जैसा जीवन आज लोग जी रहे हैं क्या वास्तव में हम ऐसा ही जीवन चाहते हैं? आज बहुत सी ऐसी चीजें हो रही हैं, जिनका हम अंदर से तो विरोध कर रहे हैं पर बाहर कहने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं जैसे फैशन, नशे का चलन, फास्टफूड और ईश्वर भक्ति से विमुखता।
आज कमाते बहुत ज्यादा हैं, परन्तु फिर भी हाथ तंग रहता है। कभी मकान की किश्त, कहीं गाड़ी की किश्त और तो और क्रेडिट कार्ड का भुगतान भी किश्तों में होता है। कहीं मोबाइल का बिल तो कभी रोज-रोज रेस्तरां में खाने का। बड़े मकान की चाहत पर दिल छोटे। जरा सी बड़ी गाड़ी पर चोट क्या लगी कि लडऩे मरने पर उतारू, सहनशीलता ही नहीं रही, गुस्से में एक दम आग बबूला।
पता नहीं क्या हो गया है आज के इंसान को। मां-बाप बुजुर्ग हुए तो दवा के पैसे नहीं, परन्तु दिखावे के लिए किश्तों की बड़ी गाड़ी। मंदिर में जो नोट बहुत बड़ा हो जाता है, यही नोट रेस्तरां में बहुत छोटा हो जाता है। जितना चढावा भगवान के मंदिर में देने में संकोच करते हैं उससे ज्यादा तो रेस्टोरेंट में टिप दे आते हैं।
नामी स्कूल में बच्चों का एडमिशन होना चाहिए चाहे बच्चा गिनती भी न गिन पाये। हिन्दी में बोलना अनपढ़ता की निशानी, परन्तु इंग्लिश में गौरव महसूस करते हैं। पता नहीं दिल क्यों उदास है, वजह कोई खास है।