जब मौसम में बासंती बयार बहने लगे और लोगों में मस्ती का भाव कुलमुलाने लगे और प्रकृति जब अपना आवरण बदलने लगे तो समझो फाल्गुन आ गया यानि होली ने द्वार पर दस्तक दे दी है। होली एक ऐसा पर्व है जो स्वयं ही लोगों के दिलो में उमंग लाकर उन्हें अपने रंग में रंगने लगती है। प्रकृति का यही उल्लास लोगो के मन में एक नई उमंग, एक नई खुशी, एक नई स्फूर्ति को जन्म देकर उनके मन को आल्हादित करता है। प्रकृति की इस अनूठी छटा व मादकता के उत्सव को होलिकोत्सव के रूप में मनाए जाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। जिस पर हम सब रंगो से सराबोर हो जाते है। होली के इस पर्व को यौवनोत्सव, मदनोत्सव, बसंतोत्सव, ढोलयात्रा व शिमागा के रूप में मनाये जाने की परम्परा है। फाल्गुन मास के अन्तिम दिन मनाए जाने वाले रंगों के इस पर्व होलिकोत्सव को लेकर यंू तो विभिन्न कथाएं प्रचलित है, लेकिन इस पर्व की वास्तविक शुरूआत प्रकृति परिवर्तन से ही होती है। प्रकृति अपना आवरण बदलती है।
पेड़ पौधे अपने पुराने पत्तों को त्यागकर, पेड़ का तना अपने बक्कल को छोड़कर नये पत्तों व नये स्वरूप में परिवर्तित होते है। पांच तत्वों से बना हमारा शरीर भी चूंकि प्रकृति का अंग है इस कारण वह भी मन और शरीर दोनो तरह से अपने आपमें परिवर्तन का अनुभव करता है। यही अनुभव हम होली के रूप में महसूस करते हैं।
होली अर्थात पवित्रता का पर्व
होली शब्द को यदि अंग्रेजी भाषा रूप में देखे तो इसका अर्थ पवित्र है। यानि होली को पवित्रता का त्यौहार भी माना जाता है। जिसमें सब आपसी ईष्या व द्वेष मिटाकर पवित्र मन से नई फसल आने की खुशी होली के रूप में मनाते है। यदि यह पर्व पवित्र है, तो फिर इस पवित्र और पावन पर्व पर हुड़दंग कैसा? यह पर्व प्रकृति केे नवपरिवर्तन से जुड़ा है। प्रकृति जब अपना आवरण बदलने लगतीे है, मौसम में बासंती ब्यार बहने लगती है और लोगो में प्यार और मोहब्बत का भाव जगाने लगती है तो समझो फाल्गुन का मौसम आ गया और होली अर्थात पवित्रता के रंग में रंगने का अवसर भी आ गया।
होली लोगो के दिलो पर दस्तक देकर उन्हे अपने रंग में रगंने लगती है। प्रकृति का यही उल्लास लोगो के मन में एक नई उमंग, एक नई खुशी, एक नई स्फूर्ति को जन्म देकर उनके मन को आल्हादित करती है।
प्रकृति की इस अनूठी छटा व मादकता के उत्सव को होलिकोत्सव के रूप में मनाए जाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।
होली की मशहूर कथाएं
धार्मिक पुस्तकों व शास्त्रों में होली को लेकर विभिन्न कथायें प्रचलित है। इन कथाओं के अनुसार नारद पुराण में यह पर्व हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के अन्त व भक्त प्रहलाद की ईश्वर के प्रति आस्था के प्रति विजय का प्रतीक है। प्रचलित कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप को जब उनके पुत्र प्रहलाद ने भगवान मानने से इंकार कर दिया तो अहंकारी शासक हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद की हत्या के लिए उसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त होलिका की गोद में जलती चिता में बैठा दिया किन्तु होलिका का आग में न जलने का वरदान काम नहीं आया और वह आग में जलकर भस्म हो गई। जबकि प्रहलाद सकुशल बच गया। तभी से होलिकोत्सव पर होली दहन की परम्परा की शुरूआत हुई।
मुगल भी मनाते थे होली
होली के पर्व को मुगल शासक भी शान से मनाया करते थे। मुगल बादशाह अकबर अपनी महारानी जोधाबाई के साथ जमकर होली खेलते थे। बादशाह जहांगीर ने भी अपनी पत्नी नूरजहां के साथ रंगों की होली खेली। इसी तरह बादशाह औरंगजेब, उनके पुत्र शाह आलम और पोत्र जहांदर शाह ने भी होली का त्यौहार रंगों के साथ मस्ती के आलम में मनाया जिसका उल्लेख इतिहास में पढऩे को मिलता है। जिससे स्पष्ट है कि हिन्दू ही नहीं मुसलमान भी होली का पर्व मनाते रहे है। पिरान कलियर के वार्षिक उर्स में पाकिस्तान से आने वाले जायरीन हर साल फूलों की होली खेलते है जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल होते हैं।
राजस्थान के सांभर की होली
राजस्थान में सांभर की होली का अपना महत्व है। सांभर की होली मनाने के लिए आदिवासी समाज की लड़कियां वस्त्रों की जगह अपने शरीर को टेसू की फूल मालाओं से ढंककर अपने प्रेमियों के साथ नदी किनारे जाकर नृत्य करती है। इस नृत्य के बाद इन लड़कियों की शादी उनके प्रेमियों के साथ कर दी जाती है। राजस्थान में ही हाड़ोती की कोड़ामार होली मनती है जिसमें देवर-भाभी व जीजा-साली एक-दूसरे को कोड़े मारकर होली के रंग में रंग जाते है। राजस्थान में होली पर अकबर-बीरबल की शोभायात्रा निकालकर होली का रगं व गुलाल खेला जाता है। राजस्थान के बाड़मेर में तो होली की मस्ती के लिए जीवित व्यक्तियों की शवयात्रा बैण्ड-बाजे के साथ निकालने की परम्परा है। वही राजस्थान के जालोर क्षेत्र में होली पर लूर नृत्य किया जाता है तो झालावाड़ क्षेत्र में गधे पर बैठकर होली की मस्ती में झूमने की परम्परा है। बीहड़ क्षेत्र में तो पुरुष घाघरा-चोली पहन कर ढोल नगाड़े बजाते हुए होली का नृत्य करते है तथा होली का गायन करते है। ब्रज की लठमार होली बीकानेर की डोलचीमार होली की कहानी भी गजब है।
लट्ठमार होली
लट्ठमार होली ब्रज के बरसाने में खेली जाती है। जिसमें महिलाएं पुरुषों पर लट्ठ से प्रहार करती है और पुरुष ढाल का उपयोग कर अपना बचाव करते है। इस लट्ठमार होली को देखने के लिए देश विदेश से बड़ी संख्या में दर्शक आते है। भले ही इस होली को लट्ठमार होली के रूप में मनाया जाता हो परन्तु किसी के भी मन में होली खेलते समय कोई बैर भाव नहीं होता सभी प्यार और मोहब्बत को नया जन्म देने के लिए यह होली खेलते हैं।
होला मोहल्ला
पंजाब के होला मोहल्ला की शान ही निराली है। होला मोहल्ला की तैयारी काफी पहले से शुरू हो जाती है। जिसमें शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से पंजाब पहुंचते हैं और होला मोहल्ला की मस्ती में खोये रहते है। होला मोहल्ला के रूप में होली का पर्व मनाने का मकसद भी नई फसल की खुशी मनाना ही है। इसी तरह, कांगडा की भक्ति रस में डूबी होली की अपनी ही शान है। यानि चहुं ओर मस्ती के इस पर्व को नई फसल आने की खुशी के रूप में ही जगह जगह मनाया जाता है।
डा. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट-विनायक फीचर्स
पेड़ पौधे अपने पुराने पत्तों को त्यागकर, पेड़ का तना अपने बक्कल को छोड़कर नये पत्तों व नये स्वरूप में परिवर्तित होते है। पांच तत्वों से बना हमारा शरीर भी चूंकि प्रकृति का अंग है इस कारण वह भी मन और शरीर दोनो तरह से अपने आपमें परिवर्तन का अनुभव करता है। यही अनुभव हम होली के रूप में महसूस करते हैं।
होली अर्थात पवित्रता का पर्व
होली शब्द को यदि अंग्रेजी भाषा रूप में देखे तो इसका अर्थ पवित्र है। यानि होली को पवित्रता का त्यौहार भी माना जाता है। जिसमें सब आपसी ईष्या व द्वेष मिटाकर पवित्र मन से नई फसल आने की खुशी होली के रूप में मनाते है। यदि यह पर्व पवित्र है, तो फिर इस पवित्र और पावन पर्व पर हुड़दंग कैसा? यह पर्व प्रकृति केे नवपरिवर्तन से जुड़ा है। प्रकृति जब अपना आवरण बदलने लगतीे है, मौसम में बासंती ब्यार बहने लगती है और लोगो में प्यार और मोहब्बत का भाव जगाने लगती है तो समझो फाल्गुन का मौसम आ गया और होली अर्थात पवित्रता के रंग में रंगने का अवसर भी आ गया।
होली लोगो के दिलो पर दस्तक देकर उन्हे अपने रंग में रगंने लगती है। प्रकृति का यही उल्लास लोगो के मन में एक नई उमंग, एक नई खुशी, एक नई स्फूर्ति को जन्म देकर उनके मन को आल्हादित करती है।
प्रकृति की इस अनूठी छटा व मादकता के उत्सव को होलिकोत्सव के रूप में मनाए जाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।
होली की मशहूर कथाएं
धार्मिक पुस्तकों व शास्त्रों में होली को लेकर विभिन्न कथायें प्रचलित है। इन कथाओं के अनुसार नारद पुराण में यह पर्व हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के अन्त व भक्त प्रहलाद की ईश्वर के प्रति आस्था के प्रति विजय का प्रतीक है। प्रचलित कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप को जब उनके पुत्र प्रहलाद ने भगवान मानने से इंकार कर दिया तो अहंकारी शासक हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद की हत्या के लिए उसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त होलिका की गोद में जलती चिता में बैठा दिया किन्तु होलिका का आग में न जलने का वरदान काम नहीं आया और वह आग में जलकर भस्म हो गई। जबकि प्रहलाद सकुशल बच गया। तभी से होलिकोत्सव पर होली दहन की परम्परा की शुरूआत हुई।
मुगल भी मनाते थे होली
होली के पर्व को मुगल शासक भी शान से मनाया करते थे। मुगल बादशाह अकबर अपनी महारानी जोधाबाई के साथ जमकर होली खेलते थे। बादशाह जहांगीर ने भी अपनी पत्नी नूरजहां के साथ रंगों की होली खेली। इसी तरह बादशाह औरंगजेब, उनके पुत्र शाह आलम और पोत्र जहांदर शाह ने भी होली का त्यौहार रंगों के साथ मस्ती के आलम में मनाया जिसका उल्लेख इतिहास में पढऩे को मिलता है। जिससे स्पष्ट है कि हिन्दू ही नहीं मुसलमान भी होली का पर्व मनाते रहे है। पिरान कलियर के वार्षिक उर्स में पाकिस्तान से आने वाले जायरीन हर साल फूलों की होली खेलते है जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल होते हैं।
राजस्थान के सांभर की होली
राजस्थान में सांभर की होली का अपना महत्व है। सांभर की होली मनाने के लिए आदिवासी समाज की लड़कियां वस्त्रों की जगह अपने शरीर को टेसू की फूल मालाओं से ढंककर अपने प्रेमियों के साथ नदी किनारे जाकर नृत्य करती है। इस नृत्य के बाद इन लड़कियों की शादी उनके प्रेमियों के साथ कर दी जाती है। राजस्थान में ही हाड़ोती की कोड़ामार होली मनती है जिसमें देवर-भाभी व जीजा-साली एक-दूसरे को कोड़े मारकर होली के रंग में रंग जाते है। राजस्थान में होली पर अकबर-बीरबल की शोभायात्रा निकालकर होली का रगं व गुलाल खेला जाता है। राजस्थान के बाड़मेर में तो होली की मस्ती के लिए जीवित व्यक्तियों की शवयात्रा बैण्ड-बाजे के साथ निकालने की परम्परा है। वही राजस्थान के जालोर क्षेत्र में होली पर लूर नृत्य किया जाता है तो झालावाड़ क्षेत्र में गधे पर बैठकर होली की मस्ती में झूमने की परम्परा है। बीहड़ क्षेत्र में तो पुरुष घाघरा-चोली पहन कर ढोल नगाड़े बजाते हुए होली का नृत्य करते है तथा होली का गायन करते है। ब्रज की लठमार होली बीकानेर की डोलचीमार होली की कहानी भी गजब है।
लट्ठमार होली
लट्ठमार होली ब्रज के बरसाने में खेली जाती है। जिसमें महिलाएं पुरुषों पर लट्ठ से प्रहार करती है और पुरुष ढाल का उपयोग कर अपना बचाव करते है। इस लट्ठमार होली को देखने के लिए देश विदेश से बड़ी संख्या में दर्शक आते है। भले ही इस होली को लट्ठमार होली के रूप में मनाया जाता हो परन्तु किसी के भी मन में होली खेलते समय कोई बैर भाव नहीं होता सभी प्यार और मोहब्बत को नया जन्म देने के लिए यह होली खेलते हैं।
होला मोहल्ला
पंजाब के होला मोहल्ला की शान ही निराली है। होला मोहल्ला की तैयारी काफी पहले से शुरू हो जाती है। जिसमें शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से पंजाब पहुंचते हैं और होला मोहल्ला की मस्ती में खोये रहते है। होला मोहल्ला के रूप में होली का पर्व मनाने का मकसद भी नई फसल की खुशी मनाना ही है। इसी तरह, कांगडा की भक्ति रस में डूबी होली की अपनी ही शान है। यानि चहुं ओर मस्ती के इस पर्व को नई फसल आने की खुशी के रूप में ही जगह जगह मनाया जाता है।
डा. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट-विनायक फीचर्स