकिन पिछले तीन वर्षों में हम अपनी गति बढ़ा रहे हैं। इससे हमें अधिकांश अग्रिम चौकियों के आखिरी छोर तक कनेक्टिविटी मिलेगी और चीन हो या पाकिस्तान, उनके दुस्साहस को मुंहतोड़ जवाब भी हम दे सकेंगे।

ये सब बातें इसलिए बड़ी हो जाती है क्योंकि कांग्रेस के नेता, खासतौर पर राहुल गांधी रोज़ रोज़ ये इल्जाम लगाते हैं कि चीन ने हमारी सैकड़ों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है, हमारी सेना को पीछे हटना पड़ा  क्योंकि सरकार चीन से डरती है। राहुल गांधी इल्जाम लगाते हैं कि चीन ने सरहद के बिल्कुल करीब सड़कों का जाल बिछा दिया है, सुरंगे बना ली हैं, तमाम पुल बना दिए हैं जबकि हमारी सरकार इस इलाके में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रही है लेकिन आज  बीआरओ के चीफ ने बताया  कि भारत-चीन सरहद के आसपास  तेजी से काम हो रहा।

बताया जाता है कि भारत अभी तक बॉर्डर एरिया के डेवेलपमेंट में चीन से बहुत पीछे था लेकिन अब मोदी सरकार, लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल तक पहुंचने के लिए टनल्स, रोड, ब्रिज और बेस बनाने पर ज़ोर दे रही है।  हालांकि इतनी ऊंचाई पर टनल बनाना आसान काम नहीं होता।  इतनी ऊंचाई पर मशीनें भी ठीक से काम नहीं करतीं।  बीआरओ के चीफ  बताते है  कि अब ऊंचे पहाड़ों पर टनल बनाने के लिए लेटेस्ट टेक्नोलज़ी का इस्तेमाल किया जा रहा है। विपक्ष आरोप लगाता है कि सरकार चीन को ठीक से जवाब नहीं दे रही है। चीन से निपटने के लिए कुछ नहीं कर रही है लेकिन अब  बीआरओ की तरफ से कई चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखे गए है ।

बताया गया कि 2008 से 2015 के दौरान बीआरओ सीमा पर हर साल 632 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाता था, लेकिन 2015 के बाद से क्चक्रह्र हर साल 934 किलोमीटर रोड बना रहा है। 2008 से 2015 के बीच बीआरओ सीमा पर हर साल 1224 मीटर पुल बनाता था, अब ये रेट 3652 मीटर प्रति वर्ष हो गया है।  काम की स्पीड बढ़ी है, तो ख़र्च भी बढ़ा है।  इसलिए सरकार ने बीआरओ का बजट भी बढ़ा दिया है। 2008 से 2017 के बीच बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन का बजट 3,305 करोड़ रुपए से लेकर चार हज़ार 670 करोड़ रुपए के बीच रहा करता था लेकिन 2023-24 के लिए बीआरओ का बजट 15 हज़ार करोड़ रुपए है।

वहीं, 2022-23 में बीआरओ ने सीमा पर इन्फ्रा विकास  के लिए 12 हज़ार 340 करोड़ रुपए ख़र्च किए थे।  2021 में ये रक़म नौ हज़ार तीन सौ 75 करोड़ रुपए, 2020 में कऱीब नौ हज़ार करोड़ रुपए और 2019 में सात हज़ार 737 करोड़ रुपए थी। यानी चार साल के भीतर बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइज़ेशन का बजट दो गुने से भी ज़्यादा हो गया है। इसका ट्रिगर प्वाइंट गलवान वैली में पीएलए   और इंडियन आर्मी के बीच ख़ूनी संघर्ष था। उसके बाद से ही मोदी सरकार ने सरहदी इलाके  में इन्फ्रास्ट्रक्चर को तेजी से विकसित करने पर फोकस किया है।
-अशोक भाटिया

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